Thursday 24 July 2014

आसुरी प्रवृति

अवटे च अपि माम् राम निक्षिप्य कुशली व्रज । रक्षसाम् गत सत्त्वानाम् एष धर्मः सनातनः ॥३-४-२२॥[[बा0रा0]]

असुरगण का आहार तामसिक कर्म मारकाट और मृत्युपरांत स्थूल सरीर को गड्ढे में दफन होना ऐसा शास्त्र प्रमाण है ।

दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च ।
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ संपदमासुरीम् ॥१६- ४॥[[गीता]]


 दम्भ, घमण्ड और अभिमान तथा क्रोध, कठोरता और अज्ञान भी- ये सब आसुरी सम्पदा को लेकर उत्पन्न हुए पुरुष के लक्षण हैं॥4॥


Friday 18 July 2014

महाभारत और वेद वेदाङ्ग

ब्रह्मन्वेदरहस्य च यच्चान्यत्स्थापितं मया।
साङ्गोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया।।१/६२
इतिहासपुरापानामुन्मेषं निमिषं च यत्।
भूतं भव्यं भविष्यच्च त्रिविधं कालसंज्ञितम्।।१/६३
जरामृत्युभयव्याधिभावाभावविनिश्चयः।
विविधस्य च धर्मस्य ह्याश्रमाणां च लक्षणम्।।१/६४
चातुर्वर्ण्यविधानं च पुराणानां च कृत्स्नशः।
तपसो ब्रह्मचर्यस्य पृथिव्याश्चन्द्रसूर्ययोः।।१/६५
ग्रहनक्षत्रताराणां प्रमाणं च युगैः सह।
ऋचो यजूषि सामानि वेदाध्यात्मं तथैव च।।१/६६[[महाभारत ]]

भावार्थ --:  भगवन वेद व्यास द्वारा
 मैंने इस महा काब्य में सम्पूर्ण वेदों का गुप्तं रहस्य एवं अन्य सब शास्त्रों का सार संकलित कर के स्थापित कर दिया है केवल वेदो का ही नही उसके अङ्ग और उपनिषदों का भी बिस्तार इसमें निरूपण किया है ।इस ग्रन्थ में इतिहास एवं पुराण का मन्थन कर के उसका परस्त रूप प्रकट किया है भुत भविष्य एवं बर्तमान कालीन इन तीनो संज्ञाओं का वर्णन हुआ है इस ग्रन्थ में बुढापा भय रोग मृत्यु और पदार्थोका सत्यवत मिथ्यात्व का बिशेष रूप से निश्चय किया गया है तथा अधिकारी भेद से भिन्न भिन्न प्रकार के धर्मो का निरूपण किया गया है । ब्राहमण क्षत्रिय वैश्य शुद्र इन चारो वर्णों के कर्मो का बिधान पुराणों का सम्पूर्ण मूल तत्व भी प्रकट हुआ है तपस्या एवं ब्रह्मचर्य के स्वरुप अनुष्ठान एवं फलो का विवरण पृथ्वी चंद्रमा सूर्य गृह नक्षत्र तारा सत्ययुग त्रेता युग द्वापर युग कलयुग इन सब के परिणाम और प्रमाण ऋग वेद साम वेद यजुर्वेद और इनके अध्यात्मिक अभिपार्य अध्यात्मशास्त्र का इस ग्रन्थ में बिस्तार से वर्णन किया गया है ।

ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः'।।
धर्मार्थकाम्मोक्षार्थे समासव्याकीर्तनै:
त्वया भारतसूर्येण नृणां विनिहतं तमः।।
पुराणपूर्णचन्द्रेण श्रुतिज्योत्स्नाप्रकाशिना।
नृणां कुमुदसौम्यानां कृतं बुद्धिप्रसादनम्।।
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना।
लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत्संप्रकाशितम्।
संग्रहाध्यायबीजो वै पौलोमास्तीकमूलवान्।
संभवस्कन्धविस्तारः सभापर्वविटङ्कवान्।।
आरण्यपर्वरूपाढ्यो विराटोद्योगसारवान्।
भीष्मपर्वमहाशाखो द्रोणपर्वपलाशवान्।।
कर्णपर्वसितैः पुष्पैः शल्यपर्वसुगन्धिभिः।
स्त्रीपर्वैषीकविश्रामः शान्तिपर्वमहाफलः।।
अश्वमेधामृतसस्त्वाश्रमस्थानसंश्रयः।
मौसलश्रुतिसंक्षेपः शिष्टद्विजनिषेवितः।।
सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति।
पर्जन्यइव भूतानामक्षयो भारद्रुमः।।[[महाभारत आदिपर्व--८४-९२]]


Thursday 17 July 2014

बृक्ष पूजन

कुछ मुर्खाधिपतियो का कहना है की नदी एवं बृक्ष पूजन महाभारत युद्ध [[ द्वापर युग ]] के बाद ऐसी प्रथा का चलन हुआ था ।
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परन्तु सत्य तो ये है की त्रेता युग से भी पूर्व में भी नदी पूजन बृक्ष पूजन का बिधान था जिसका प्रमाण बाल्मीकि रामायण द्वारा प्रमाणित है ।जबकि इस युग में महर्षि बिस्वामित्र महर्षि वशिष्ठ जी जैसे ऋषि महर्षि भी इस धरा धाम पर उपस्थित थे
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यानि त्वत्तीरवासीनि दैवतानि च सन्ति हि । तानि सर्वाणि यक्ष्यामि तीर्थान्यायतनानि च ॥२-५२-९०॥

माता सीता द्वारा ---
जो देवता आप के तट पर रहते है तथा प्रयाग आदि जो जो तीर्थ काशी आदि प्रसिद्द देव स्थान है उनकी मै पूजा करुँगी ।

पुत्रः दशरथस्य अयम् महा राजस्य धीमतः ।
निदेशम् पालयतु एनम् गन्गे त्वद् अभिरक्षितः ॥२-५२-८३॥
चतुर् दश हि वर्षाणि समग्राणि उष्य कानने ।
भ्रात्रा सह मया चैव पुनः प्रत्यागमिष्यति ॥२-५२-८४॥
ततः त्वाम् देवि सुभगे क्षेमेण पुनर् आगता ।
यक्ष्ये प्रमुदिता गन्गे सर्व काम समृद्धये ॥२-५२-८५॥

माता सीता द्वारा -----

हे गंगे बुद्धिमान राजाधिराज दशरथ जी के यह पुत्र श्री राम चन्द्र जी आप से रक्षित हो अपने पिता की आज्ञा का पालन करे ।
यदि ये पुरे चौदह वर्ष वनवास पुरे कर अपने भाई लक्ष्मण सहित मेरे साथ लौट आवेंगे तो हे देवी हे सुभगे मै सकुशल लौट कर आप की पूजा करुँगी हे गंगे आप सब मनोरथ को पूर्ण करने वाली है ।

नमस्तेऽन्तु महावृक्ष पारयेन्मे पतिर्वतम् ।
कौसल्याम् चैव पश्येयम् सुमित्राम् च यशस्विनीम् ॥२-५५-२५॥
इति सीताञ्जलिम् कृत्वा पर्यगच्छद्वनस्पतिम् ।

अवलोक्य ततः सीतामायाचन्तीमनिन्दिताम् ॥२-५५-२६॥
दयिताम् च विधेयम् च रामो लक्ष्मणमब्रवीत् ।

माता सीता द्वारा -----

हे महाबृक्षे मै आप को प्रणाम करती हु आप मेरे पति का व्रत पूरा कीजिये जिससे मै अपनी यस्स्वनि कौशल्या और सुमित्रा के दर्शन कर सकू ।
यह प्रार्थना कर हाथ जोड़े हुए सीता जी ने वट बृक्ष की परिकर्मा की
-----||●जय श्री राम ●||-----