Wednesday 30 June 2021

शिक्षा और शूद्र





हिन्दुओ के लिए वेद स्वतः प्रामाणसिद्ध है ईश्वर द्वरा प्रतिपादित बिषय भी यदि वेद विरुद्ध हो तो वे अप्रामाणिक माने जाते है यही वेद की वेदता और हिन्दू होने का प्रथमप्रामाण है ।


अल्पज्ञ अल्पश्रु भ्रामक ब्यक्तियो वामपंथियों ईसाइयों इस्लामिको  का कहना है कि शूद्रों को पढ़ने नही दिया जाता था उन्हें जानबूझ कर अशिक्षित रखा जाता था ताकि उसका शोषण कर सके ।

प्रथमतः स्प्ष्ट कर देना चाहता हूं कि वैदिक सनातन धर्म शोषणवादी नही अस्तु पोषणवादी है ऐसा कोई कर्मकाण्ड नही जहाँ समस्त वर्णों को आर्थिक रूप से लाभ नही मिलता हो इस पर मैं कई बार पोस्ट लिख चुका हूं अतः वही बिषय को पुनश्च यहाँ रखने का कोई अर्थ नही बनता  ।

दूसरी बात विद्यादि में शूद्रों का भी अधिकार था यह बात 

■ श्रुतिस्मृतिइतिहासपुराणादि से सिद्ध है ।

समावेदीय छन्दोग्य उपनिषद में राजा अश्वपति यह घोषणा करते है

कि मेरे राज्य में कोई भी अशिक्षित नही  , न ही कोई मूर्ख 


■ न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः।

नानाहिताग्निर्ना विद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः॥ (छान्दोग्य॰ ५ । ११ । १५)

केवल इतना ही नही त्रेतायुग में इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के शासनकाल में भी ऐसा कोई ब्यक्ति देखने को नही मिलता जो अशिक्षित हो ।


■ कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित् ।

द्रष्टुम् शक्यम् अयोध्यायाम् न अविद्वान् न च नास्तिकः ॥(वा0 रा0 १/६/८)


अयोध्या में कही कोई कामी,कृपण, क्रूर,अविद्वान,नास्तिक ब्यक्ति देखने को नही मिलता है ।

अतः इससे स्प्ष्ट प्रामाण हो जाता है कि विद्या आदि में शूद्रों का अधिकार था केवल इतना ही नही शिक्षा दर भी १००% थी तत्तकालीन शासनतंत्र के अधीन भारत के समस्त नागरिक शिक्षित नही है जबकि जिस कालखण्ड में श्रुतिस्मृतिइतिहासपुराणादि का प्रचार प्रसार ईस भूखण्ड पर पूर्णरूपेण था उस कालखण्ड में कोई भी ब्यक्ति अशिक्षित नही था ।

भारत जब यवनों अरबो तुर्को ब्रिटेन की दासता झेल रहा था उसीकालखण्ड में यह अशिक्षिता  व्याप्त हुई क्यो की गुरुकुलों को नष्ट करना विश्विद्यालयों को अग्निदाह करना ही मूल कारण रहा ।


 शूद्रों का तो शिल्पविद्या में एकक्षत्र राज था ।

वर्णाश्रमधर्मी होने का यही अर्थ होता है कि कोई भी किसी के अधिकारों का हनन न करें स्व स्व धर्म का पालन निष्पक्षता पूर्ण करें 

महाभारत जैसे अयाख्यानों में शूद्रकुल में जन्मे हुए विदुर को हस्तिनापुर जैसे साम्राज्य का महामन्त्री बनाया वे नीतिशास्त्र के ज्ञाता धर्माधर्म बिषयों के ज्ञाता तथा साक्षात् धर्म का अंश माना गया यदि सनातन धर्म शोषणवादी अशिक्षित रखने की नीति होती तो स्वधर्मपरायण विदुर को हस्तिनापुर जैसे साम्राज्य का महामन्त्री न बनाया होता ।

