#स्वामी_दयानंद_मुख_मर्दन
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से समाज मे ब्यभिचार फैलाने की कुचेष्टा की ताकि सनातन धर्म मे वर्णसंकरता को आसानी से फैलाया जा सके नियोग के माध्यम से , जिस भारत भूमि में सती सावित्री ,माता अनुसूया ,माता सीता के पवित्रता का गुणगान आज भी घर घर गाय जाता रहा है उसी भारत भूमि में बालिकाओं और स्त्रियों के चरित्रहनन का पाठ पढ़ाया जा रहा है सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से |
स्वामी दयानन्द सरस्वती जानते थे कि हिन्दुओ में वेदो के प्रति अटूट श्रद्धा है हिन्दुओ की आस्था जितनी ईश्वर में है उससे भी कहीं ज्यादा आस्था वेदो के प्रति है इस लिए नियोग को सिद्ध करने के लिए वैदिक के दिब्य ऋचाओ को अपने कुबुद्धि द्वरा अनर्थ कर लोगो के मध्य प्रचारित प्रसारित किया ।
भले ही मन्त्रो के वास्तविक अर्थ को विकृत कर लोगो के समक्ष क्यो न परोसा जाय ,स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ऋग्वेद के १० वे मण्डल के १० वां सूक्त के मन्त्र को आधार बनाया ,और मन्त्र को विकृत रूप से भाष्य कर प्रचारित किया || ताकि सामाजिक रूप से नियोग को मान्यता प्राप्त हो और कर्मणा जातिवाद को बढ़ावा मिले । स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जिस मन्त्र को प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया वह मन्त्र भी अधूरा है और अपने कथनों को सिद्ध कर पाए इसके लिए दयानन्द ने मन्त्रो को कांटछांट कर उसकी व्याख्या भी कर दी जो यह है
अन्यमि॑च्छस्व सुभगे॒ पतिं॒ मत् ॥ (ऋग्वेद १०/१०)
दयानन्द भाष्यार्थ :-जब पति सन्तानोत्पत्ति में असमर्थ होवे तब अपनी स्त्री को आज्ञा दे हे सुभगे सौभाग्य की इच्छा करने हारी स्त्री तू मुझसे अन्य दूसरे पति की इच्छा कर क्यो की अब मुझसे सन्तानोत्पत्ति न हो सकेगी तब स्त्री दूसरे से सम्बन्ध बना कर सन्तानोतप्ति करे ।
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अब आते है मूल बिषय पर :-- स्वामी दयानन्द सरस्वती ने जिस मन्त्र को कांट छांट कर व्याख्या की वह मन्त्र पूरा का पूरा यहाँ दिखलाया जा रहा है आप सब भी अवलोकन करें
आ घा॒ ता ग॑च्छा॒नुत्त॑रा यु॒गानि॒ यत्र॑ जा॒मयः॑ कृ॒णव॒न्नजा॑मि ।
उप॑ बर्बृहि वृष॒भाय॑ बा॒हुम॒न्यमि॑च्छस्व सुभगे॒ पतिं॒ मत् ॥(ऋग्वेद १०/१०/१०)
भाष्यार्थ :-- यम अपने बहन यमी से कहता है
(ता उत्तरा युगानी घा आगच्छान्) वह युग भविष्य में आ जाएंगे (यत्र) जिसमे (जामयः) भगिनियां (अजामी कृणवन् ) बंधुत्व के बिहीन भ्राता को पति बनावेगी इसलिए हे (सुभगे) सुन्दरी
(मत् अन्यं पतिं इच्छस्व) मुझसे भिन्न अन्य सुयोग्य वर को पति बनाने की इच्छा कर (बृषभाय बाहुं उप बर्बृहि ) बीर्य सेवन करने में समर्थ बाहु का आश्रय ले ।
स्वामी दयानन्द ने भाई बहन के मध्य हुए सम्वाद को पति पत्नी का सम्वाद बना डाला और लोगो के मध्य भ्रामकता का प्रचार किया की ( मैं सन्तानोतप्ति करने में असमर्थ हूँ इस लिए सन्तानोपत्ति के लिए तू किसी अन्य पुरुष से सम्बन्ध बना)
किसी को यहाँ शंका हो सकती है कि यह भाई बहन का सम्वाद कैसे ??
किसी भी बिषय पर व्याख्या करने से पहले पूर्व में आये हुए प्रसंग का बिचार कर पश्चात आये हुए बिषयों की व्याख्या होती है दसवे मण्डल के पूरा का पूरा दसवां सूक्त सहोदरता की पुष्टि करता है । ऋग्वेद के दसवां मण्डल यम यमी सूक्त के नाम से जाना जाता है यम यमी दोनों सहोदर (भाई बहन) है यमी अपने भाई यम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखता है यम अपने बहन यमी को यह कहते हुए प्रस्ताव को ठुकरा देता है की जो भ्राता अपने भगिनी को पत्नी रूप में स्वीकार करता है समाज मे लोग उसे पापी कहते है अतः तू मुझसे भिन्न किसी दूसरे सुयोग्य वीर्यवान पुरुष को पति बना ऐसा दिब्य सन्देश को स्वामी दयानन्द ने विकृत कर भाई बहन के मध्य हुए सम्वाद को पतिपत्नी बना डाला ।
वेदो का सन्देश दिब्य अलौकिक अपौरुषेय है वेदो का एक एक शब्द दिब्य ज्ञान को प्रकाशित करने वाला जिसकी समानता विश्व का कोई भी पौरुषेय (मानवी कृत) पुस्तक समानता नही कर सकता उसी दिब्य सन्देशो को दयानन्द सरस्वती ने विकृत कर सनातन धर्म ग्रन्थों पर घात किया है ।
स्मृतिकारों ने ठीक ही कहा है कि वेद अल्पश्रुत से डरता है कि कहीं वे मेरी हत्या न कर दे ।
केवल इतना ही नही दयानन्द सरस्वती ने इसी चतुर्थ समुल्लास में स्त्रियों को 11 -11 पुरुषों से सम्बन्ध बनाने को कहा है जैसे इस्लाम मे हलाला प्रथा है ठीक उसी प्रथा के चलन का वकालत दयानन्द सरस्वती ने किया है अपने बिचारो के माध्यम से और लोक में ढोल पीटा जाता है कि दयानन्द सरस्वती ने वैदिक धर्म की रक्षा की , यह सब कितना सही है आप सभी विद्वतजन बिचार करें ||
सनातन धर्म अपने आप मे पवित्रता का द्योतक है इसमें अपवित्र बिचारो का कोई स्थान नही ।
शैलेन्द्र सिंह