#श्रीकृष्ण
#रानू_विश्वकर्मा जी प्रश्न करते है :--- क्या श्रीकृष्ण भगवन् है ? क्या वे जगत के पालनहार है ??
साथ ही साथ वे आक्षेप भी लगाते है श्रीकृष्ण भगवन् नही वह तो ईश्वर के फरिस्ते है श्रीकृष्ण तो मृत्यु को प्राप्त हुए जिनकी मृत्यु हो वह ईश्वर कैसे ??
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Ranu Vishwakarma जी के शंकाओं का समाधान
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यह समस्त चराचर जगत जिससे उतपन्न होता है जिनके आश्रय से जीवित रहते है अन्त में बिनाशोउन्मुख होकर जिनमे लीन होते है वही ब्रह्म है ।
आप समस्त हेय गुणों से रहित समस्त कल्याणगुणो को धारण करने वाले सर्वज्ञ,सत्यसङ्कल्प, अकाशात्मा
सर्वकर्मा ,सर्वकाम,सर्वगन्ध,सर्वरस ,से परिपूर्ण पूर्णानंद बिकार,जरा मृत्यु से रहित निष्कलंक ,निरंजन,निर्विध्न,अमृत का सेतु है आप की नाना प्रकार की शक्ति सुनी जाती है ज्ञान,बल,क्रिया जो आप का स्वभाविकि गुण है
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यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते । येन जातानि जीवन्ति । यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति । तद्विजिज्ञासस्व । तद् ब्रह्मेति ।(तैत्तरीय उपनिषद)
सत्यसङ्कल्प आकाशात्मा सर्वकर्मा सर्वकामः सर्वगन्धः सर्वरसः (छा०उ०३/१४/२)
य आत्मापहतपाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोको विजिघत्सोऽपिपासः सत्यकामः सत्यसङ्कल्पः सोऽन्वेष्टव्यः (छा०उ०८/७/१)
निष्कलं निष्क्रियंशान्तं निरवद्यं निरञ्जनम् । अमृतस्य परंसेतुं (श्वे ०उ० ६/१९)
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च (श्वे०उ०६/८)
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समस्त शक्तियों का जो नियमन करते है वही ईश्वर है इस कार्यकारण से ही शाश्त्रो में आप को ईश्वर ,प्रभु,भगवन् आदि नामों से कहे गए है निखिल विरुद्धाविरुद्ध शक्तिमत्तत्व ही भगवन् है ।
सम्पूर्ण ऐश्वर्य , वीर्य ( जगत् को धारण करने की शक्तिविशेष ) , यश ,श्री ,समस्त ज्ञान , और परिपूर्ण वैराग्य ।
“ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।”
—विष्णु पुराण ,६/५/७४ ,
अब ये छहों गुण जिसमे नित्य रहते हैं ,उन्हें भगवान् कहते हैं ।
भगोस्ति अस्मिन् इति भगवान्, यहाँ भग शब्द से मतुप् प्रत्यय नित्य सम्बन्ध बतलाने के लिए हुआ है । अर्थात् पूर्वोक्त छहों गुण जिनमे हमेशा रहते हैं ,उन्हें भगवान् कहा जाता है |मतुप् प्रत्यय नित्य योग (सम्बन्ध ) बतलाने के लिए होता है –यह तथ्य वैयाकरण भलीभांति जानते है
“भूमनिन्दाप्रशन्सासु नित्ययोगेतिशायने |संसर्गेस्ति विवक्षायां भवन्ति मतुबादयः ||”
-सिद्धान्तकौमुदी , पा.सू .५/२/९४ पर वार्तिक,
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कुछ अल्पज्ञ अल्पश्रुत भ्रांत वादियों का कहना है कि श्रीकृष्ण भगवन् नही है वे ईश्वर के (दूत) प्रतिनिधि है ।
उनके बिषय में मैं बस इतना ही कहूंगा कि पूर्णप्रज्ञ त्रिकालदर्शी महर्षि वेदव्यास के प्रज्ञा के आगे विश्व के सभी विद्वान बौना है फिर अल्पज्ञ अल्पश्रुतो का तो कहना ही क्या ।
केवल वेदव्यास ही क्यो वेदविद् परशुराम,भीष्म,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य,विदुर,अश्वथामा,कर्ण, राजा शल्य,युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव,धृतराष्ट्र,तथा द्वापर युग के समस्त नृपगण जो वेद विशारद है वे भगवन् श्रीकृष्ण की परमतत्व होने की पुष्टि करते है तथा भगवन् श्रीकृष्ण के बिभूतियो का गायन मुक्त कण्ठ से करते है वे सभी वेद विद्या में निपुण थे वे यह जानते थे कि श्रीकृष्ण षड् गुण ऐश्वर्यों से परिपूर्ण भगवद् तत्व है क्या उनके समकक्ष आज के सभी विद्वान क्षण मात्र भी टिक पाएंगे ??
