Wednesday 15 April 2015

जगत् गुरु शङ्कराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का दूरदर्शिता



पुरी पीठाधीश्वर जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी महाराज के अमृत वचन :२०१० दिसम्बर .................

महाभारत में भीष्मजी ने कहा है.....काल राजा का कारण नहीं है.........राजा काल का कारण होता है...जैसा शासक होता है , वैसी स्रष्टि बनती है ,जैसा राजा होता है वैसी प्रजा बनती है.....क्यों आज सब नट - नटी बने जा रहे है...क्यो घूस खोरी बढ़ रही है ,घूसखोर बढ़ रहे है....क्योकि शासन तंत्र भष्ट है.... ६६ राष्ट्र क्रिश्चनतंत्र के अधीन , ५६ राष्ट्र मुस्लिम तंत्र के अधीन ,दो बलवान राष्ट्र चीन व् रूस कम्युनिस्ट तंत्र के अधीन है......और हिन्दुओ की संस्कृति के अनुसार एक भी शासन तंत्र एक भी में राष्ट्र है क्या ? नेपाल में है ? भूटान में है ? भारत में है ? .....इसका मतलब कोई भी संस्कृति तब तक सुरक्षित नहीं रहती जब तक उसके अनुसार संविधान व् शासन तंत्र न हो........पूरा विश्व जिसे धर्मगुरु के रूप में देखता था ...वह है भारत ...श्री दलाई लामा जी ने कहा था , कुछ वर्ष पहले ...भारत व् तिब्बत गुरु शिष्य है.... शिष्य तिब्बत व् गुरु भारत था , है ,व् रहेगा ऐसा दलाई लामाजी ने कहा था....लेकिन एक प्रश्न उठता है कि भारत को विश्वगुरु माना गया परतंत्रता के दिनों में भी तो किसके कारण....आर्य समाजियो के कारण, ऐसा तो नहीं .......जैन सज्जनों के कारण, ऐसा तो नही ....बौद्ध सज्जनों के कारण, ऐसा तो नहीं..... सिक्ख सज्जनों के कारण, ऐसा तो नहीं...सिक्ख तो उपजे ही हिन्दुओ की रक्षा के लिए ...दिशाहीन हो गए आजकल वो अलग बात है....तो किसके कारण ....अरे मनुवादी सनातन धर्मियो के कारण...जिस संस्कृति की रक्षा के लिए राम ,कृष्ण उत्पन्न होते है,जिस मनुवाद को मानकर पृथ्वी टिकी है, पवन टिका है आकाश टिका है ,प्रकाश टिका है ,जल टिका है....जिस मनुवादी सस्कृति को मानने वाले सत्यवादी नरेन्द्र हुए भगवान राम, कृष्ण आदि की उत्पत्ति हुई.....उस सनातन संस्कृति का आजकल विलोप हो रहा है......आपको और हमको अपना आस्तित्व ही चाहिए और विश्व को अपना आस्तित्व चाहिए..जिस रास्ते पर विश्व जा रहा है ,लुप्त होने की स्थिति में है....इसका अर्थ क्या हुआ...अगर विश्व को जीवन चाहिए तो कम से कम भारत , नेपाल , व् भूटान में सनातन संस्कृति के अनुसार संविधान व् शासन तंत्र रहना चाहिए ! आज हमने एक भाव व्यक्त किया...संयुक्त राष्ट्र संघ व् भारतीय शासन तंत्र के प्रति ......अजगर की जाती विलुप्त न हो .....जबकि वह तो व्यक्ति को निगल भी जाता है ...लेकिन विधाता की स्रष्टि में अजगर की उपयोगिता वैज्ञानिक धरातल पर सिद्ध है ,तभी तो अजगर का विलोप न हो , गिद्ध का विलोप न हो ,सर्प का विलोप न हो ,सिंह का विलोप न हो....यह सब प्रयास चल रहा है या नहीं तो क्या भारतीय संस्कृति के अनुसार शासन तंत्र का विलोप हो जाए....यह घोर अन्याय है या नहीं ......विशुद्ध राजतन्त्र ,विशुद्ध शासन तंत्र जिसने विश्व को धर्म राज्य दिया रामराज्य दिया...उसके अनुसार किसी एक देश में तो शासन तंत्र रहने दो ,चलने दो ...जिसको आदर्श मानकर विश्व मौत के गर्त में जाने से बच सके.....रामराज्य जैसा राज्य नही ,रामजी जैसे राजा नही.....दुर्बुद्धि इन नेताओ ने सुप्रीम कोर्ट को लिख कर दिया....राम एतिहासिक पुरुष नही ,अवतार नही ,उपन्यास के पात्र है.....ताकि रामसेतु को विखंडित करवा सके ! विश्व में मानव निर्मित २७०० वर्ष प्राचीन चीन की दिवार है जिसे कम्युनिस्ट राष्ट्र होते हुए भी उसकी रक्षा चाहता है,और यहाँ भगवान राम द्वारा निर्मित साढ़े सत्रह लाख वर्ष प्राचीन धरोहर,लहर को रोकने में समर्थ , होरियम अणु ईधन का भंडार ,सीपी देने में समर्थ ,वनस्पति देने में समर्थ ,रक्षा के लिए कवच और जलचर जीवो का जीवन......उस रामसेतु को तोड़ने का अभियान इस देश में चलाया गया....