#महर्षि_वाल्मीकि_जयंती_बिशेष
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मैकाले के अनौरस सन्तान वामपंथियों ने महर्षि वाल्मीकि को किरात,भील,मल्लाह,शुद्र तक बना डाला मिथ्या प्रचार कर लोगो मे भ्रम उतपन्न किया है जबकि यह असत्य और शास्त्र विरुद्ध है ।
महर्षि वाल्मीकि को सास्त्रो में आदिकवि बताया गया है महर्षि वाल्मीकि ने श्रीमद्वाल्मीकिरामायण में अपना परिचय देते हुए कहते है कि मैं भृगुकुल वंश उतपन्न ब्राह्मण हुँ
सन्निबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विशत्सहस्रकम् ।
उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना ।। ७.९४.२६ ।।
इस महाकाब्य में इलोपख्यान २४ सहस्त्र श्लोक है और सौ उपाख्यान है जिसे भृगुवंशीय महर्षि वाल्मीकि जी ने बनाया है ।
महाभारत में भी वाल्मीकि को भार्गव (भृगुकुलोद्भव )
कहा गया है और यही रामायण के रचनाकार है ।
श्लोकद्वयं पुरा गीतं भार्गवेण महात्मना।
आख्याते राजचरिते नृपतिं प्रति भारत।।(महा० शान्तिपर्व १२/५६/४०)
शिवपुराण में यद्यपि उन्हें जन्मांतर का चौर्य बृती करनेवाला बताया तथापि वे भार्गवकुलोतपन्न थे भार्गववंश में लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण थे उन्ही का दूसरा नाम ऋक्ष था ब्राह्मण हो कर भी चौर्य आदि का काम करते थे और श्रीनारद जी की सद्प्रेरणा पुनः तप के द्वारा महर्षि हो गये !
इसके अलावा विष्णुपुराण में भी इन्हें भृगुकुलोद्भव ऋक्ष हुए जो वाल्मीकि कहलाये ।
ऋक्षोऽभूद्भार्गवस्तस्माद् वाल्मीकिर्योऽबिधीयते ।(विष्णु पुराण ३/३/१८)
श्रीमदवाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि अपना परिचय देते हुए कहते है
प्रचेतसो ऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन ।।(वा० रा ७.९६.१९ ।)
मैं प्रचेतस का दसवां पुत्र वाल्मीकि हुँ ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है
कति कल्पान्तरेऽतीते स्रष्टुः सृष्टि विधौ पुनः ।।
यः पुत्रश्चेतसो धातुर्बभूव मुनिपुंगवः ।।
तेन प्रचेता इति च नाम चक्रे पितामहः ।।१/२२/ १-३ ।।
अर्थात कल्पनान्तरो के बीतने पर सृष्टा के नवीन सृष्टि विधान में ब्रह्मा के चेतस से जो पुत्र उतपन्न हुआ उसे ही ब्रह्मा के प्रकृष्ट चित से उतपन्न होने के कारण प्रचेता कहा गया ।
इस लिए ब्रह्मा के चेत से उतपन्न दस पुत्रो में वाल्मीकि प्रचेतस प्रसिद्ध हुए ।
मनुस्मृति में वर्णन है ब्रह्मा जी ने प्रचेता आदि दस पुत्र उतपन्न किये ।
अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ।
पतीन्प्रजानां असृजं महर्षीनादितो दश । । १.३४ । ।
मरीचिं अत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम् ।
प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदं एव च । । १.३५ । ।
भगवन जन्मांतर से ही ब्राह्मण थे शुद्र नही
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मैकाले के अनौरस सन्तान वामपंथियों ने महर्षि वाल्मीकि को किरात,भील,मल्लाह,शुद्र तक बना डाला मिथ्या प्रचार कर लोगो मे भ्रम उतपन्न किया है जबकि यह असत्य और शास्त्र विरुद्ध है ।
महर्षि वाल्मीकि को सास्त्रो में आदिकवि बताया गया है महर्षि वाल्मीकि ने श्रीमद्वाल्मीकिरामायण में अपना परिचय देते हुए कहते है कि मैं भृगुकुल वंश उतपन्न ब्राह्मण हुँ
सन्निबद्धं हि श्लोकानां चतुर्विशत्सहस्रकम् ।
उपाख्यानशतं चैव भार्गवेण तपस्विना ।। ७.९४.२६ ।।
इस महाकाब्य में इलोपख्यान २४ सहस्त्र श्लोक है और सौ उपाख्यान है जिसे भृगुवंशीय महर्षि वाल्मीकि जी ने बनाया है ।
महाभारत में भी वाल्मीकि को भार्गव (भृगुकुलोद्भव )
कहा गया है और यही रामायण के रचनाकार है ।
श्लोकद्वयं पुरा गीतं भार्गवेण महात्मना।
आख्याते राजचरिते नृपतिं प्रति भारत।।(महा० शान्तिपर्व १२/५६/४०)
शिवपुराण में यद्यपि उन्हें जन्मांतर का चौर्य बृती करनेवाला बताया तथापि वे भार्गवकुलोतपन्न थे भार्गववंश में लोहजङ्घ नामक ब्राह्मण थे उन्ही का दूसरा नाम ऋक्ष था ब्राह्मण हो कर भी चौर्य आदि का काम करते थे और श्रीनारद जी की सद्प्रेरणा पुनः तप के द्वारा महर्षि हो गये !
इसके अलावा विष्णुपुराण में भी इन्हें भृगुकुलोद्भव ऋक्ष हुए जो वाल्मीकि कहलाये ।
ऋक्षोऽभूद्भार्गवस्तस्माद् वाल्मीकिर्योऽबिधीयते ।(विष्णु पुराण ३/३/१८)
श्रीमदवाल्मीकि रामायण में वाल्मीकि अपना परिचय देते हुए कहते है
प्रचेतसो ऽहं दशमः पुत्रो राघवनन्दन ।।(वा० रा ७.९६.१९ ।)
मैं प्रचेतस का दसवां पुत्र वाल्मीकि हुँ ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है
कति कल्पान्तरेऽतीते स्रष्टुः सृष्टि विधौ पुनः ।।
यः पुत्रश्चेतसो धातुर्बभूव मुनिपुंगवः ।।
तेन प्रचेता इति च नाम चक्रे पितामहः ।।१/२२/ १-३ ।।
अर्थात कल्पनान्तरो के बीतने पर सृष्टा के नवीन सृष्टि विधान में ब्रह्मा के चेतस से जो पुत्र उतपन्न हुआ उसे ही ब्रह्मा के प्रकृष्ट चित से उतपन्न होने के कारण प्रचेता कहा गया ।
इस लिए ब्रह्मा के चेत से उतपन्न दस पुत्रो में वाल्मीकि प्रचेतस प्रसिद्ध हुए ।
मनुस्मृति में वर्णन है ब्रह्मा जी ने प्रचेता आदि दस पुत्र उतपन्न किये ।
अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सुदुश्चरम् ।
पतीन्प्रजानां असृजं महर्षीनादितो दश । । १.३४ । ।
मरीचिं अत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम् ।
प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदं एव च । । १.३५ । ।
भगवन जन्मांतर से ही ब्राह्मण थे शुद्र नही