एकलब्य के बिषय को लेकर भी भ्रामक प्रचार किया गया है 

महाभारत में ही स्प्ष्ट लिखा है कि गुरु द्रोणाचार्य ने एकलब्य को वह विद्या प्रदान की जो न तो पाण्डवो, कौरवो और न ही अश्वथामा को प्रदान की थी ।

इक्ष्वाकु वंश के ही राजा हरिश्चंद्र एक चाण्डाल के यहाँ नौकरी किये अब बिचार कीजिये कि इक्ष्वाकु वंश के राजा को भी खरीदने का सामर्थ्य एक चाण्डाल के पास था कितना धन होगा उस चाण्डाल के पास ??

हमने कभी भी बिषयों पर सत्यासत्य बिचार नही किया अपितु हमने उसी को सत्य मान बैठा जिसका प्रचार वामी,कामी,इस्लामी,ईसाइयत,गैंग ने प्रचार किया और वे सफल भी हुए पाश्चात्यविद से लेकर भारत के हिन्दू इस बिषय पर भ्रामित है ।

इन सब मिथ्या बिषयों का प्रचार प्रसार भी इस लिए हुए की यवन ,तुर्क,अरब,(इस्लामी) यूरोप (ईसाइयों) ने जब धर्मान्तरण करने में असफल हुए तो वे इस तरह के भ्रामक प्रचार प्रसार किया ताकि विखण्डन का बीज बोया जा सके और धतमान्तरण रूपी खेल आसान हो जाय ।


शैलेन्द्र सिंह

Thursday 24 June 2021

द्रौपदी रहस्य




धर्मस्य_सूक्ष्मतवाद्_गतिं (महाभारत ) 

धर्म की गति अति सूक्ष्म है अतः हम जैसे अल्पज्ञ अल्पश्रुत पूर्णतः धर्म बिषयो के गूढ़ रहस्य को समझ पाने में अक्षम है बस हम अपनी बुद्धि बल से ही बिषयो का अन्वेषण करते फिरते है   धर्म के गूढ़ रहस्यों के बिषय में पूर्णप्रज्ञ मनीषी जन ही समझ सकते है 

ठीक ऐसा ही रहस्य यज्ञशेनी द्रोपदी का है ।


 द्रोपदी अयोनिज है जिस कारण उनका जीवन भी  दिब्य और रहस्यपूर्ण है क्यो की उनका आविर्भाव  यज्ञवेदी से हुआ है जिस कारण उनका एक नाम यज्ञशेनी भी हुआ ।


#कुमारी_चापि_पाञ्चाली_वेदिमध्यात्समुत्थिता। (महाभारत आदिपर्व)


जिनका जन्म ही यज्ञवेदी से हुआ हो उनकी पवित्रता पर सन्देह नही किया जा सकता ।

राजा द्रुपद की कन्या होने से उनका एक नाम द्रौपदी भी पड़ा 

साथ ही द्रुपद पाञ्चाल देश का राजा था जिस कारण द्रौपदी का एक नाम पाञ्चाली भी पड़ा । 


द्रौपदी इंद्र की ही पत्नी शचीपति थी 


#शक्रस्यैकस्य_सा_पत्नी_कृष्णा_नान्यस्य_कस्यचित् ।(मार्कण्डेय पुराण ५/२५)


#पूर्वमेवोपदिष्टा_भार्या_यैषा_द्रौपदी (महाभारत अनुशाशन पर्व १९५/३५)


प्रजा के कल्याणार्थ महादेव की आज्ञा से ही इंद्र पत्नी सहित मनुष्य योनि में अवतरित हुए थे ।


#तेजोभागैस्ततो_देवा_अवतेरुर्दिवो_महीम् ।

#प्रजानामुपकारार्थं_भूभारहरणाय_च (मार्कण्डेय पुराण ५/.२०)


