Thursday 25 April 2019

ऐतरेय ब्राह्मण



ऐतरेय ब्राह्मण की कथा (Aitareya Brahmana Story)  :
मांडुकी नाम के एक ऋषि थे, उनकी पत्नी का नाम इतरा था। वे दोनों ही भगवान के भक्त थे तथा अत्यंत पवित्र जीवन व्यतीत कर रहे थे। दोनों ही एक-दूसरे का ध्यान रखते थे तथा हंसी-ख़ुशी से समय काटते थे। दुःख था तो केवल एक कि उनके कोई संतान नहीं थी। सोच-विचार के पश्चात पुत्र प्राप्ति की इच्छा से दोनों ने कठिन तपस्या की तथा भगवान से बार-बार पुत्र के लिए प्रार्थना की।

आखिर कुछ समय पश्चात भगवान ने उनकी तपस्या तथा प्रार्थना से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा को पूरा कर दिया। उनके घर में एक पुत्र का जन्म हुआ जो अत्यंत सुंदर तथा आकर्षक था। वह बालक उनकी महान तपस्या का फल था। यद्यपि बचपन से ही वह बालक अलौकिक एवं चमत्कारपूर्ण घटनाओं का जनक था, लेकिन प्रायः चुप ही रहता था। काफी दिनों के पश्चात उसने बोलना शुरू किया। आश्चर्य की बात यह थी कि वह जब भी बोलता ‘वासुदेव, वासुदेव’ ही कहता। आठ वर्ष तक उसने ‘वासुदेव’ शब्द के अतिरिक्त और कोई शब्द नहीं कहा। वह आंखे बंद किये चुप बैठा ध्यान करता रहता। उसके चेहरे पर तेज बरसता तथा आंखों में तीव्र चमक थी।


आठवें ववर्ष में बालक का यज्ञोपवीत संस्कार कराया गया तथा पिता ने उसे वेद पढ़ाने का प्रयास किया। लेकिन उसने कुछ भी नहीं पढ़ा, बस ‘वासुदेव’ नाम का संकीर्तन करता रहता। पिता हताश हो गए और उसे मुर्ख समझते हुए उसकी ओर ध्यान देना बंद कर दिया। परिणाम स्वरूप उसकी माता की ओर से भी उन्होंने मुंह फेर लिया।

कुछ दिनों पश्चात मांडुकी ऋषि ने दूसरा विवाह कर लिया जिससे अनेक पुत्र हुए। बड़े होकर वे सभी वेदो के तथा कर्मकांड के महान ज्ञाता हुए। चारों ओर उन्ही की पूजा होती थी। बेचारी पूर्व पत्नी घर में ही उपेक्षित जीवन व्यतीत कर रही थी। उसके पुत्र ऐतरेय को इसका बिलकुल ध्यान नहीं था। वह हर समय भगवान ‘वासुदेव’ का नाम जपता रहता तथा एक मंदिर में पड़ा रहता।


एक दिन माँ को अति क्षोभ हुआ। वह मंदिर में ही अपने पुत्र के पास पहुंची और उससे कहने लगी-“तुम्हारे होने से मुझे क्या लाभ हुआ ? तुम्हें तो कोई पूछता ही नहीं है, मुझे भी सभी घृणा की दृष्टी से देखते है। बताओ ऐसे जिवन से क्या लाभ है।”

माता की ऐसी दुखपूर्ण बाते सुनकर ऐतरेय को कुछ ध्यान हुआ, वह बोला- “माँ ! तुम तो संसार में आसक्त हो जबकि यह संसार और इसके भोग सब नाशवान है, केवल भगवान का नाम ही सत्य है। उसी का में जाप करता हूं लेकिन अब मैं समझ गया हूं कि मेरा अपनी माँ के प्रति भी कुछ कर्तव्य है। मैं उसको अब पूरा करूंगा और तुम्हे ऐसे स्थान पर पदासीन करूंगा जहां अनेक यज्ञ करके भी नहीं पहुंचा जा सकता।”


ऐतरेय ने भगवान विष्णु की सच्चे ह्रदय से वेदों की विधियों के अनुसार स्तुति की। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न हो गए। उन्होंने साक्षात प्रकट होकर ऐतरेय और उसकी माता को आशीर्वाद दिया- “पुत्र ! यद्यपि तुमने वेदो का अध्धयन नहीं किया है। लेकिन मेरी कृपा से तुम सभी वेदो के ज्ञाता और प्रकांड विद्वान हो जाओगे। तुम वेद के एक अज्ञात भाग की भी खोज करोगे। वह तुम्हारे नाम से ऐतरेय ब्राह्मण कहलायेगा। विवाह करो, गृहस्थी बसाओ तथा सभी कर्म करो, लेकिन सबको मुझे समर्पित कर दो अर्थात यह सोचकर करो कि मेरे आदेश से कर रहे हो। उनमे आसक्त मत होना, तब तुम संसार में नहीं फंसोगे। एक स्थान जो कोटितीर्थ कहलाता है, वहां जाओ। वहां पर हरिमेधा यज्ञ कर रहे है। तुम्हारे जैसे विद्वान की वहां आवश्यकता है। वहां जाने पर तुम्हारी माता की सभी इच्छाएं पूरी हो जाएगी।” इतना कहकर भगवान विष्णु अंतर्धान हो गए।

माता का ह्रदय अपने पुत्र के प्रति बजाय ममता के श्रद्धा से ओतप्रोत हो गया। उसी के कारण तो उसे भी भगवान के दर्शन हुए थे तथा अपनी माता के कारण ही उसने भगवान के नाम के अतिरिक्त कुछ न बोला था। अब दोनों माता और पुत्र भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए हरिमेधा के यज्ञ में पहुंच गए। वहां ऐतरेय ने भगवान विष्णु से संबंधित प्रार्थना का गान किया। उसे सुनकर तथा उनके तेज और विद्व्ता से सभी उपस्थित विद्वान प्रभावित हो गए। हरिमेधा ने उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाकर उनका परिचय प्राप्त किया तथा उनकी आवभगत की।


ऐतरेय ने यहीं पर वेद नवीन चालीस अध्यायों का पाठ किया। ये पाठ अभी तक पूरी तरह अज्ञात थे। बाद में ये पाठ ऐतरेय ब्राह्मण के नाम से विख्यात हुए। हरिमेधा ने ऐतरेय से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया।

ऐतरेय की माता ने अपने पुत्र से जो कामना की थी, वह उसे प्राप्त हो गई थी। भगवान विष्णु की कृपा से ऐतरेय का नाम महर्षि ऐतरेय के रूप में सदा-सदा के लिए अमर हो गया।

Monday 22 April 2019

वासुदेव: सर्वम

वासुदेवः सर्वम्
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गीताप्रेमियों के लिए

