#शंका_समाधान
#शंका:-- स्त्रियों को वेदाध्ययन में अधिकार क्यो नही ?जबकि गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा जैसी कई विदुषियां हुई हैं जो स्वयं वेदो के मन्त्रद्रष्टा भी रह चुकी है ऐसे में स्त्रियों को वेदाध्ययन में अनाधिकार क्यो ?
#समाधान:-- मन्त्रद्रष्टा वे है जो यमनियम आदि का आचरण कर अपने तपःपूत के बल पर मन्त्रो का साक्षात्कार करते है
ऋषिर्मन्त्रद्रष्टा ॥ गत्यर्थत्वात् ऋषेर्ज्ञानार्थत्वात् मन्त्रं दृष्टवन्तः ऋषयः ॥' ( श्वेतवनवासिरचितवृत्तौ उणादिसूत्रं ४॥१२९ द्रष्टव्यम्)
वेद कहता है तपस्या से ब्रह्म को जानो क्योंकि तप ही ब्रह्म है – तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व| तपो ब्रह्मेति| – तैत्तिरीयोपनिषत् / भृगुवल्ली / ०
इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुपवृंहयेत्। बिभेत्यल्प श्रुताद् वेदो मामयं प्रहरिष्यति।। अर्थात् इतिहास पुराण से ही वेद को समझना चाहिए। इनको नहीं जानने वाले से वेद भी डरता है कि यह मेरी हत्या कर देगा।
स्त्रियों के लिए स्वधर्मपालन पतिशुश्रूषा ही तप है यज्ञ है
नास्ति यज्ञः स्त्रियाः कश्चिन्न श्राद्धं नोप्रवासकम्।
धर्मः स्वभर्तृशुश्रूषा तया स्वर्गं जयन्त्युत।।(महाभारत अनुशाशन पर्व ४६/१३)
स्त्रीभिरनायासं पतिशुश्रूषयैव हि ।।(विष्णु पुराण ६-२-३५ )
नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम् ।
पतिं शुश्रूषते येन तेन स्वर्गे महीयते । (मनुस्मृति ५/१५५)
धर्मशास्त्रों में स्प्ष्ट कहा है स्त्री तन ,मन ,धन से अपनी पति की सेवा करे वही उसका यज्ञ ,तप,व्रत है उसी से वे अनायास धर्म की सिद्धि प्राप्त कर लेती है मन्वादि प्रबल शास्त्र प्रमाणों से सिद्ध है कि अपनी तपस्या से पूर्वकाल में स्त्रियां वेद मन्त्रो का साक्षात्कार कर लेती थी उनकी तपस्या क्या है ? स्वधर्म पर चलने से उनको वेद्य तत्त्व का ज्ञान हो जाता था वो तपस्या है स्वधर्मपालन, देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञों का पूजन , आर्जव , इन्द्रियों पर निग्रह , अहिंसा , इसी से वे स्त्रियाँ सिद्धि को प्राप्त कर लेती थी ऐसे में यह सिद्ध नही होता कि स्त्रियी को वेदाध्यन में अधिकार हो क्यो की स्मृति, इतिहास ,पुराणादि समस्त धर्म शास्त्र में स्त्रियों को वेदाध्ययन का अनाधिकारी ही कहा क्यो की #तमुपनीय (छा०उ०) श्रुतियों का स्प्ष्ट आज्ञा है वेदविद्या में प्रवेश करने के पूर्व उपनयन सँस्कार आवश्यक है बिना उपनयन के वेदविद्या में प्रवेश का अधिकार तो ब्राह्मणो तक को नही फिर जिनका उपनयन ही न हो उसको वेदविद्या में अधिकार कैसे ? स्त्रियों के उपनयन संस्कार के बिषय में इतिहास,पुराणादि शास्त्रो में अभाव है ।
अमन्त्रिका तु कार्येयं स्त्रीणां आवृदशेषतः ।। (मनुस्मृति)
वैवाहिको विधिः स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृतः (मनुस्मृति)
जिस कारण वेदाध्ययन का उन्हें अधिकारी नही माना गया है
वेदे पत्नीं वाचयति न स्तृणाति (शङ्खायन श्रौतसूत्रम् ८/१२/९)
स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा " ( श्रीमद्भागवत १.४.२५)
#शंका:-- स्त्रियों को वेदाध्ययन में अधिकार क्यो नही ?जबकि गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा जैसी कई विदुषियां हुई हैं जो स्वयं वेदो के मन्त्रद्रष्टा भी रह चुकी है ऐसे में स्त्रियों को वेदाध्ययन में अनाधिकार क्यो ?
