Thursday 22 February 2024

माता सीता और श्रीरामचन्द्र विवाह शंका समाधान



धर्मद्रोही वामपन्थी पँचमक्कार गैंग माता सीता की आयु पर प्रश्नचिन्ह तो खड़ा करते है परन्तु श्रीरामचन्द्र के आयु बिषय पर मौन हो जाते है इसे ही अर्धकुकूट न्याय कहा जाता है 

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अरण्यकाण्ड का का वह प्रसङ्ग जिस पर प्रश्नचिन्ह खड़ा किया जाता है ।


■●-उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने। भुञ्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी॥ तत्र त्रयोदशे वर्षे राजाऽमन्त्रयत प्रभुः। अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमन्त्रिभिः (वा०रा०अरण्यकाण्ड ४७/४-५)

■●-मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः॥ 

 अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।( वा०रा०अरण्यकाण्ड ४७/१०)

विवाह के पश्चात  बारह वर्षों तक इक्क्षवाकु वंशी महाराज दशरथ के महल में रह कर मैंने अपने पति के साथ सभी मानवोचित भोग भोगे  मैं वहाँ सदा मनोवांच्छित सुख सुविधाओं से सम्पन्न रही हूं ।

वनगमन के समय मेरे महातेजस्वी पति की आयु पच्चीस वर्ष की थी और उस समय मेरा जन्मकाल से लेकर वनगमन काल तक मेरी अवस्था वर्षगड़ना के अनुसार अठारह वर्ष की थी  !


■-- इन प्रसङ्गो से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि जनकनन्दिनी का जब विवाह हुआ था तब उनकी आयु मात्र 6 वर्ष रही थी ।

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अब आते है जनकनन्दिनी माता सीता और मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र की विवाह सम्बन्धी विषयो पर ।

★-महर्षि विश्वामित्र सिद्धियां प्राप्त करने हेतु  यज्ञ का सम्पादन कर रहे थे और उस  यज्ञ को असुरों से रक्षण के लिए  महाराज दशरथ के राजमहल में गए और  श्रीरामचन्द्र को अपने साथ ले जाने को उद्धत हुए उस समय श्रीरामचन्द्र की आयु क्या थी यह महाराज दशरथ अपने श्रीमुख से कहते है ।


●- हे महर्षे मेरा यह कमलनयन श्रीरामचन्द्र  अभी पूरे १६ वर्ष का भी नही हुआ मैं इनमें राक्षसों से युद्ध करने की योग्यता भी नही देखता अतः आप मुझे ले चलिए एक बालक को नही 


■●-ऊनषोडशवर्षो मे रामो राजीवलोचनः ।

बालो ह्यकृतविद्यश्च न च वेत्ति बलाबलम् । (वा०रा० १/२०/२ & ७)


यहाँ महाराज दशरथ श्रीरामचन्द्र के आयु पर संकेत मात्र करते है कि श्रीरामचन्द्र अभी किशोरोवस्था तक भी नही पंहुचा है ।

तो प्रश्न उठता है कि श्रीरामचन्द्र की आयु क्या थी जब उनका माता जानकी के साथ जब विवाह हुआ था ।

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माता जानकी युद्धकाण्ड में कहती है कि 


■●--बालां बालेन सम्प्राप्तां भार्यां मां सहचारिणीम्॥(युद्धकाण्ड ३२/ २०


आप बाल्यकाल में ही मुझे पत्नी रूप में प्राप्त किया था तब मेरी भी अवस्था बाल्य रूप ही था ।


अतः जब माता जानकी का मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र के साथ पाणिग्रहण संस्कार हुआ था तब दोनों ही बालक बालिका थे ।

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●-मारीच श्रीरामचन्द्र से रावण के बिषय में कहते है ।


■-- श्रीरामचन्द्र जी जब विश्वामित्र के यज्ञ सिद्धि हेतु उनके यज्ञो की रक्षा हेतु धनुषबाण लिए खड़े थे उस समय श्रीरामचन्द्र के जवानी के लक्षण (चिन्ह) प्रकट नही हुए थे वे शोभाशाली बालक के रूप में दिखाई देते थे उस समय श्रीरामचन्द्र का उदीप्त तेज उस दण्डकारण्य की शोभा बढ़ाते हुए नवोदित बालचंद्र के समान दिख पड़ते थे ।