            हमारी समस्या तब बढ़ जाती है जब हम श्रुति-शास्त्र के अनुभवों की अनदेखी करने लगते हैं । अब कहा "वासुदेवः सर्वम्" तो आपने सबको वासुदेव मान लिया, अपने को नहीं । यह तो भगवान ने कहा नहीं कि आपको छोड़कर बाकी सब मैं हूँ....! अगर नहीं कहा तो तो सबको वासुदेव मान लिया अपने को क्यों नहीं माना ? फिर वासुदेवः सर्वम् कैसे हुआ ? इसके अतिरिक्त देखिये--- "मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति" ७/७ यहाँ पर कहा मुझसे भिन्न अन्य नहीं है लेकिन यह भी संभव था कि मुझको छोड़कर अन्य कुछ भी श्रीभगवान से भिन्न नहीं है, इसीलिये कहा "किञ्चित्" अर्थात कुछ भी ऐसा नहीं है जो मुझसे भिन्न हो, इस जगत का निमित्त उपादन कारण मैं हूँ और आप भी जगत से भिन्न न होने के कारण मुझसे भिन्न नहीं हो, द्विविधा प्रकृति मुझसे अभिन्न है इसलिये आप भी मुझसे भिन्न नहीं हो ।

           आप जीवन धारण करते हो ? तो "जीवनं सर्वभूतेषु" अर्थात प्राणियों के जीवन का मूलभूत गुण प्राण मैं हूँ । प्राणों का मूल अन्न मैं हूँ "अन्नं वै प्राणः" । अन्न का मूल ब्रह्म मैं हूँ "अन्नं वै ब्रह्म" । अन्न से ही जीवन धारित होता है और वह अन्न मैं हूँ तो तुम मुझसे भिन्न कैसे हो गये ? इस शरीर को धारण करने वाली आत्मा मैं हूँ "अहमात्मा" १०/२० "क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि" १३/२ तुम जो अपने को जानने वाला मानते हो वह कोई और नहीं मैं स्वयं वासुदेव हूँ ऐसा जानो ।

          इस पर एक द्वैतवादी मित्र ने कहा कि इस शरीर में जानने वाले दो हैं । एक जीव और दूसरा आत्मा । जीव मात्र मन, बुद्धि, शरीर सहित संसार को जानता है और ईश्वर इस संसार सहित जीव को भी जानता है । अब इनसे पूछा जाये कि जीव अगर मात्र बुद्धि शरीर सहित संसार को ही यदि जानता है तो उसने कैसे जाना कि कोई ईश्वर है ? और अगर वह जानता है कि कोई ईश्वर है उसे प्राप्त करना चाहिए तो अनजान वस्तु के लिए मन में कल्पना भी नहीं हो सकती है तो प्राप्ति की बात कैसे की जा सकती है ? इसका मतलब जिसे आप जीव कह रहे हैं वह ईश्वर को भी जानता है, जानता है तो किस रूप में जानता है ? यदि जीव ईश्वर को जानता है तो ईश्वर व्याप्य और जीव व्यापक होगा और यदि ईश्वर जीव को जानता है तो जीव व्याप्य और ईश्वर व्यापक होगा । दोनो व्याप्त व्यापक हो नहीं सकते अतः आप कैसे कह सकते हैं कि ईश्वर ही जीव को जानता है जीव नहीं । आपकी ही बात से आपकी बात की हानि हो रही है । फिर श्रुति-शास्त्र सिद्धांत को चोट पहुंचे तो क्या आश्चर्य ?

           अतः आप जीव को ही व्याप्य कहेंगे ये स्वाभाविक है । अब विचार करो कि व्याप्य का अस्तित्व क्या है ? घड़ा है, जिस समय घड़ा दिख रहा है उस समय भी वह मिट्टी ही है क्योंकि घड़ा बनने से पहले भी मिट्टी ही थी और घड़ा बनने के बाद भी वह मिट्टी ही है । अगर आप घड़ा और मिट्टी अलग मानते हो तो हम कहते हैं घड़े से मिट्टी अलग करके फेंक और घड़ा ले जाओ । तो घड़ा बचेगा ? नहीं न ? इसी प्रकार जीव व्याप्य है ईश्वर व्यापक है, ईश्वर से भिन्न कोई जीव नहीं है क्योंकि व्याप्य व्यापक से भिन्न नहीं हो सकता । जीव प्रकाश्य है ईश्वर प्रकाशक है । जगत प्रकास्य प्रकासक रामू । मायाधीस ज्ञान गुन धामू ।। सब कर परम प्रकासक जोई । राम अनादि अवधपति सोई ।। सब कर परम प्रकाशक कहने का भव यह है कि जो द्विविधा प्रकृति भगवान ने बताया उसमें अपरा अर्थ जड़ का प्रकाशक परा अर्थात जीव है और और इन दोनों का प्रकाशक ब्रह्म है जैसा कि "अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा । ७/६ ।

              भगवान कहते हैं "जीवभूतां" ७/५ वह जीव है नहीं जीव भाव को प्राप्त हुआ है, उसने जीवत्व रूप उपाधि को स्वयं स्वीकार करके व्यापक अहंता का त्याग करके सीमित अहंता को स्वयं स्वीकार करके स्वयं को बांध लिया है । जब मुक्त होना चाहेगा तब सीमित अहंता को व्यापक अहंता में हवन करके, "त्वं" पदार्थ का "तत्" पदार्थ में लय करके "अहमात्मा" १०/२० के रूप में अपने आपको देखेगा । वह स्वयं सबका एक मात्र क्षेत्रज्ञ होगा । वह "वासुदेवः सर्वम्" के रूप में अपने आपको देखेगा । अर्थात वह मुझसे अभिन्न अपने को सर्वत्र मुझ व्यापक सर्वात्मा के रूप में जानेगा । वासुदेवः सर्वम् का यही भाव है । ओ३म् !

                                         

Tuesday 16 April 2019

हनुमान जी वानर थे या मनुष्य


वादी:--हनुमान जी को हम वेदों का विद्वान और उच्च
कोटि घोषित करने का प्रयास कर रहे हैं आप उन्हें
बन्दर बनाना चाहते हैं। आप विद्वान श्रेष्ठ हैं , यह
बताये की हनुमान जी का ज्यादा मान पशु बन्ने में हैं
अथवा विद्वान मनुष्य बनने में हैं।
ईश्वर ,देव और उपदेव में क्या अंतर हैं ? शास्त्र से प्रमाण करें