सभी सुहृदयजनो का एक ही उत्तर होगा नही ।
ईश्वर के प्रतिनिधि(दूत) ईश्वर के आदेशों का पालन मात्र ही करते है जबकि ईश्वर समस्त चराचर सृष्टि का सञ्चालन ।
ईश्वर के प्रतिनिधि भगवद् तत्व की व्याख्या श्रुतिस्मृति प्रोक्त आचरणों से परिपूर्ण वेदादि बिषयो के व्याख्याकार होते है
भूत भविष्य के द्रष्टा हो सकते है परन्तु सञ्चालक कर्ता नही ।
द्वापर युग मे भगवन् श्रीकृष्ण के समकालीन वेद विशारद महात्मन श्रीकृष्ण के बिषय में क्या कहते है आइये देखते है ।
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●महर्षि वेद व्यास
आदिदेवो जगन्नाथो लोककर्ता स्वयं प्रभुः (महाभारत द्रोणपर्व २०१)
●महर्षि मार्केण्डेय
स एष कृष्णो वार्ष्णेय: पुरणपुरुषों विभु: (महाभारत वनपर्व / ५४)
सर्वेषामेव भूतानां पिता माता च माधवा: (महाभारत वनपर्व )
●ब्राह्मणशिरोमणि परशुराम
निर्माता सर्वलोकानामीश्वरः सर्वकर्मवित्। (महाभारत उद्योग पर्व ९६/ ४६)
●भीष्म द्वरा श्रीकृष्ण की स्तुति
अनाद्यन्तं परं ब्रह्म न देवा नर्षयो विदू (महाभारत शांतिपर्व ४१/१८)
यस्मिन् विश्वानि भूतानि तिष्ठन्ति च विशन्ति च (महाभारत शांतिपर्व ४१/२१)
यस्मिँल्लोका: स्फुरन्ति में जले शकुनयो यथा
ऋतमेकारक्षरं ब्रह्म यत् यत् सदसतो: परम् (महाभारत शांतिपर्व ४१/३४)
●सञ्जय द्वारा श्रीकृष्ण के बिभूतियो का गायन
मनसैव विशिष्टात्मा नयत्यात्मवशं वशी (महाभारत उद्योगपर्व ६८/५)
यतः कृष्णस्ततो जयः (महाभारत उद्योग पर्व ६८ /९)
कालचक्रं जगच्चक्रं युगचक्रं च केशवः। (महाभारत उद्योग पर्व ६८/१२)
●युधिष्ठित द्वरा श्रीकृष्ण की स्तुति
नमस्ते देवदेवेश सनातन विशातन।
विष्णो जिष्णो हरे कृष्ण वैकुण्ठ पुरुषोत्तम। (महाभारत द्रोणपर्व ८३/१८)
●अर्जुन द्वरा श्रीकृष्ण का ईश्वरत्व की।पुष्टि
क्षेत्रज्ञः सर्वभूतानामादिरन्तश्च केशव ।
निधानं तपसां कृष्ण यज्ञस्त्वं च सनातनः । (महाभारत वन पर्व १२/१७)
●धृतराष्ट्र द्वरा श्रीकृष्ण ही जगत के हितकर्ता है
त्वमेव पुण्डरीकाक्ष सर्वस्य जगतो हितः।(महाभारत उद्योग पर्व १३०/१७)
साथ ही साथ कौराव सभा मे बैठे समस्त नृपगण के समक्ष श्रीकृष्ण ने अपना दिब्य रूप का दर्शन भी कराया था ।
अश्वथामा के ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ का नष्ट होना पश्चात श्रीकृष्ण द्वरा गर्भ में परीक्षित को पुनः जीवन दान देना क्या उनके बिभूतियो का गायन करने करते कण्ठ भी मौन हो जाय फिर भी उनके बिभूतियो का अन्त न होगा ।
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वही कुरान में आये अल्लाह के बिषय में भी जरा प्रकाश डाल दे
कुरान में अल्लाह के बिषय में केवल मात्र मोहम्मद सल्लाह ही प्रमाण है कोई अन्य नही उस काल खण्ड में अल्लाह के बिषय में न किसी को अनुभूति ही हुई और न ही कोई साक्षी बने यह वैसा ही है जैसे एक ब्यक्ति ने कहा सामने वाले पहाड़ी पर सिंह रहता है उसे सुन कर उसके मित्र ,सुहृदज़न मान लिए जबकि न तो कभी उसने सिंह की गर्जना सुनी न ही उनलोगों को सिंह होने का अनुभूति ही हुआ
मनुष्य ,भ्रम,प्रमाद,विप्रलिप्सा,कर्णपाटव, ईर्ष्या ,लोभ जनित बिषयो से ग्रसित होता है ,एक ही बिषय में यदि कोई एक ही ब्यक्ति प्रमाण हो तो उसकी प्रामाणिकता में भी सन्देह होना निर्विवाद है ऐसे प्रमाणों को आज के न्यायव्यवस्था भी नही मानती उन्हें भी विटनेश (साक्षी) की आवश्यकता होती है और अल्लाह के बिषय में मुहम्मद को छोड़ कोई अन्य ब्यक्ति साक्षी भी नही ।
ऐसे में मोहम्मद सल्लाह ने अल्लाह के बिषय में झूठ नही कहा इसकी प्रमाणिकता कौन तय करे ?