■●--अजातव्यञ्जनः श्रीमान् बालः श्यामः शुभेक्षणः (अरण्यकाण्ड )

■●-- रामो बालचन्द्र इवोदितः॥ (अरण्यकाण्ड ३८/१४-१५)

■●--बालोऽयमिति राघवम्। (अरण्यकाण्ड  ३८/१८)


यहाँ मारीच स्पष्ट रूप से कह रहे है कि जब दण्डकारण्य में श्रीरामचन्द्र विश्वामित्र के कार्यसिद्धि हेतु धनुषबाण लिए खड़े थे तब उनकी अवस्था नवोदितबालचन्द्र के सामान था ।

ठीक इसी अध्य्याय के श्लोक संख्या ६ में तो श्रीरामचन्द्र जी के स्पष्टरूप से  आयु का ही व्याखान किया है 


■●--ऊनद्वादशवर्षोऽयमकृतास्त्रश्च राघवः॥ (अरण्यकाण्ड ३८/६)


मारीच :-- रघुकुलनंदन श्रीराम की आयु अभी बारह वर्ष से भी कम है 


अब यहाँ यह तो यह सिद्ध हो गया कि जब जनकनन्दिनी जानकी के साथ श्रीरामचन्द्र के साथ पाणिग्रहण संस्कार हुआ था तब श्रीरामचन्द्र की  आयु १२ वर्ष से भी कम था ।


इस बिषय की सिद्धि अरण्यकाण्ड के उस प्रसङ्ग से भी प्रमाणित हो जाता है जहाँ माता जानकी कहती है विवाह के पश्चात १२ वर्षो तक महाराज दसरथ के महल में समस्त मानवोचित भोग भोगे और तेरहवे वर्ष में महाराज दशरथ ने श्रीरामचन्द्र का राज्यभिषेख करने का निर्णय लिया  यहाँ १२+१३ का योग करें तो २५ वर्ष का योग निकलता है जब श्रीरामचन्द्र का दण्डकारण्य मिला था ।


और माता सीता भी ठीक यही बात कह रही है कि 


■●-मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः(अरण्यकाण्ड ४७/१०)


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■--विशेष

उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने 

 भुञ्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी(अरण्यकाण्ड४७/४-५)


अरण्यकाण्ड के इस श्लोक को लेकर वामपंथियों के पेट मे।सबसे ज्यादा दर्द उठता है अस्तु उनके कुमातो का खण्डन 


■●--बालां बालेन सम्प्राप्तां भार्यां (युद्धकाण्ड)


■●--अजातव्यञ्जनः श्रीमान् बालः श्यामः शुभेक्षणः (अरण्यकाण्ड)


■●--बालोऽयमिति राघवम्। (अरण्यकाण्ड  )


श्लोक से हो जाता है   बालक ,बालिकाओं में कामदेव की जागृति किशोरोवस्था के पश्चात ही होता है ।

अस्तु बालक बालिकाओं में काम वासना ढूढ़ना मूर्खता नही तो और क्या है ?  बिचार करे ।


#भुञ्जाना_मानुषान्_भोगान्_सर्वकामसमृद्धिनी  


से वही अर्थ ग्राह्य है जो समयानुकूल हो एक बालक ,बालिका को बाल्यकाल में क्या चाहिए ?? 

 बालक बालिका खिलौने गुड्डे गुड़िया ,पाकर ही स्वयं को धन्य समझने लगते है इस लिए तो यहाँ माता जानकी कहती है


 #भुञ्जाना_मानुषान्_भोगान्_सर्वकामसमृद्धिनी 


लेकिन वामपंथियों को क्या कहे नाम ही है वाम ,पन्थ अर्थात उल्टे रास्ते चलने वाला तो यहाँ भी वामपन्थी उल्टा अर्थ ही ग्रहण करता है 


एक बालक बालिका में सख्य सखा भाव का सम्बंध होता है काम पिपासा का नही जहाँ काम का वेग ही नही वहाँ काम का बिकार उतपन्न कैसे हो ??