समाधान:--- हनुमानजी का ज्यादा मान पशु बन्ने में हैं अथवा विद्वान
मनुष्य बनने में हैं।" --इसका उत्तर हमें स्वयं
महर्षि वाल्मीकि दे रहे हैं , रावण वध के विषय में
देवों की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने स्वयं देवताओं
को वानर रूप में अपने समान पराक्रमी और बुद्धिमान
पुत्रों को उत्पन्न करने की आज्ञा दी --सृजध्वं
हरिरूपेण पुत्रान्स्तुल्यपराक्रमान् --वा.रा.
बा.का.१७/६,उन वानर वीरों में हनुमान जी पवन देव के
औरस पुत्र हुए --" मारुतस्यौरसः श्रीमान् हनूमान् नाम
वानरः " -१७/१६, ये सबसे अधिक बुद्धिमान और
बलवान हैं --" सर्व वानर मुख्येषुबुद्धिमान्
बलवानपि-१७/१७,इस प्रकार वहां अनेक देव
योनियों की स्त्रियों से वानरों की उत्पत्ति का वर्णन
है ,वानर राज सुग्रीव बालि | ये आज कल जैसे वानर नही थे ||
जहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण की गति नही वहां परम आप्त
महर्षि वाल्मीकि के अतिरिक्त कौन है जो इस विषय
पर अन्यथा कल्पना करने का दुस्साहस कर सके |
अतः ये वानर ही थे , इन्हें हम न तो वानर बनाना चाहते हैं न मनुष्य ही | ये जो थे और हैं वह महर्षि के
वचनों से स्पष्ट है |आप्त पुरुषों के वचन से विरुद्ध
कोई कल्पना सत्य नही हो सकती , वह केवल
कल्पना ही रहेगी |
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आचार्य सियारामदास नैयायिक
भैया विवेक जी आपने पूंछा कि--" ? शास्त्र प्रमाण के साथ स्पष्ट कीजिये।"--यहाँ पर मैं आपसे
इतना ही कहना चाहता हूँ कि जब वाल्मीकि रामायण
जैसे प्रामाणिक इतिहास
जो सभी ऋषियों को प्रमाणतया मान्य है --
उसी का अपलाप करके हनुमान जी के स्वरूप को विकृत
करने का कुत्सित प्रयास किया गया तो पहले हमें यह
पता चले कि शास्त्र प्रमाण से यहाँ क्या अभिप्रेत
है ? जो सर्व मान्य था उसका अपलाप कर दिया गया |
विकृत करने वाले किसे शास्त्र मानते हैं ?
| क्या वाल्मीकि रामायण शास्त्र नही ? क्या उससे
समाज में किसके प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए --
यह शिक्षा नही मिलती ? जिन हनुमान
जी को आततायी दुराचारी राक्षस और स्वयं रावण
तथा ग्रंथकार महर्षि वाल्मीकि आदि उद्घोष पूर्वक
वानर कहकर उनके चरित्र का वर्णन किये , |
उनके ऊपर आक्षेप कर्ता ने तो कोई प्रमाण
नही दिया ,और हमने जो प्रमाण प्रस्तुत किया -उस
पर पुनः प्रमाण ? रही बात उपदेव की तो जैसे कुम्भ
और उपकुम्भ ये दो शब्द हैं | इनमे कुम्भ सब समझते
हैं पर उपकुम्भ ,व्याकरण का मर्मज्ञ ही समझ
सकता है --कुम्भस्य समीपम् उपकुम्भाम--कुम्भ के
जो समीप हो उसे उपकुम्भ कहते हैं  |
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आचार्य सियारामदास नैयायिक
इन्हें पशु समझने की भूल नही करनी चाहिए ,क्योंकि "
ज्ञानेन हीनः पशुभिः समानः -कहा गया है , और ये
वानर के आकार में होते हुए भी ज्ञान संपन्न हैं |
इसीलिये तो रावण भी  बोल पड़ा की मैं उसे
वानर नही मानता , " नह्यहं तं कपिं मन्ये
कर्मणा प्रति तर्कयन्--वा. रा. सु. का.-४६/६,ओर
भी --" नैवाहं तं कपिं मन्ये यथेयं
प्रस्तुता कथा --४६/७, मैं उसे वानर नही मानता जिस
प्रकार की घटना उसके और राक्षसों के विषय में
प्रस्तुत की गयी है | रावण की यह
स्थिति है तो आज कल के लोग हनुमान जी की उस
अद्भुत क्षमता को देखकर उन्हें वानर मानने को तैयार
न हों तो क्या आश्चर्य ?
देखिये --" तुम्हारा तेज वानर का नही है ,तुम केवल रूप
मात्र से वानर हो " --" नहि ते वानरं तेजो रूप मात्रं
हि वानरम् "|--सु,का,५०/१०, अब हनुमान
जी अपना परिचय देते हुये कहते हैं --" यह मेरी जाति है
अर्थात् मैं वानर जाति का हूँ ,मैं वानर हूँ ओर
यहाँ आया हूँ--" जातिरेव मम
त्वेषा वानरोsहमिहागतः "--सु .का . ५०/१४,अब इस
सुस्पष्ट वचन से जिसको हनुमान जी के कपि रूप में
संदेह रह जाय उसे ब्रह्मा जी भी नही समझा सकते!

