हिन्दुओ के लिए वेद स्वतः प्रामाणसिद्ध है ईश्वर द्वरा प्रतिपादित बिषय भी यदि वेद विरुद्ध हो तो वे अप्रामाणिक माने जाते है यही वेद की वेदता और हिन्दू होने का प्रथमप्रामाण है ।
अल्पज्ञ अल्पश्रु भ्रामक ब्यक्तियो वामपंथियों ईसाइयों इस्लामिको का कहना है कि शूद्रों को पढ़ने नही दिया जाता था उन्हें जानबूझ कर अशिक्षित रखा जाता था ताकि उसका शोषण कर सके ।
प्रथमतः स्प्ष्ट कर देना चाहता हूं कि वैदिक सनातन धर्म शोषणवादी नही अस्तु पोषणवादी है ऐसा कोई कर्मकाण्ड नही जहाँ समस्त वर्णों को आर्थिक रूप से लाभ नही मिलता हो इस पर मैं कई बार पोस्ट लिख चुका हूं अतः वही बिषय को पुनश्च यहाँ रखने का कोई अर्थ नही बनता ।
दूसरी बात विद्यादि में शूद्रों का भी अधिकार था यह बात
■ श्रुतिस्मृतिइतिहासपुराणादि से सिद्ध है ।
समावेदीय छन्दोग्य उपनिषद में राजा अश्वपति यह घोषणा करते है
कि मेरे राज्य में कोई भी अशिक्षित नही , न ही कोई मूर्ख
■ न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यपः।
नानाहिताग्निर्ना विद्वान् न स्वैरी स्वैरिणी कुतः॥ (छान्दोग्य॰ ५ । ११ । १५)
केवल इतना ही नही त्रेतायुग में इक्ष्वाकु वंश के राजा दशरथ के शासनकाल में भी ऐसा कोई ब्यक्ति देखने को नही मिलता जो अशिक्षित हो ।
■ कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित् ।
द्रष्टुम् शक्यम् अयोध्यायाम् न अविद्वान् न च नास्तिकः ॥(वा0 रा0 १/६/८)
अयोध्या में कही कोई कामी,कृपण, क्रूर,अविद्वान,नास्तिक ब्यक्ति देखने को नही मिलता है ।
अतः इससे स्प्ष्ट प्रामाण हो जाता है कि विद्या आदि में शूद्रों का अधिकार था केवल इतना ही नही शिक्षा दर भी १००% थी तत्तकालीन शासनतंत्र के अधीन भारत के समस्त नागरिक शिक्षित नही है जबकि जिस कालखण्ड में श्रुतिस्मृतिइतिहासपुराणादि का प्रचार प्रसार ईस भूखण्ड पर पूर्णरूपेण था उस कालखण्ड में कोई भी ब्यक्ति अशिक्षित नही था ।
भारत जब यवनों अरबो तुर्को ब्रिटेन की दासता झेल रहा था उसीकालखण्ड में यह अशिक्षिता व्याप्त हुई क्यो की गुरुकुलों को नष्ट करना विश्विद्यालयों को अग्निदाह करना ही मूल कारण रहा ।
शूद्रों का तो शिल्पविद्या में एकक्षत्र राज था ।
वर्णाश्रमधर्मी होने का यही अर्थ होता है कि कोई भी किसी के अधिकारों का हनन न करें स्व स्व धर्म का पालन निष्पक्षता पूर्ण करें
महाभारत जैसे अयाख्यानों में शूद्रकुल में जन्मे हुए विदुर को हस्तिनापुर जैसे साम्राज्य का महामन्त्री बनाया वे नीतिशास्त्र के ज्ञाता धर्माधर्म बिषयों के ज्ञाता तथा साक्षात् धर्म का अंश माना गया यदि सनातन धर्म शोषणवादी अशिक्षित रखने की नीति होती तो स्वधर्मपरायण विदुर को हस्तिनापुर जैसे साम्राज्य का महामन्त्री न बनाया होता ।
एकलब्य के बिषय को लेकर भी भ्रामक प्रचार किया गया है
महाभारत में ही स्प्ष्ट लिखा है कि गुरु द्रोणाचार्य ने एकलब्य को वह विद्या प्रदान की जो न तो पाण्डवो, कौरवो और न ही अश्वथामा को प्रदान की थी ।
इक्ष्वाकु वंश के ही राजा हरिश्चंद्र एक चाण्डाल के यहाँ नौकरी किये अब बिचार कीजिये कि इक्ष्वाकु वंश के राजा को भी खरीदने का सामर्थ्य एक चाण्डाल के पास था कितना धन होगा उस चाण्डाल के पास ??
हमने कभी भी बिषयों पर सत्यासत्य बिचार नही किया अपितु हमने उसी को सत्य मान बैठा जिसका प्रचार वामी,कामी,इस्लामी,ईसाइयत,गैंग ने प्रचार किया और वे सफल भी हुए पाश्चात्यविद से लेकर भारत के हिन्दू इस बिषय पर भ्रामित है ।
इन सब मिथ्या बिषयों का प्रचार प्रसार भी इस लिए हुए की यवन ,तुर्क,अरब,(इस्लामी) यूरोप (ईसाइयों) ने जब धर्मान्तरण करने में असफल हुए तो वे इस तरह के भ्रामक प्रचार प्रसार किया ताकि विखण्डन का बीज बोया जा सके और धतमान्तरण रूपी खेल आसान हो जाय ।
शैलेन्द्र सिंह