सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध ) के बिषय में गृहत्याग की जो कथाएं प्रचलित है वह बौद्ध भिक्षु अश्वघोष कृत बुद्ध चरित्र से है अश्वघोष प्रथम शताब्दी के अंत एवं द्वितीय शताब्दी के आरंभ में हुए थे ऐसा माना जाता है
अश्वघोष ने अपनी बुद्ध चरित्र की रचना महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ,का अनुकरण कर किया रामोपख्यान का इंडोनेशिया ,थाईलैंड,मोरिशश ,म्यंमार,सहित समस्त एशियाई देशों में गहरा प्रभाव रहा है भारत मे तो श्रीराम भारतीयों के रोम रोम में बसते है जिस कारण अश्वघोष भी इससे अछूता न रहा ,
इसी प्रभाव के कारण ही अश्वघोष ने बुद्ध चरित्र में , रामोपाख्यान का अनुकरण किया ताकि भविष्य में बुद्ध की भी प्रसिद्धि श्रीरामचन्द्र की भांति ख्यापित किया जा सके सिद्धार्थ गौतम को श्रीरामचन्द्र की भांति ख्यापित करने के पीछे अश्वघोष की उत्कट अभिलाषा ही सिद्धार्थ गौतम के मूल इतिहास को मिटा डाला और एक काल्पनिक गाथा रच डाला जो कालक्रम के प्रवाह में सत्य की भांति ख्यापित भी हुआ ।
बुद्ध के गृहत्याग बिषय पर मैं सदा से संसयशील रहा हूँ हो सकता है आप सब मेरे बिचारो से सहमत न हो परन्तु तद्गत बिषयों को लेकर मन्थन अवश्य किया जा सकता है ।
सिद्धार्थ गौतम के गृहत्याग के बिषय में जो कथाएं प्रचलित है मुझे वे निराधार लगते है ।
जरा जन्म मरण जैसे बिषयों के लेकर द्रवित हो गृह का त्याग कर तपस्या के लिए चल पड़े और निर्वाण को प्राप्त हुए ।
सिद्धार्थ गौतम के जीवनी पर लिखी गयी सबसे प्राचिन पुस्तक बुद्ध चरित्र है जो लगभग प्रथम शताब्दी में बौद्ध भिक्षु अश्वघोष द्वारा रची गयी थी।
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अश्वघोष कृत बुद्ध चरित्र में आये हुए प्रसङ्ग विचारणीय है
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■-प्रसङ्ग संख्या ●--१
■--वयश्च कौमारमतीत्य मध्यं सम्प्राप्य बालः स हि राजसूनुः । अल्पैरहोभिर्बहुवर्षगम्या जग्राह विद्याः स्वकुलानुरूपाः ॥( २।२४)
■--नाध्यैष्ट दुःखाय परस्य विद्यां ज्ञानं शिवं यत्तु तदध्यगीष्ट । स्वाभ्यः प्रजाभ्यो हि यथा तथैव सर्वप्रजाभ्यः शिवमाशशंसे ॥ (२।३५)
■--आर्षाण्यचारीत्परमव्रतानि (२/४३)
सिद्धार्थ गैतम ने सास्त्रनुकूल समय पर उपनयन संस्कार से संकरित हो अपने कुल परम्परा के अनुरूप विद्या आदि का अध्यय किया था एवं ऋषियों सम्बंधित समस्त व्रत और तपो का भी पालन किया था कुशाग्र बुद्धि होने के कारण अल्पकाल में ही समस्त विद्याओं का अध्ययन पूर्ण कर चुका था ।
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■-प्रसङ्ग संख्या ●--२
अश्वघोष कृत बुद्ध चरित्र के तृतीय सर्ग श्लोक संख्या २८ से लेकर श्लोक संख्या ६० तक महत्वपूर्ण है जहाँ किस हेतु से सिद्धार्थ गौतम ने गृहत्याग किया था ।
■●--सिद्धार्थ गौतम ने बृद्ध ,रोग से ग्रसित रोगी ,एवं मृत ब्यक्ति को देख ब्याकुल हो उठा और गृह त्याग कर वन की ओर चल पड़ा ।
गौतम बुद्ध ने जब गृह त्याग किया था उस वक़्त तक उनका विवाह हो चुका था और एक पुत्र लाभ भी हुआ था अतः स्पष्ट है कि उनकी आयु अब लगभग 30 वर्ष की हो चली होगी ।
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समीक्षा :-- सिद्धार्थ गौतम का समयानुकूल उपनयन संस्कार होना ये दर्शाता है की वे उस कुल में जन्मे थे जो विशुद्ध वैदिक धर्मी थे ,अनादिकाल से आरही वंश परम्परा कुल परम्परा के अनुकूल ही सिद्धार्थ गौतम का संस्कार एवं अध्ययनादि हुआ था बड़े ही अल्पकाल में सिद्धार्थ गौतम अध्ययनादि को पूर्ण कर लिया था अश्वघोष ने द्वितीय सर्ग के श्लोक संख्या २४ में #अल्पैरहोभिर्बहुवर्षगम्याजग्राह विद्याः स्वकुलानुरूपाः
लिख कर स्पष्ट किया है साथ ही साथ द्वितीय सर्ग के श्लोक संख्या ४३ में पुनः इसकी पुष्टि की है ।
अब आगे आते है
आत्म तत्व ,जन्म मृत्यु ,जड़ चेतन आदि बिषय को लेकर जितना बिषद उल्लेख वैदिक धर्म मे हुआ उतना उल्लेख विश्व के किसी भी साहित्य में नही है । अतः ऐसा सम्भव ही नही की सिद्धार्थ गौतम के अध्ययन काल मे इन जैसे प्रश्नों अथवा बिषयों का उल्लेख न हुआ हो अथवा उस कालखण्ड में किस बृद्ध अथवा रोगी अथवा मृत ब्यक्ति को न देखा हो ।
श्रुतिस्मृति इतिहासपुराणादि षड्दर्शन जैसे समुच्चय ग्रन्थ आत्मतत्व का विवेचन करता है श्रुतियों में नचिकेता जैसा बालक भी यमराज से मृत्यु का रहस्य पूछता है मृत्यु के नाम से द्रवित नही होता तो पुराण जैसे अयाख्यानों में प्रह्लाद जैसा दृढ़भक्त बालक भी मृत्यु के नाम से विचलित न हो होलिका के गोद मे बैठ जाता है अतः जिन बिषयों को लेकर बाल्यकाल में अध्ययन के समय होना चाहिए था वही संशय युवास्था में होना और उससे द्रवित होकर गृहत्याग करना हास्यस्पद लगता है ।
शैलेन्द्र सिंह
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