Sunday 14 April 2019

महर्षि वेद व्यास और वाल्मीकि

श्रीमद्रामायणके रचयिता भगवान् वाल्मीकि और महाभारतके रचयिता भगवान् वेदव्यासजीके विषममें जितनी भ्रान्तियाँ हैं ,उतनी अन्य किसी क्रान्तदर्शी महर्षिके विषयमें नहीं ।
मैकालेकी अनौरस संतान वामपंथियोंने भगवान् वाल्मीकि और व्यासजीको किरात-भील-मल्लाह आदि बना दिया है ,जबकि यह शास्त्र विरुद्ध है ,असत्य है ।
आदिकवि भगवान् वाल्मीकि आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकिरामायणमें स्वयंका परिचय देते हैं , वे किसी किरात-दस्यु कुलोत्पन्न नहीं थे ,अपितु ब्रह्मर्षि भृगुके वंशमें उत्पन्न ब्राह्मण थे । रामायणमें भार्गव वाल्मीकिने २४००० श्लोकोंमें श्रीराम उपाख्यान ‘रामायण’ लिखी ऐसा वर्णन है –
“संनिबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विंशत्सहस्र कम् ! उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना !! ( वाल्मीकिरामायण ७/९४/२५)
महाभारतमें भी आदिकवि वाल्मीकि को भार्गव (भृगुकुलोद्भव) कहा है , और यही भार्गव रामायणके रचनाकार हैं –
“श्लोकश्चापं पुरा गीतो भार्गवेण महात्मना !
आख्याते रामचरिते नृपति प्रति भारत !!” (महाभारत १२/५७/४०)
शिवपुराणमें यद्यपि उनको जन्मान्तरका चौर्य वृत्ति करने वाला बताया है तथापि वे भार्गव कुलोत्पन्न थे । भार्गव वंशमें लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण थे ,उन्हीका दूसरा नाम ऋक्ष था । ब्राह्मण होकर भी चौर्य आदि कर्म करते थे और श्रीनारदजीकी सद् प्रेरणासे पुनः तपके द्वारा महर्षि हो गये ।
“भार्गवान्वयसम्भवः !!
लोहजङ्घो द्विजो ह्यासीद् ऋक्षनामोन्तरो हि स: !
ब्राह्मीं वृत्तिं परित्यज्य चोर कर्म समाचरेत् ! नारदेनोपदिष्टस्तु तपोनिष्ठां समाश्रितः !!
इत्यादि वचनोंसे भृंगु वंश में उत्पन्न लोहजगङ्घ ब्राह्मण जिसे ऋक्ष भी कहते थे , ब्राह्मण वृत्ति त्यागकर चोरी करने लगा था , फिर नारदजीकी प्रेरणासे तप करके पुनः ब्रह्मर्षि हो गये । उन्हें किरात-भील कुलोत्पन्न कहना अपराध है । २४ वे त्रेतायुगमें भगवान् श्रीराम हुए तब रामायणकी रचनाकर आदिकवि के रूपमें प्रसिद्ध हुए । विष्णुपुराणमें इन्हीं भृगुकुलोद्भव ऋभु वाल्मीकिको २४ वे द्वापरयुगमें वेदोंका विस्तार करने वाले २४वे व्याजजी कहा है –
“ऋक्षोऽभूद्भार्गववस्तस्माद्वाल्मीकिर्योऽभिधीयते (विष्णु०३/३/१८) । यही भार्गव ऋभु २४ वे व्यासजी पुनः ब्रह्माजीके पुत्र प्राचेतस वाल्मीकि हुए । श्रीमद्वाल्मीकिरामायणमें वाल्मीकि भगवान् श्रीरामचन्द्रको अपना परिचय देते हैं –
“प्रचेतसोऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन ! (वाल्मीकिरामायण ७/९६/१८)
स्वयं को प्रचेताका दशवाँ पुत्र वाल्मीकि कहा है । ब्रह्मवैवर्तपुराणमें कहा है –
” कति कल्पान्तरेऽतीते स्रष्टु: सृष्टिविधौ पुनः !
य: पुत्रश्चेतसो धातु: बभूव मुनिपुङ्गव: !!
तेन प्रचेता इति च नाम चक्रे पितामह: !
– अर्थात् कल्पान्तरोंके बीतने पर सृष्टाके नवीन सृष्टि विधानमें ब्रह्माके चेतस से जो पुत्र उत्पन्न हुआ , उसे ही ब्रह्माके प्रकृष्ट चित्तसे आविर्भूत होनेके कारण प्रचेता कहा गया है ।
इसीलिए ब्रह्माके चेतससे उत्पन्न दशपुत्रोंमें वाल्मीकि प्राचेतस प्रसिद्ध हुए ।
मनु स्मृतिमें वर्णन है ब्रह्माजीने प्रचेता आदि दश पुत्र उत्पन्न किये –
“अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ! पतीत् प्रजानामसृजं महर्षीनादितो दश !! मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलसत्यं पुलहं क्रतुम् ! प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदमेव च !! (मनु०१/३४-३५) भगवान् वाल्मीकि जन्मान्तरमें भी ब्राह्मण (भार्गव) थे और आदिकवि वाल्मीकिके जन्ममें भी (प्राचेतस) ब्राह्मण थे !
शिवपुराणमें कहा है प्राचेतस वाल्मीकि ब्रह्माके पुत्रने श्रीमद्रामायणकी रचनाकी ।
” पुरा स्वायम्भुवो ह्यासीत् प्राचेतस महाद्युतिः ! ब्रह्मात्मजस्तु ब्रह्मर्षि तेन रामायणं कृतम् !! ”
महाभारतकार भगवान् श्रीकृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी भी भील-मल्लाह नहीं वासिष्ठकुलोद्भव थे । व्यासजीकी माता सत्यवती अमावसु पितृकी मानसी कन्या अच्छोदा थीं , जिनका पितृलोकसे पतन होकर मर्त्यलोकमें कुरुवंशी महाराज चैद्योपरिचरवसुकी कन्या मत्स्यगन्धा के रूपमें जन्मी थीं । व्यासजीके पिता महर्षि पराशर भगवान् वसिष्ठके पौत्र और शक्तिके पुत्र थे ।
भगवान् व्यासजीकी माता सत्यवती भीष्मजीसे कहती हैं –
“यस्तु राजा वसुर्नाम श्रुतास्ते भरतर्षभ !
तस्य शुक्रादहं मत्स्याद् धृताकुक्षौ पुरा किला !!
मातरं मे जलाद् धृत्वा दाश: परमधर्मवित् !
मां तु स्वगृहमानीय दुहितृत्वे ह्यकल्पयत् !!
(महाभारत आदि पर्व १०४-६)
– भरत श्रेष्ठ ! तुमने महाराज वसुका नाम सुना होगा । पूर्वकालमें मैं उन्हीं के वीर्यसे उत्पन्न हुई थी । मुझे एक मछलीने अपने पेट में धारण किया था(इसीलिये मत्स्यकी गन्ध उनके शरीर से आती थी जिससे उनका नाम मत्स्यगन्धा प्रसिद्ध था ) । एक परम् धर्मज्ञ मल्लाहने जलसे मेरी माताको पकड़ा ,उसके पेट से मुझे निकाला और अपने घर लाकर अपनी पुत्री बनाकर रखा !”
इस वृत्तान्त से माता सत्यवती कुरुवंशी महाराज उपरिचरिवसुकी औरस पुत्री सिद्ध होती हैं , जिन्हें दाशराज मल्लाहने पालके बड़ा किया था ।
इन्हीं मत्स्यगन्धासे महर्षि पराशरने कन्यावस्थामें व्यासजी को उत्पन्न किया था ।
“पराशर्यो महायोगी स बभूव महानृषि: !
कन्यापुत्रो मम पुरा द्वैपायन इति श्रुतः !!” (आदिपर्व०१०४/१४)
भगवान् व्यासजी की माता क्षत्रिय राजा वसुपुत्री थीं और पिता महर्षि पराशर वासिष्ठ ब्राह्मण थे , फिर व्यासजी को मल्लाह ,केवट ,निषाद कहना निरीह मूर्खता ही नहीं ,महान् अपराध भी है ।

Saturday 13 April 2019

ऐलूष कवष शुद्र नही द्विज थे

महर्षि ऐलूष कवष  ~~~~

'ऐतरेय ब्राह्मण'  में कथा आती है कि भृगु, अंगिरा आदि ऋषियों ने सरस्वती नदी के तट पर यज्ञ आरम्भ किया।

इस यज्ञ में भाग लेने के लिए ऐलूष के पुत्र कवष भी पहुँचे, परन्तु ऋषियों ने उनको जुआरी समझकर उनसे कहा === "(दास्या: पुत्र:) कितव: अब्राह्मण: कथं नो मध्ये अदीक्षिष्ट इति)   ---- अर्थात् 'दासीपुत्र, जुआरी, अब्राह्मण, अदीक्षिष्ट-- हम लोगों के बीच कैसे दीक्षित हो सकता है ?'