उसका भी तो हेतु चाहिए न कि केवल मात्र दोषारोपण से ही बिषयों की सिद्धि हो जाय ??

यदि दोषारोपण मात्र से ही बिषयों की सिद्धि हो जाय तब तो न्यायिक व्यवस्था में ही दोष उतपन्न हो जाय जिसका परिहार सम्भव ही नही ।


इस लिए श्रुतिस्मृति का घोषवाक्य है ।


■●-आचार्यवान् पुरुषो  वेद । (छान्दोग्य उपनिषद)


■●--तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्  (मुंडकोपनिषद् ) 

■●-तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः (गीता)


वामपंथियों द्वारा उठाये गए प्रश्नों से विचलित न हो परम्पराप्राप्त आचार्यो के सानिध्य ग्रहण करें ।


उल्टे राह चलने वाले वामपन्थी आप को उल्टा मार्ग ही बतलायेंगे ।

आचार्यो के सानिध्य न प्राप्त होना एवं स्वाध्यायआदि अल्पता के कारण लोगो मे तद्वत बिषयों को लेकर भ्रम उतपन्न होना स्वाभाविक है ।


शैलेन्द्र सिंह

Monday 12 February 2024

गौतम बुद्ध के गृहत्याग का सच भाग --२

 


सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध ) के बिषय में गृहत्याग की जो कथाएं प्रचलित है वह बौद्ध भिक्षु अश्वघोष कृत बुद्ध चरित्र से है अश्वघोष प्रथम शताब्दी के अंत एवं द्वितीय शताब्दी के आरंभ में हुए थे ऐसा माना जाता है 


 अश्वघोष ने अपनी  बुद्ध चरित्र की  रचना महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण ,का अनुकरण कर किया रामोपख्यान का  इंडोनेशिया ,थाईलैंड,मोरिशश ,म्यंमार,सहित समस्त एशियाई देशों में गहरा प्रभाव रहा है भारत मे तो श्रीराम भारतीयों के रोम रोम में बसते है जिस कारण अश्वघोष भी इससे अछूता न रहा ,

इसी प्रभाव के कारण ही अश्वघोष ने बुद्ध चरित्र में , रामोपाख्यान  का  अनुकरण किया ताकि भविष्य में बुद्ध की भी प्रसिद्धि श्रीरामचन्द्र की भांति ख्यापित किया जा सके  सिद्धार्थ गौतम को श्रीरामचन्द्र की भांति ख्यापित करने के पीछे अश्वघोष की उत्कट अभिलाषा ही सिद्धार्थ गौतम के मूल इतिहास को मिटा डाला और एक काल्पनिक गाथा रच डाला जो कालक्रम के प्रवाह में सत्य की भांति ख्यापित भी हुआ ।

बुद्ध के गृहत्याग बिषय पर मैं सदा से संसयशील रहा हूँ हो सकता है आप सब मेरे बिचारो से सहमत न हो परन्तु तद्गत बिषयों को लेकर मन्थन अवश्य किया जा सकता है ।


सिद्धार्थ गौतम के गृहत्याग के बिषय में जो कथाएं प्रचलित है मुझे वे निराधार लगते है ।

जरा जन्म मरण जैसे बिषयों के लेकर द्रवित हो गृह का त्याग कर तपस्या के लिए चल पड़े और निर्वाण को प्राप्त हुए ।

सिद्धार्थ गौतम के जीवनी पर लिखी गयी सबसे प्राचिन पुस्तक बुद्ध चरित्र है जो लगभग प्रथम शताब्दी में बौद्ध भिक्षु  अश्वघोष द्वारा रची गयी थी। 


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अश्वघोष कृत बुद्ध चरित्र में आये हुए प्रसङ्ग विचारणीय है 


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■-प्रसङ्ग संख्या ●--१


■--वयश्च कौमारमतीत्य मध्यं सम्प्राप्य बालः स हि राजसूनुः । अल्पैरहोभिर्बहुवर्षगम्या जग्राह विद्याः स्वकुलानुरूपाः ॥( २।२४)