हम उसमे कूदे....बहुत से महानुभावो ने उसमे हिस्सा लिया ,भगवत कृपा से सुब्रमण्यम स्वामी ने मेरी बात मानकर लोअर कोर्ट ,हाई कोर्ट,सुप्रीम कोर्ट तक केस को ले गए और रामसेतु की रक्षा भारत में हो गयी !........एक संकेत.........विश्व में ऐसा कोन सा देश है जिसे अपना उत्कर्ष पसंद नही है .............उसी का नाम भारत है ?जीव का स्वाभाव होता है ....आपको पडोसी का उत्कर्ष पसंद न हो समझ आता है ,भाई को भाई का उत्कर्ष पसंद न हो समझ आता है .......आपको अपना ही उत्कर्ष पसंद न हो ऐसा कोन सा राष्ट्र है विश्व में.. भारत .......जिसके राजनेताओ को भारत का उत्कर्ष पसंद नहीं !! हमने कहा मेधाशक्ति, रक्षाशक्ति, अर्थशक्ति, श्रमशक्ति अरे ,पुरानी भाषा में ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वेश्य,व् शुद्र शक्ति इन चारो का दोहन व् दुरूपयोग हो रहा है ,ऐसी परिस्थिति में ये कथा ,कीर्तन ये वार्ता ,सत्संग का क्रम कब तक चलता रहेगा ,आज इस्लामिक राष्ट्र है ,भारत से अलग हुए कौन ....पाकिस्तान व् बांग्लादेश वहा पर ऐसा हो सकता है !तो हमारे यहाँ ही होता रहेगा किसने ठेका लिया है ,यह तो राजनेताओ का बांये हाथ का खेल है कंहा किस तत्व को लाकर हिंदुत्व को विलुप्त कर दें !.........”तो विश्व में सभी को अभयदान देते हुए मानवाधिकार की सीमा में .....संयुक्त राष्ट्र संघ व् पुरे विश्व से अनुरोध करना चाहते है .......अनुरोध न माने तो तो फिर हम ऋषियों की परम्परा से है ,धर्माचार्य है ...विश्व को बता देंगे कि तुम मानने के लिए बाध्य हो .......वो क्या है ...भारतीय संस्कृति के अनुरूप भारत का संविधान व् शासन तंत्र नहीं होगा तो हमारी संस्कृति की रक्षा नहीं होगी !जिसे आप वरदान मान रहे है वह अभिशाप है ......क्या ...वर्तमान शिक्षा पद्धति व् जीविका पद्धति.. मैकाले का अभिशाप ....यदि दस वर्षो तक भारत में वर्तमान शिक्षा पद्धति व् जीविका पद्धति चल गयी तो भारत कुछ भी नहीं रहेगा ,इससे संयुक्त परिवार का विलोप हो जाएगा ,पेट पालने के लिए मनुष्य रह जाएगा ,इसी से भारतीयों का जीवन सार्थक होगा क्या ....श्रीमद भगवत आदि में पतन की पराकाष्ठा का लक्षण क्या है ,वर्णसंकरता , कर्मसंकर्ता....भोतिक वादियों में विकास की पराकाष्ठा क्या है ....वर्णसंकरता ,कर्मसंकरता.......क्या मतलब हुआ किसी की बेटी ले लो किसी को बेटी दे दो....भारतीय नहीं डोक्टर इब्राहीम की थ्योरी के अनुसार भी भविष्य मानवो के शील से रहित हो जाएगा....आज संविधान की द्रष्टि से वर्णसंकरता को उत्कर्ष माना जा रहा है............ आज के प्रवचन का सारांश क्या निकला ...सब विपरीत दिशा की और जा रहे है,समय की सीमा में हमने कम कहा भगवत कृपा से गुरुओ की कृपा से हमारे पास विशाल चिंतन है ,जिससे पूरा विश्व लाभ उठा सकता है ,लेकिन कष्ट की बात यह है कि आज भारत व् पुरे विश्व में हमारे लोगो के ज्ञान विज्ञान से लाभ उठाने की क्षमता नहीं है भारत को ६३ वर्षो में राजनेताओ ने यहाँ तक गिरा दिया है कि न्याय पाने व् न्याय पचाने योग्य नहीं रह गया है .....हिन्दू किसका नाम है भारत में .... न्याय पाने व् पचाने योग्य जो न रह गया है उसका नाम हिन्दू है.....जहा हमारे रामलला का प्राकट्य हुआ,उस भूमि को एक तिहाई इसका एक तिहाई उसका ...यह भी कोई न्याय है ....इसका मतलब कोई भी राजनैतिक दल भारत में शासन करने योग्य नहीं है........दिशाहीन क्रिश्चनतंत्र , दिशाहीन कम्युनिस्टतंत्र , दिशाहीन मुस्लिमतंत्र..के यन्त्र बनकर हिन्दू राजनेता काम कर रहे है .....क्योंकि हिन्दुओ से उनको भय नहीं नहीं रह गया है ....भाजपा की सफलता कोंग्रेस की असफलता ,कोंग्रेस की सफलता भाजपा की असफलता ,दोनों की असफलता मिलीजुली सरकार की सफलता...यह क्या शासन तंत्र है !ऐसी परिस्थिति में सज्जनों हमें अपने आस्तित्व व् आदर्श की रक्षा करनी है तो हमें हमारी संकृति के अनुसार संविधान व् शासन तंत्र चाहिए, चाहिए और चाहिए !!हर हर महादेव!!