ऐसा कहकर उन्होंने यज्ञशाला से बाहर सरस्वती नदी से अत्यंत दूर निर्जन स्थान पर ले जाकर उसे छोड़ दिया, जिससे वह सरस्वती नदी का जल न पी सके और प्यासा ही मर जाये।

वे प्यास से अत्यंत व्याकुल थे और पूर्व जन्म की तपस्या तथा पुण्यकर्म के प्रभाव से ऋग्वेद दशम् मण्डल के तीसवें सूक्त 【वरुण-सूक्त】 का उन्हें ज्ञान था।

उनके वरुण-सूक्त के जप के प्रभाव से वरुण देवता ने उनपर कृपा की।
वरुण जी की कृपा से सरस्वती नदी का जल प्रवाह उनकी ओर बहने लगा, उन्होंने यथेष्ट जल पीकर अपनी प्यास शांत की।

तब देवताओं ने प्रसन्न होकर ऋषियों को कवष की शुद्धि का परिचय दिया।
ऋषियों ने अपने उपास्य देवता के द्वारा कवष की प्रशंसा सुनकर पश्चाताप किया।

ऋषि आपस में कहने लगे कि जिसकी उपास्य देव भी स्तुति करते हैं, वह अनादर तथा निकाले जाने के योग्य नहीं है।
 अतः ऋषियों ने उन्हें बुलाकर यज्ञ में दीक्षित किया।           【ऐतरेय ब्राह्मण-- २,२,१९】

यह तो हुआ उनका जीवन-चरित्र।   
अब आइये आर्यसमाजियों, वामपंथीयों, अंग्रेजों आदि षड्यंत्रकारीयों द्वारा उनके जीवन-चरित्र को लेकर किये गये दुष्प्रचार पर विचार करें ~~~~~~~~~~~~~~~

शंका==  आजकल के सुधारवादी तथा वर्णाश्रम को न मानने वाले मन्त्र में आये हुये 'दास्या: पुत्र:' , 'कितव:' तथा 'अब्राह्मण'  शब्द को देखकर इनको शूद्र कहते हैं।

समाधान==  वेदभाष्यकार श्री सायणाचार्य जी इन तीनों शब्दों को निंदार्थक मानते हैं।
ऐलूष कवष जन्म से ब्राह्मण होने पर भी "जुआ खेलना वर्जित है" , इस बात को नहीं जानते थे। वेदज्ञान से रहित होने से ऋषियों ने 'दास्या: पुत्र:, अब्राह्मण' शब्द से अति कटु वचन कहे (गालियां दी)।

ऋषियों ने 'दास्या: पुत्र:' आदि  उसके जुआरीपन को दूर करने के लिए उसे दण्ड देने तथा सुधार के लिए कटूक्तियां कही।

जैसे माता-पिता अपने उस पुत्र को, जो अधिक खेलता हो, पढ़ाई नहीं करता ;  उसकी निंदा करते हुये माता-पिता अपने पुत्र को सुअर, गधा, बंदर कहकर डांटते है।

तो जैसा वह बालक माता-पिता द्वारा ऐसा कहने पर ही गधा, सुअर नहीं हो जाता ; वैसे ही ऋषियों द्वारा उसे दासीपुत्र तथा अब्राह्मण कहने से वह शूद्र नहीं होता।

'दास्या: पुत्र:'  में अलुक् समास वाला शूद्र का पुत्र अर्थ नहीं है, किन्तु कवष जुआरी की निंदार्थक है।

इसीलिए इसपर भाष्यकार सायणाचार्य जी भाष्य में लिखते हैं---- 'दास्या: पुत्र: इत्युक्ति---- रधिक्षेपार्थ:।'     दासीपुत्र वचन अक्षेपार्थ है, शूद्रापुत्र कहने में इसका तात्पर्य नहीं है।

व्याकरण शास्त्र में 'षष्ट आक्रोशे' 【६,३,२१】  अर्थात् षष्टी विभक्ति आक्रोश अर्थ में आई है। वे ब्राह्मण होने पर भी जुआ खेलते थे, इससे आक्रोशित होकर उन्हें दासीपुत्र कहा गया है।

दासीपुत्र केवल व्याकरण से ही सिद्ध नहीं होता, बल्कि साहित्य में भी गाली के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।

महाकवि कालिदास प्रणीत "अभिज्ञानशाकुन्तलं" नाटक के द्वितीय अंक में सेनापति के लिए कहा है कि-----

 'गच्छ ! भो दास्य: पुत्र:। ध्वंसितस्ते उत्साह वृत्तान्त।'

इसी नाटक के तीसरे अंक में भी----

'किमत्र उज्जैन्याम् कोऽपि चोरो नाऽस्ति, य एतद् दास्या: पुत्रं  (स्वर्णभाण्डम्) नापहरति'     इस वाक्य में स्वर्ण के पात्र की दासीपुत्र कहकर निंदा की गई है।

यही शब्द शूद्रक प्रणीत "मृच्छकटिक" नाटक आदि अनेक ग्रन्थों में आया है।

जैसे शास्त्रों में अन्य पशु-पक्षियों की अपेक्षा गाय तथा घोड़ों की प्रशंसा करते हुए कहा गया है---

'अपशवोवा अन्ये गवाश्वेभ्य:।'  'गौ तथा घोड़ों के अतिरिक्त अन्य सब अपशु है।'

तो जैसे गौ तथा घोड़ों को छोड़कर यहां अन्य सब अपशु नहीं हो जाते, किन्तु इस वचन का तात्पर्य गौ तथा घोड़ों की प्रशंसा में है।
वैसे ही 'अब्राह्मण' निंदार्थक है।

संस्कृत में निषेधात्मक छः अर्थों में कहा गया है---

"तत्सादृश्यमभावश्च तदन्यत्वं तदल्पता।
अप्राशस्त्यं विरोधश्च नञर्थाः षट् प्रकीर्तिताः।।"

अर्थात् समानता, अभाव, सद्चित्र, अल्पनिंदा तथा विरोध, इन छः अर्थों में 'नञ्' कहा जाता है। ~~~

१. तद्सदृश== अब्राह्मण अर्थात् ब्राह्मणेतर स्वभाव वाले, ब्राह्मण की निंदा वाले अर्थ में अब्राह्मण।

२.  अभाव:== अपापम्।

३. तद्भिन्न== घोड़े से अतिरिक्त अनश्व ।

४.  अल्प==  यथा अनुदराकन्या---  बहुत पतली कन्या को अनुदरा कहा गया है।

५. अप्राशस्त्य=  अपशवोवा--- अन्ये गो अश्वेभ्य:।  गौ तथा घोड़े के अतिरिक्त अन्य पशु प्रशंसनीय नहीं है।

६.  विरुद्ध==  अधर्म अथवा अप्रशंसनीय ।

तो प्रशंसा रहित धर्म वाला 'कवष' जुआरी होने के कारण उन्हें अब्राह्मण कहा।

जो ब्राह्मण जन्म पाकर भी खड़े होकर पेशाब करता है, 'नञ्' 【२/२/६】 इस सूत्र के भाष्य में गुणहीन ब्राह्मण का उदहारण देते हुये पतञ्जलि जी ने लिखा है-----