#समाधान:-- मन्त्रद्रष्टा वे है जो यमनियम आदि का आचरण कर अपने तपःपूत के बल पर मन्त्रो का साक्षात्कार करते है
ऋषिर्मन्त्रद्रष्टा ॥ गत्यर्थत्वात् ऋषेर्ज्ञानार्थत्वात् मन्त्रं दृष्टवन्तः ऋषयः ॥' ( श्वेतवनवासिरचितवृत्तौ उणादिसूत्रं ४॥१२९ द्रष्टव्यम्)
वेद कहता है तपस्या से ब्रह्म को जानो क्योंकि तप ही ब्रह्म है – तपसा ब्रह्म विजिज्ञासस्व| तपो ब्रह्मेति| – तैत्तिरीयोपनिषत् / भृगुवल्ली / ०
इतिहास पुराणाभ्यां वेदं समुपवृंहयेत्। बिभेत्यल्प श्रुताद् वेदो मामयं प्रहरिष्यति।। अर्थात् इतिहास पुराण से ही वेद को समझना चाहिए। इनको नहीं जानने वाले से वेद भी डरता है कि यह मेरी हत्या कर देगा।
स्त्रियों के लिए स्वधर्मपालन पतिशुश्रूषा ही तप है यज्ञ है
नास्ति यज्ञः स्त्रियाः कश्चिन्न श्राद्धं नोप्रवासकम्।
धर्मः स्वभर्तृशुश्रूषा तया स्वर्गं जयन्त्युत।।(महाभारत अनुशाशन पर्व ४६/१३)
स्त्रीभिरनायासं पतिशुश्रूषयैव हि ।।(विष्णु पुराण ६-२-३५ )
नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम् ।
पतिं शुश्रूषते येन तेन स्वर्गे महीयते । (मनुस्मृति ५/१५५)
धर्मशास्त्रों में स्प्ष्ट कहा है स्त्री तन ,मन ,धन से अपनी पति की सेवा करे वही उसका यज्ञ ,तप,व्रत है उसी से वे अनायास धर्म की सिद्धि प्राप्त कर लेती है मन्वादि प्रबल शास्त्र प्रमाणों से सिद्ध है कि अपनी तपस्या से पूर्वकाल में स्त्रियां वेद मन्त्रो का साक्षात्कार कर लेती थी उनकी तपस्या क्या है ? स्वधर्म पर चलने से उनको वेद्य तत्त्व का ज्ञान हो जाता था वो तपस्या है स्वधर्मपालन, देव, द्विज, गुरु, प्राज्ञों का पूजन , आर्जव , इन्द्रियों पर निग्रह , अहिंसा , इसी से वे स्त्रियाँ सिद्धि को प्राप्त कर लेती थी ऐसे में यह सिद्ध नही होता कि स्त्रियी को वेदाध्यन में अधिकार हो क्यो की स्मृति, इतिहास ,पुराणादि समस्त धर्म शास्त्र में स्त्रियों को वेदाध्ययन का अनाधिकारी ही कहा क्यो की #तमुपनीय (छा०उ०) श्रुतियों का स्प्ष्ट आज्ञा है वेदविद्या में प्रवेश करने के पूर्व उपनयन सँस्कार आवश्यक है बिना उपनयन के वेदविद्या में प्रवेश का अधिकार तो ब्राह्मणो तक को नही फिर जिनका उपनयन ही न हो उसको वेदविद्या में अधिकार कैसे ? स्त्रियों के उपनयन संस्कार के बिषय में इतिहास,पुराणादि शास्त्रो में अभाव है ।
अमन्त्रिका तु कार्येयं स्त्रीणां आवृदशेषतः ।। (मनुस्मृति)
वैवाहिको विधिः स्त्रीणां संस्कारो वैदिकः स्मृतः (मनुस्मृति)
जिस कारण वेदाध्ययन का उन्हें अधिकारी नही माना गया है
वेदे पत्नीं वाचयति न स्तृणाति (शङ्खायन श्रौतसूत्रम् ८/१२/९)
स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी न श्रुतिगोचरा " ( श्रीमद्भागवत १.४.२५)