#गमिष्यामो_मानुषं_देवलोकाद् (महाभारत आदिपर्व १९५/२६)


देवता :-- दिब्य बिभूतियो को धारण करने के कारण ही वे देवता कहलाते है ।

वे अपनी सङ्कल्प शक्ति से कई प्रकार के रूप धारण करने में सक्षम होते है ।


योगीश्वराः शरीराणि कुर्वन्ति बहुलान्यपि (मार्कण्डेय पुराण ५.२५॥)


पांचों पाण्डव युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव ये सभी के सभी इंद्र के ही अंश से उतपन्न हुए थे स्वयं इंद्र ही अपने आप को पांच अंशो में विभक्त कर (युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव,) के रूप में मनुष्य योनि में अवतरित हुए थे ।


#शक्रस्यांस_पाण्डवा: (महाभारत आदिपर्व १९५/ ३४)


#एवमेते_पाण्डवा_सम्वभुवुर्ये_ते_राजन्_पूर्वेमिन्द्रा (महाभारत आदिपर्व  १९५/३५)


#पञ्चधा_भगवानित्थमवतीर्णः_शतक्रतुः॥ (मार्कण्डेय पुराण ५/२३)


अतः पांचों पाण्डव पांच हो कर भी तात्विक दृष्टि से एक ही थे ऐसे में द्रोपदी पर आक्षेप गढ़ने वाले तो आक्षेप गढ़ सकते है परन्तु गूढ़ रहस्यों को समझ पाने में अक्षम होते है ।


शचीपति जो पूर्व में इंद्र की पत्नी थी वही द्रौपदी रूप में यज्ञवेदी से उतपन्न हुई  थी।


शास्त्रो में द्रौपदी की दिब्यरूपा कहा है दिब्य रूप की दिब्यता भी अलौकिक होगी जिसे समझ पाना हम जैसे सर्वसाधारणो के लिए अगम्य है ।


#द्रौपदी_दिव्यरूपा (महाभारत आदिपर्व  /१९५/३५)


द्रोपदी इंद्र के पांचों अंश पाण्डव को वरण इस लिए करती है की  वह  पांचों पाण्डव स्वयं इंद्र ही थे जो स्वयं दिब्य रूपा हो वे इस रहस्य से कैसे अज्ञात रह सकती है 

अतः द्रौपदी पांच पांडवो की पत्नी होते हुए भी एक ही इंद्र की पत्नी थी ।


देवताओं की दिब्य लीलाओं को भला कौन समझे क्या रहस्य है और क्या नही ।


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तेजोभागैस्ततो देवा अवतेरुर्दिवो महीम् ।

प्रजानामुपकारार्थं भूभारहरणाय च॥५.२०॥


यदिन्द्रदेहजं तेजस्तन्मुमोच स्वयं वृषः ।

कुन्त्या जातो महातेजास्ततो राजा युधिष्ठिरः॥५.२१॥


बलं मुमोच पवनस्ततो भीमो व्यजायत ।

शक्रवीर्यार्धतश्चैव जज्ञे पार्थो धनञ्जयः॥५.२२॥


उत्पन्नौ यमजौ माद्रयां शक्ररूपौ महाद्युती ।

पञ्चधा भगवानित्थमवतीर्णः शतक्रतुः॥५.२३॥


तस्योत्पन्ना महाभागा पत्नी कृष्णा हुताशनात्॥५.२४॥


शक्रस्यैकस्य सा पत्नी कृष्णा नान्यस्य कस्यचित् ।

योगीश्वराः शरीराणि कुर्वन्ति बहुलान्यपि॥५.२५॥


पञ्चानामेकपत्नीत्वमित्येतत् कथितं तव ।

श्रूयतां बलदेवोऽपि यथा यातः सरस्वतीम्॥५.२६॥(मार्कण्डेय पुराण)


शैलेन्द्र सिंह