"अब्राह्मणोऽयं यस्तिष्ठन् मूत्रयति अब्राह्मणोऽयं यस्तिष्ठन् भक्षयति"

इसकी व्याख्या करते हुए श्री कैयट लिखते हैं----- 

"तप: श्रुतयोरभावाद् निंदया अत्र अब्राह्मण: शब्द प्रयोग:। तत्र जाति भावे अवयवे समुदाय-- रूपारोपाद् ब्राह्मण शब्द प्रयोग:।'

अर्थात् वहां ब्राह्मण शब्द तपस्या तथा श्रोत्र के अभाव वाले ब्राह्मण में प्रयुक्त हुआ है, वहां पर जाति मात्र अंग में समुदाय के आरोप से ब्राह्मण शब्द प्रयुक्त हुआ है।'
अब्राह्मण के 'नञ्' शब्द के प्रयोग से ब्राह्मण की तपस्या तथा शास्त्रज्ञान की निवृत्ति प्रकट होती है।

कुछ लोग कल्पना करते हैं कि जब याज्ञिक ब्राह्मणों ने कवष को अपमानित करके सरस्वती नदी के उस पार निर्जल एवं निर्जन स्थान पर छोड़ दिया, तब उसने तपस्या करके ऋग्वेद का पूर्णज्ञान प्राप्त किया।
परन्तु उनका यह वचन भी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि उस स्थान पर कोई भी गुरुकुल नहीं था। और फिर चार-पांच मिनट के अंदर कोई भी व्यक्ति वेद नहीं पढ़ सकता।

उनपर सरस्वती देवी की कृपा हुई तथा उनको चालीस अध्याय वाला "अपोनप्ष्त्रीय सूक्त" का प्रत्यक्ष हुआ।
इस सूक्त के मन्त्रद्रष्टा कवष ऋषि जन्म से ही ब्राह्मण सिद्ध होते हैं, शूद्र नहीं।

देवी-देवताओं की कृपा से जुआ खेलना भी छूट गया। ऋग्वेद 【१०/३४/१३】 में ब्राह्मण के लिए "अक्षौर्मादिव्य:" अर्थात् 'ब्राह्मण के लिए पाशा नहीं खेलना चाहिए' आया है।

शास्त्रज्ञान से रहित कुछलोग इनकी माता का नाम इलुष दासी बताते हुये इन्हें दासीपुत्र कहते हैं।

उनका यह कथन असत्य है, क्योंकि स्त्री का नाम अकारान्त न होकर आकारान्त होता है।
जैसे-- रमा, कृष्णा, सत्या आदि।

वास्तव में इनके पिता का नाम ऐलूष था, उनके पुत्र होने के कारण इन्हें ऐलूष-कवष कहते हैं।

Monday 1 April 2019

कश्मीर

कश्मीर का भारतीय दृष्टि से खींचा गया एकदम सत्य चित्रण - वहां तैनात मेरे नाते, रिश्तेदार, मित्र, सभी एकमत हैं कि कश्मीर में सेवा एक घुटन भरा अनुभव है, क्योंकि उन्हें भारतीय एलीट वर्ग द्वारा पोषित कश्मीरियों जैसे कृतघ्नों को झेलना ही नहीं पड़ता बल्कि उनके हाथों उत्पीड़ित भी होना पड़ता है। 

"सबसे ज्यादा आजादी कश्मीर में है। किन्तु समाज में झूठी अफवाह कम्युनिस्ट/जेहादी फैला रहे हैं। कश्मीर घाटी पूरे जम्मू कश्मीर राज्य के मात्र 15% क्षेत्रफल का प्रतिनिधित्व करती है, उसमें से भी मात्र 5 % क्षेत्रफल जो कि शहरी आबादी को दर्शाता है सारे अतिवादी आतंकवाद का केंद्र है।

लगभग सारी पत्थरबाजी यहीं पर होती है | जम्मू और लद्दाख क्षेत्र पूर्णतः शांत है और देश के साथ है | इस 5% हिस्से को पूरा कश्मीर समझना JNU/DU के Communist छात्रों की नासमझी के अतिरिक्त कुछ नहीं है |

इसी प्रति-विद्रोही क्षेत्र के कुछ आंकडे प्रस्तुत हैं......

1. आबादी और क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे ज्यादा रोजगार इसी कश्मीर क्षेत्र में है। प्रतिव्यक्ति आय भी अन्य बीमारू राज्यों की तुलना में कई गुना ज्यादा है। यहां लगभग हर घर में सरकारी कर्मचारी मिल जायेंगे।

2. यहाँ 68% मुस्लिम (बहुसंख्यक) आबादी होने के बावजूद, अल्पसंख्यक वर्ग का सारा लाभ यहाँ के मुस्लिमों को मिलता है। गैर-मुस्लिमों व शियाओं को सिर्फ जूठन (exceptions) मिलता है|  ट्रान्सफर/पोस्टिंग से लेकर छात्रवृति/अनुदान सबमें सुन्नी मुस्लिमों का कब्ज़ा है ।

3. यहाँ पर अकुशल मजदूर की दिहाड़ी/Daily Wage ₹500 से शुरू होती है। ये इलाका इतने पैसे वाला है कि शायद ही कोई कश्मीरी आपको मजदूरी करता मिलेगा। यहाँ पे मजदुरी यूपी, बिहार, बंगाल के लोग करते हैं। जो हर सड़क चौराहे पर अपने रंग और भाषा के आधार पे साफ़ नज़र आ जायेंगे।

4. सबसे ज्यादा पथराव वाले क्षेत्रो में मकान की कीमत करोडों में होती है। UP, बिहार के अमीरों के जैसे मकान  यहाँ के मध्यम वर्ग वालों / तथाकथित बेरोजगारों के होते  है।

5. यहां की आय का सबसे बड़ा स्रोत केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही असीमित खरबो रूपये की सहायता में किया गया भ्रष्टाचार, सरकारी नॉकरी, अरेबियन देशो और ISI से जिहाद/पथराव के लिए दिया जा रहा पैसा है।

दूसरा स्रोत सेब के बगीचे, आखरोट, केसर, बादाम और पर्यटक हैं।

तीसरा बड़ा स्रोत यहाँ पर उपस्थित फ़ौज(Army/paramiltary) से राशन, सामान, निर्माण कार्यो, इंटेलिजेंस के रूप में प्राप्त हो रहा कमीशन है।

ध्यान देने वाली बात ये है कि फ़ौज के हटते ही लाखो लोग बेरोजगार हो जायेंगे क्योंकि इनकी जीविका फ़ौज पर ही टिकी है।

