Thursday 5 April 2018

महर्षि वाल्मीकि जन्मना ब्राह्मण थे

#महर्षि_वाल्मीकि_जयंती_बिशेष
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मैकाले के अनौरस सन्तान वामपंथियों ने महर्षि वाल्मीकि को किरात,भील,मल्लाह,शुद्र तक बना डाला मिथ्या प्रचार कर लोगो मे भ्रम उतपन्न किया है जबकि यह असत्य और शास्त्र विरुद्ध है ।
महर्षि वाल्मीकि को सास्त्रो में आदिकवि बताया गया है महर्षि वाल्मीकि ने श्रीमद्वाल्मीकिरामायण  में अपना परिचय देते हुए कहते है कि मैं भृगुकुल वंश उतपन्न ब्राह्मण हुँ

सन्निबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विशत्सहस्रकम् ।
उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना ।। ७.९४.२६ ।।
इस महाकाब्य में इलोपख्यान २४ सहस्त्र श्लोक है और सौ उपाख्यान है जिसे भृगुवंशीय महर्षि वाल्मीकि जी ने बनाया है ।

महाभारत में भी वाल्मीकि को भार्गव (भृगुकुलोद्भव )
कहा गया है और यही रामायण के रचनाकार है ।

श्लोकद्वयं पुरा गीतं भार्गवेण महात्मना।
आख्याते राजचरिते नृपतिं प्रति भारत।।(महा० शान्तिपर्व १२/५६/४०)

शिवपुराण में यद्यपि उन्हें जन्मांतर का चौर्य बृती करनेवाला बताया तथापि वे भार्गवकुलोतपन्न थे भार्गववंश में लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण थे उन्ही का दूसरा नाम ऋक्ष था ब्राह्मण हो कर भी चौर्य आदि का काम करते थे और श्रीनारद जी की सद्प्रेरणा  पुनः तप के द्वारा महर्षि हो गये  !
इसके अलावा विष्णुपुराण में भी इन्हें भृगुकुलोद्भव ऋक्ष हुए जो  वाल्मीकि कहलाये ।

ऋक्षोऽभूद्भार्गवस्तस्माद् वाल्मीकिर्योऽबिधीयते ।(विष्णु पुराण ३/३/१८)

श्रीमदवाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि अपना परिचय देते हुए कहते है

प्रचेतसो ऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन ।।(वा० रा ७.९६.१९ ।)
मैं प्रचेतस का दसवां पुत्र वाल्मीकि हुँ ।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है

कति कल्पान्तरेऽतीते स्रष्टुः सृष्टि विधौ पुनः ।।
यः पुत्रश्चेतसो धातुर्बभूव मुनिपुंगवः ।।
तेन प्रचेता इति च नाम चक्रे पितामहः ।।१/२२/ १-३ ।।

अर्थात कल्पनान्तरो के बीतने पर सृष्टा के नवीन सृष्टि विधान में ब्रह्मा के चेतस से जो पुत्र उतपन्न हुआ उसे ही ब्रह्मा के प्रकृष्ट चित से उतपन्न होने के कारण प्रचेता कहा गया ।
इस लिए ब्रह्मा के चेत से उतपन्न दस पुत्रो में वाल्मीकि प्रचेतस प्रसिद्ध हुए ।
मनुस्मृति में वर्णन है ब्रह्मा जी ने प्रचेता आदि दस पुत्र उतपन्न किये ।

अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ।
पतीन्प्रजानां असृजं महर्षीनादितो दश । । १.३४ । ।
मरीचिं अत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम् ।
प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदं एव च । । १.३५ । ।

भगवन जन्मांतर से ही ब्राह्मण थे शुद्र नही

गुरु लक्षण

#गुरु_लक्षण

एतद्‍देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मन:।
    स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन पृथिव्यां सर्वमानवा:॥(मनुस्मृति)
जो अग्रजन्मा है उसी से पृथ्वी के सभी मानव अपना आचार बिचार सीखें ।

ब्राह्मण सभी वर्णो में।अग्रजन्मा है
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् (ऋग्वेद)
उत्तमाङ्गोद्भवाज्ज्येष्ठ्याद्ब्रह्मणश्चैव धारणात् ।
सर्वस्यैवास्य सर्गस्य धर्मतो ब्राह्मणः प्रभुः (मनुस्मृति १.९३ )

वेदादि शास्त्रो में ब्राह्मण को मुख कहा गया है !
वाक् और बुद्धि  ही अंग प्रत्यंग से लेकर साम्राज्य तक का शाशन करता है यह दृष्टान्त जगत में देखा जाता है जिस कारण किस वर्ण का क्या आचरण है यह ब्राह्मण से ही जानना चाहिए क्यो ?
क्योकि
वर्णानां ब्राह्मणः प्रभुः (मनुस्मृति १०.३ )
उत्पत्तिरेव विप्रस्य मूर्तिर्धर्मस्य शाश्वती ।(मनुस्मृति )
ब्राह्मणो जायमानो हि पृथिव्यां अधिजायते ।(मनुस्मृति)
पृथग्धर्माः पृथक्शौचास्तेषां तु ब्राह्मणो वरः।।(महाभारत -- आदिपर्व ८१/२०)

ब्राह्मण स्वयं धर्म स्वरूप है ।
जिस कारण श्रुतिस्मृति आदि ग्रन्थों में ब्राह्मण के सानिध्य में ही  अध्ययन अध्यापन और आचार बिचार की शिक्षा ग्रहण करने का आदेश दिया गया है

गुरुर्हि सर्वभूतानां ब्राह्मणः(महाभारत आदिपर्व १/२८/३५)
अधीयीरंस्त्रयो वर्णाः स्वकर्मस्था द्विजातयः ।
प्रब्रूयाद्ब्राह्मणस्त्वेषां नेतराविति निश्चयः । ।
सर्वेषां ब्राह्मणो विद्याद्वृत्त्युपायान्यथाविधि ।
प्रब्रूयादितरेभ्यश्च स्वयं चैव तथा भवेत् । । (मनुस्मृति १०/१-२)
ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् (श्रीमद्भागवतगीता १८- ४२ )
वृत्त्यर्थं याजयेदज्वान्यानन्यानध्यापयेत् तथा ।
कुर्यात् प्रतिग्रहादानं गुर्वर्थं न्यायतो द्रिजः (विष्णु पुराण ३/२३ )
सास्त्रज्ञा नित्य है और सास्त्रज्ञा मानने वाला ही ईश्वर का आराधना करता है सास्त्र द्रोही नही विष्णुपुराण का उद्घोष है अब उसे न मान मनमाना आचरण को ही धर्म मान ले तो उससे बड़ी और मूर्खता क्या ।

वर्णास्वमेषु ये धर्माः शास्त्रोक्ता नृपसत्तम ।
तेषु तिष्ठन् नरो विष्णुमाराधयति नान्यथा ।(विष्णु पुराण ३/ १९ )