जबकि श्रीकृष्ण के ब्रह्मबिषय में उनके समकालीन समस्त नृपगण ,ऋषि ,मुनि जन ने उनके दिब्यता को देखा अनुभव किया जाना ततपश्चात सभी का एक ही मत स्प्ष्ट रहा कि श्रीकृष्ण स्वयं परमेश्वर है
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मैने अन्य ग्रन्थों का साक्ष्य इस लिए नही दिया कि महाभारत में आये हुए पात्र सभी के सभी भगवन् श्रीकृष्ण के समकालीन थे
श्रीकृष्ण की भगवद् तत्व का विवेचन समस्त पुराण आदि ग्रन्थों में निहित है जिनमे श्रीकृष्ण को परम तत्व कहा गया है
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अल्पज्ञ अल्पश्रुत भ्रांत वादियों का आक्षेप है कि श्रीकृष्ण ने मृत्यु को प्राप्त किया तो वह भगवन् कैसे ???
प्रथमतः स्प्ष्ट कर देना चाहता हूं कि श्रीकृष्ण अवध्य है
अवध्यौ वदत: कृष्णो (महाभारत कर्ण पर्व ४१/७९)
क्यो की उनका जन्मकर्म ही दिब्य है
जन्म कर्म च मे दिव्यम् (गीता) वे अपनी योगमाया शक्ति से आविर्भावित होते है
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया। (गीता)
ब्रह्मादि देवता मेरे प्रभवको यानी अतिशय प्रभुत्वशक्तिको अथवा प्रभव यानी मेरी उत्पत्तिको नहीं जानते और भृगु आदि महर्षि भी ( मेरे प्रभवको ) नहीं जानते।
न मे विदु: सुरगणाः प्रभवं न महर्षयः (गीता)
भगवन् श्रीकृष्ण का विग्रह सच्चिदानंद स्वरूप पाञ्चभौतिक तत्व से परे दिब्य तत्वो से बना है जिसका छेदन का सामर्थ्य स्वयं काल भी न करें फिर अन्य तत्वो की बात ही क्या , धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र समरांगण में भीष्म,द्रोण,कर्ण अश्वथामा जैसे मृत्यु को भी जीत लेने वाले योद्धा भी जिन्हें मृत्यु छू न सके उन जैसे योद्धाओं ने भी श्रीकृष्ण के बाल भी बांका न कर सके अपितु स्वयं श्रीकृष्ण ने ही सबके प्राणों का हरण भी किये
मयैवैते निहताः पूर्वमेव (श्रीमद्भागवद्गीता ११/३३ )
फिर उस परात्पर के बिनाश के बिषय में सोचना भी अल्पज्ञता का ही संकेत है
समस्त कार्य पूर्ण होने के पश्चात भगवन् स्वेच्छा से अपने शरीर का त्याग कर परमधाम को प्राप्त हुए थे ।
देवोपि सन्देहविमोक्षहेतो-र्निमित्तमैच्छत्सकलार्थतत्त्ववित्।।
स सन्निरुद्धेन्द्रियवाङ्मनास्तुशिश्ये महायोगमुपेत्य कृष्णः। (मौसल पर्व )
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नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां विभूतीनां(१०/४०)
जिनकी बिभूतियाँ अनन्त हो उनके बिभूतियो का दिग्दर्शन कौन करा पाए उनके बिभूतियो को न तो देवगण ही जानते है न ऋषि गण ही जानते है वे भी नेति नेति कह कर मौन हो जाते है उस परब्रह्म के बिषय में हम जैसे क्षुद्र प्राणी अपने शब्दों से जितना भी लिख ले वह अंश मात्र ही होगा
#रानू_विश्वकर्मा द्वारा उठाये गए प्रश्नों का स्क्रीनशॉट कॉमेंट्स बॉक्स में आप सभी मित्रगण देख सकते है
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उस परब्रह्म पुरुषोत्तम के बिषय में मेरा मत् यही है
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मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति (गीता)
वासुदेवः सर्वमिति (गीता)
शैलेन्द्र सिंह