6. यहाँ इतनी समृद्धि है कि लोगो का सामान्य भोजन गोश्त बन गया है। अन्य मामलों में कश्मीरी आजादी की डींग हांकने के लिए भारतीय संविधान के विशेष प्रावधान धारा 370 पर इतराते नहीं थकते परंतु इसी धारा के कारण Indian Penal Code (IPC) के स्थान पर कश्मीर में लागू "रणवीर पीनल कोड" (RPC, कश्मीर के हिंदु महाराजा द्वारा लागू दंड संहिता) में गौवध का पूर्ण निषेध होने के बावजूद यहाँ खुले आम न केवल गौवध होता है अपितु गौमांस खुले आम चौराहों पर बेचा जाता है |

7. यहाँ के बच्चे इतने आजाद हैं कि इन्हें परीक्षा में मात्र 10 में से मात्र 5 प्रश्न करने होते हैं, परीक्षा देना न देना इनकी इच्छा पर निर्भर रहता है। नौकरी दिलवाने के लिए केंद्र सरकार इन्हे अखिल भारतीय टूर का इंतजाम कराती है, भारी भरकम छात्रवृति देती है।

दिल्ली/मुम्बई के 5 सितारा होटलों में रखके इंटरव्यू करवाती है। DU, JNU, LKO बंगलौर आदि यूनिवर्सिटी में इन्हें स्कॉलरशिप देकर पढ़ाया जाता है।

ये अलग बात है कि ये वहीं से भारत की बर्बादी के नारे लगाते हैं।

8. यहाँ की लड़कियां बहुत ही खूबसूरत हैं। अगर कोई कश्मीरी लड़की गैर मुस्लिम से शादी कर ले तो वहाँ की लोकल पोलिस/जेहादियों की मदद से उसे मार डालने पर उतारू हो जाती है या रिश्ते को किसी भी प्रकार से ख़त्म करने के लिए बाध्य कर दिया जाता है .... जिसके कारण ऐसा दुस्साहस कोई करने की हिम्मत नहीं करता।

9. यहाँ गांव में स्कूल भले ही न हो, किन्तु बड़ी-बड़ी मस्जिदें जरूर मिलेंगी, जहाँ इस्लाम/शांति की जगह सिर्फ फिलिस्तीन, इस्रायल, अमेरिका, सीरिया, बगदादी, काफिर, ISIS, पाकिस्तान, तथाकथित आजादी की ही बातें होती हैं। कश्मीर की मस्जिदें राजनीति का केंद्र बन चुकी हैं।

10. यहाँ पर सरकारी नौकरी में जाति, धर्म और क्षेत्र देख के प्रायः भर्ती की जाती है। जम्मू कश्मीर के लगभग सभी बड़े/छोटे विभागों पर कश्मीरी सुन्नी मुसलमानों का कब्ज़ा है। पूरे जम्मू कश्मीर का लगभग जेहादिकरण हो चुका है। भ्रष्टाचार को ये पूर्णतः जायज मानते है क्योंकि ये पैसा केंद्र सरकार (काफिर देश का जजिया) द्वारा दिया जाता है।

11.कश्मीरी सेना और अर्धसैनिक बलों को कश्मीर से इसलिए हटाना चाहते है...क्योंकि ये दोनों गैरमुस्लिमों का संगठन है। इनका उद्देश्य कश्मीर को पाकिस्तान (Land of Pure) बनाना है। कश्मीरी हिंदुओं के पलायन के बाद यही आखिरी बाधा है, कश्मीर के इस्लामिक राष्ट्र बनने में।

12. कश्मीरी क्षेत्र में उपस्थित गुरूद्वारे/पुराने मंदिरों की सुरक्षा के लिए पोलिस/पैरामिलिटरी लगायी गयी है। इसके बावजूद जुमे के नमाज के बाद इन मंदिरों पर भी पथराव होता है। यदि मंदिरो से फ़ौज हटा ली जाय तो उसे तुरंत तोड़ दिया जायेगा।

13.यहाँ पर जो कश्मीरी हिंदु वापस लौट के आये थे, उनकी सुरक्षा के लिए भी पोलिस लगायी गयी है, लेकिन उन्हें पर्याप्त सुरक्षा नही दी गई।

स्थानीय पुलिस सुरक्षा कम, कश्मीर में वापस लौटे हिन्दुओं पर निगरानी ज्यादा रखती है कि कहीं ये हिंदुस्तान के लिए कुछ लिख, बोल या देशभक्ति का काम तो नहीं कर रहे। इन जगहों पर अर्धसैनिक या सेना सुरक्षा के लिए नहीं लगायी जाती क्योंकि इसमें हिन्दू ज़्यादा हो सकते हैं।

14. कश्मीरी पोलिस का लगभग जेहादिकरण हो चूका है। सब पत्थरबाजों से सहानुभूति रखते है और cross agent के रूप में गुप्त सूचनाएं लीक करते है। कश्मीर की जेल ऐयाशी का अड्डा है। घर में आतंकवादियो/अपराधियो को जो सुविधा नहीं मिलती वह जेलो में दी जाती है। इसलिए कश्मीरी अतिवादी न पोलिस से डरते है न ही जेल जाने से। यहाँ तक ये जेलें विभिन्न उग्रवादियों के बीच co-ordination का काम करती है और पत्थरबाज जेलों से निकलने के बाद और उग्र रूप से पथराव में भाग लेते हैं | जिस तरह मक्का मदीना में शैतान को पत्थर मारा जाता है उसी तरह ये मानसिक रूप से विकृत जेहादी ....सेना/अर्धसेनिक बलों पर पथराव कर पुण्य कमाना चाहते हैं | काफिरों का साथ देने के कारण कभी कभी पुलिस भी इसका शिकार बन जाती है |

15.⁠यहाँ मात्र 1% जनता द्वारा उर्दू बोले जाने के वावजूद उर्दू को राजभाषा के रूप में मजहबी आधार पे पूरी आबादी के ऊपर थोप दिया गया है।

16. उत्तर प्रदेश में लगभग 60 लाख की आबादी पर एक जिला इलाहाबाद है व्ही ज्यादा बजट लेने के लिए कश्मीर में मात्र 69 लाख आबादी पर 10 जिले बनाये गए है। जिसमे एक जिले गांदरबल की आबादी लगभग 2 लाख और क्षेत्रफल मात्र  260 (10*16) बर्ग KM है जो की UP/बिहार के एक ब्लॉक से भी कम होगी। CM सिर्फ कश्मीर घाटी से बन पाये इसके लिए योजनाबद्ध/पक्षपातपूर्ण तरीके से कश्मीर घाटी में MLA/MLC की सीटों का कोटा ज्यादा है।

17. मात्र 15% क्षेत्रफल होने के वावजूद सारे CM सिर्फ कश्मीर घाटी के बनाये जाते है। लगभग 50% आबादी हिन्दू/शिया/सिख/अन्य के होने के वावजूद आजतक इनमें से कोई CM नहीं बना। इससे बड़ी आजादी/पक्षपात कहीं हो सकता है?