■--नाध्यैष्ट दुःखाय परस्य विद्यां ज्ञानं शिवं यत्तु तदध्यगीष्ट । स्वाभ्यः प्रजाभ्यो हि यथा तथैव सर्वप्रजाभ्यः शिवमाशशंसे ॥ (२।३५)


■--आर्षाण्यचारीत्परमव्रतानि (२/४३)


सिद्धार्थ गैतम ने सास्त्रनुकूल समय पर उपनयन संस्कार से संकरित हो अपने कुल परम्परा के अनुरूप विद्या आदि का अध्यय किया था एवं ऋषियों सम्बंधित समस्त व्रत और तपो का भी पालन किया था कुशाग्र बुद्धि होने के कारण अल्पकाल में ही समस्त विद्याओं का अध्ययन पूर्ण कर चुका था ।

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■-प्रसङ्ग संख्या ●--२


अश्वघोष कृत बुद्ध चरित्र के  तृतीय सर्ग   श्लोक संख्या २८ से लेकर श्लोक संख्या ६० तक महत्वपूर्ण है  जहाँ किस हेतु से सिद्धार्थ गौतम ने गृहत्याग किया था ।


■●--सिद्धार्थ गौतम ने  बृद्ध ,रोग से ग्रसित रोगी ,एवं मृत ब्यक्ति को देख ब्याकुल हो उठा और गृह त्याग कर वन की ओर चल पड़ा ।

गौतम बुद्ध ने जब गृह त्याग किया था उस वक़्त तक उनका विवाह हो चुका था और एक पुत्र लाभ भी हुआ था अतः स्पष्ट है कि उनकी आयु अब लगभग 30 वर्ष की हो चली होगी ।


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समीक्षा :-- सिद्धार्थ गौतम का समयानुकूल उपनयन संस्कार होना ये दर्शाता है की वे उस कुल में जन्मे थे जो विशुद्ध वैदिक धर्मी थे ,अनादिकाल से आरही वंश परम्परा कुल परम्परा के अनुकूल ही सिद्धार्थ गौतम का संस्कार एवं अध्ययनादि हुआ था बड़े ही अल्पकाल में सिद्धार्थ गौतम अध्ययनादि को पूर्ण कर लिया था अश्वघोष ने द्वितीय सर्ग के  श्लोक संख्या २४ में  #अल्पैरहोभिर्बहुवर्षगम्याजग्राह विद्याः स्वकुलानुरूपाः

लिख कर स्पष्ट किया है साथ ही साथ द्वितीय सर्ग के श्लोक संख्या ४३ में पुनः इसकी पुष्टि की है ।

अब आगे आते है 

आत्म तत्व ,जन्म मृत्यु  ,जड़ चेतन आदि  बिषय को लेकर जितना बिषद उल्लेख वैदिक धर्म मे हुआ उतना उल्लेख विश्व के किसी भी साहित्य में नही है । अतः ऐसा सम्भव ही नही की सिद्धार्थ गौतम के अध्ययन काल मे इन जैसे प्रश्नों अथवा बिषयों का उल्लेख न हुआ हो अथवा उस कालखण्ड में किस बृद्ध अथवा रोगी अथवा मृत ब्यक्ति को न देखा हो ।

 श्रुतिस्मृति इतिहासपुराणादि षड्दर्शन जैसे समुच्चय ग्रन्थ आत्मतत्व का विवेचन करता है श्रुतियों में नचिकेता जैसा बालक भी यमराज से मृत्यु का रहस्य पूछता है मृत्यु के नाम से द्रवित नही होता तो पुराण जैसे अयाख्यानों में प्रह्लाद जैसा दृढ़भक्त बालक भी मृत्यु के नाम से विचलित न हो होलिका के  गोद मे बैठ जाता है अतः जिन बिषयों को लेकर बाल्यकाल में अध्ययन के समय होना चाहिए था वही संशय  युवास्था में होना और उससे द्रवित होकर गृहत्याग करना हास्यस्पद लगता है ।


शैलेन्द्र सिंह