Monday 6 April 2015

वेद में गाय की महिमा का वर्णन ।



वेदो नारायण साक्षात्
वेद ही नारायण है ऐसा श्रुति वचन है  नारायण सृष्टि के पुर्व भी विद्यमान था है और रहेगा अर्थात वेद भी नित्य ही हुए वेद की हर एक वाणी ईश्वरीय वाणी है और ईश्वर का प्रेम सृष्टि के समस्त जीव के प्रति समभाव से जैसा प्रेम मनुष्य के प्रति वैसा ही प्रेम जीव के प्रति ।जिसका प्रमाण स्वयं ऋग् वेद है ऋग्वेद के मण्डल ६ ये मन्त्र भी आया है ।

चित्पूर्वे जरितार आसुरनेद्या अनवद्या अरिष्टाः ॥४॥  [[ऋग् वेद   ६/१९/४]]

मंत्रार्थ ---- पुर्व काल में स्तोतागण अनिध्य पापरहित अहिंसित थे ।

 तात्पर्य हमारे पुर्वज पापो से रहित हुआ करते थे तथा अहिंसित भी तो भला जीव हत्या कर वो पाप के भागी क्यों बने जैसा की आज प्रायः सनातन धर्म के प्रति  तथाकथित छद्मवेशी चारो ओर ये भ्रम फैला रखे है की वेद में गौ हत्या का प्रमाण मौजूद है ।
जबकि वेद कहता है गाय शाक्षात इंद्र रुपी है और इंद्र की महिमा की महिमा वेद में चहु ओर किया गया है अब वेद स्वयं गौ को इंद्र कहा है तो भला मनुष्यो की भावना गौ के प्रति कैसी होगी ये मुझे कहने की कोई जरुरत नही ।केवल इतना ही नही अपने आने वाली पीढ़ी का भी ख्याल रख ईश्वर से ऐसे संतान की कामना करता है जो  सुन्दर सुसंस्कारित यज्ञ करने वाला और हव्यान्न देने वाला हो ।
य ओजिष्ठ इन्द्र तं सु नो दा मदो वृषन्स्वभिष्टिर्दास्वान् ।[[ऋग् वेद ६/३३/१]]-


इमा या गावः स जनास इंद्र  [[ऋग् वेद /६/२८/५ ]]

 मंत्रार्थ --- हे मनुष्यो यह जो गौए है वह इंद्र है ।
इसी के साथ अगले मन्त्र की ब्यख्या हृदयंगम करने वाली है  ।

आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे ।

मंत्रार्थ ---  हे गौएँ हमारे घर पर आये हमारा कल्याण करे वे गौशाला में बैठे हमें आनंदित करे । केवल इतना ही नही चोर उसे न चुराए शत्रु उन पर शस्त्रो का प्रहार न करे इस प्रकरण पर भी ऋग् वेद का अगला मन्त्र आप सभी के सामने रख रहा हु ।

न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति ।[[ऋग् वेद ६/२८/३]]

ये गौए नाश नहीं होती चोर भी उसकी हिंसा नहीं करता शत्रु का शस्त्र भी गौ पर आक्रमण न करे ।

मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः ॥[[ ऋग् वेद ६/२८/७]]

मंत्रार्थ --: चोर इनकी चोरी न कर सके ऐसे सुरक्षित स्थान में गौ रहे पापी के अधीन गौएँ न हो बिजली गिर कर गौएँ की मृत्यु न हो ऐसे सुरक्षित स्थान पर गौएँ रहे ।


सं ते वज्रो वर्ततामिन्द्र गव्युः [[ऋग् वेद ६/४१/२]]
मंत्रार्थ ----- हे इंद्र गौओ का रक्षण करने वाला तेरा बज्र शत्रुओ का नाश करे ।






नोट ----लेख अभी अधूरा है ।