18. यहाँ पर इतनी स्वच्छदंता है कि मात्र 2-3 KM के क्षेत्र में 4 से 5 पुल, करोड़ों के बजट वाले ...नदी/नालो के ऊपर बनाये जाते है, जिससे कि यहाँ की जनता को नदी पार करने के लिए ज्यादा न चलना पड़े। यहाँ इतने छोटे छोटे जिले होने के वावजूद लगभग सभी जिलों में बाईपास बनाया गया है ।

उत्तर प्रदेश के लगभग 2 जिलों की आबादी और क्षेत्रफल वाली कश्मीर घाटी में सैकड़ों करोडों के अनेकों ओवरब्रिज/diversion बने हुए हैं । केंद्र सरकार के अनुदान का ऐसा बंदरबाट/दुरुपयोग पूरे देश में कहीं नहीं होता ।

यहाँ पुलों/सडकों की संख्या देखकर कोई भी आदमी चौंक जायेगा। ये आजादी नहीं ऐय्याशी है।

19.यहाँ विद्यालयों में A फ़ॉर आजादी और I फ़ॉर इस्लाम सिखाया जाता है। हिन्दुओं, सिखों और अन्य हिन्दुस्तानियों के लिए सिर्फ मजहबी जहर भरा जाता है। इनके दिमाग झूठ और अफवाह के जहर से भरे पड़े हुए हैं। टीचर मुख्य रूप से बच्चों के दिमाग में राजनीति और नफरत भरते हैं कि तुम्हारे साथ हिंदुस्तान अन्याय कर रहा है।

20. यहाँ की मीडिया अफवाह और झूठ से भरी पड़ी है। समाचार पत्रों में सिर्फ नकारात्मक खबरें ही छपती हैं जिससे लोग और उत्तेजित हो, प्रदेश सरकार और हिंदुस्तान के खिलाफ जहर उगलते रहें। प्रोपोगेंडा फ़ैलाने की इन्हें पूरी आजादी दे रखी है।

21. यहाँ इंडियन आर्मी, पैरामिलेट्री और पोलिस करोडों रूपये जनता के ऊपर सद्भावना और सिविक एक्शन प्रोग्राम के रूम में खर्च करती है। जिससे जनता का दिल जीत जाए। ये अलग बात है इन्हें पत्थर के अतिरिक्त आज तक कुछ नहीं मिला।

यह देश और प्रदेश का सबसे कम अपराध वाला क्षेत्र है। यहाँ बलात्कार न के बराबर होता है। ऐसा सेना/अर्धसैनिक बलों के दबाव के कारण है और ये सेना को ही  बलात्कारी बताते हैं। इससे ज्यादा और कौन सी आजादी चाहिये।

22. कश्मीर के बारे में Google पर सर्च करने पर आपको सिर्फ प्रोपोगेंडा साइट्स मिलेंगे। यहाँ तक कि विकिपीडिया भी कश्मीरी पंडितों /हिंदुस्तान को अत्याचारी और यहाँ के जेहादियों/अलगाववादियों द्वारा की जा रही ज्यादतियों को जायज ठहराएगी।

किस तरह से कश्मीर का इस्लामीकरण हो रहा है और कश्मीरी हिन्दुओं को किस तरह बलात्कार/लूट के द्वारा पलायन करने पे मजबूर किया गया, इसपे शायद ही कोई आर्टिकल मिले किन्तु इंडियन आर्मी के ऊपर अनेकों झूठी कहानियां -आरोप वाले अनेकों लेख आपको मिल जायेंगे।

23. यहाँ पर मानवाधिकार संगठन आतंकवादी/जेहादी अधिकार संगठन का रूप धारण कर लिए हैं। यदि आप जम्मू /लद्दाख के हैं या आप हिन्दू/सिख/शिया हैं तो आपके अधिकार और बजट के न्यायसंगत बंटवारे के बारे में कोई बात नहीं करेगा। किन्तु यदि आप कश्मीरी सुन्नी हैं और खेत में टट्टी करते समय पानी का लोटा गिर गया,  फिर तो एमनेस्टी इंटरनेशनल/UN और अन्य मानवाधिकारी कुकरमुत्ते अखबार/मीडिया/लेख से पाटकर सरकार को मुवावजा देने के लिए बाध्य कर देंगे। बड़ी घटनाओं के बारे में तो सोचिये ही मत।

24. जहां तक सेना की बात है, तो सेना कहाँ नहीं है? सेना लखनऊ, गोरखपुर, दिल्ली, बंगलोर, जबलपुर, शिलॉन्ग आदि सभी जगह है । देश के हर कोने में है। इसलिए सेना कश्मीर में भी है और AFSPA कानून सिर्फ कागजों में है।

छोटी छोटी बातों पर कश्मीरी पुलिस, अर्धसेना/आर्मी के खिलाफ FIR दर्ज कर अलगाववादियों को खुश करती है। AFSPA के तहत सेना को मिले अधिकार सिर्फ कागजों में हैं। बिना यहाँ की स्थानीय पुलिस को सूचित किये या बताये कोई भी search आपरेशन नहीं किये जाते। जिसका पूरा लाभ आतंकवादी उठाते हैं , क्योंकि कश्मीर पुलिस में बैठे जेहादी अधिकतर सूचनाएं लीक कर आतंकवादियो को भगा देते हैं।

पुलिस और यहाँ के न्यायधीशों की शह पाकर लडके सेना/अर्धसेना की गाड़ियों पर पथराव करते हैं। न्यायधीश इनके, पुलिस इनकी, सरकार इनकी, कानून इनका, मीडिया इनका और इन्हीं के बीच सेना/अर्धसेना के जवान सिर्फ बदनाम/प्रताडित किये जाते हैं।

25. मेरा JNU और DU के छात्रों से निवेदन है कि वे  अपनी कम्युनिष्टि पुस्तकों व NSUI/AISA/AISF/SFI/DSU के छात्रों के साथ आकार यहाँ कुछ दिन गुजारें और फिर बताएं कि क्या इससे ज्यादा आजादी/ऐय्याशी हिंदुस्तान में और कहीं है ?

 कश्मीर न केवल पूर्णतः आजाद प्रदेश है अपितु इसने केंद्र सरकार को ब्लैकमेल कर अपना गुलाम बना,  नाजायज रूप से अवैध धन वसूली का एक स्थायी जरिया बना लिया है। अगर इनकी आजादी का मतलब अलग इस्लामी राष्ट्र है तो भारतीय सरकार ऐसा कभी नहीं होने देगी |

कृपया इस सन्देश को JNU/DU तक पहुँचायें।

कभी-कभी यह ख़याल आता है कि अगर केंद्र में सत्ता-परिवर्तन न होता तो कैसे पता चलता कि देश-द्रोह और आतंक की जडें कहाँ-कहाँ और किस-किस रूप में फैल चुकी हैं?

कूछ लोग दाल की कीमत ही देखते रह गये और गद्दारों ने देश और जान की कीमत कौड़ियों में लगा दी!"

[साभार - Gp Singh ji, रिटायर्ड पैरामिलट्री अधिकारी] वाया बसेरा देव जी