----------- यज़ीदी Yazidi -------------------
सम्भवतः किसी और नृवंश ने यज़ीदी लोगो जैसा संत्रास नही है ईरान में अलकायदा ने उन्हें काफ़िर घोषित कर संपूर्ण नरसंहार की अनुमति दे दी 2007 में सुनियोजित ढंग से कार बमो की सृंखला ने उनमे से लगभग 800 लोगो की हत्या कर दी ।
इस्लामिक स्टेट ने 2014 में यज़ीदी नगरों और गाँवो के बिनाश का एक अभियान आरम्भ किया और इसने उनमे से लगभग 3000 लोगो की हत्या कर दी 6500 का अपहरण किया और 4500 यज़ीदी महिलाओं और लड़कियों को यौन दासत्व हेतु बेच दिया बहुत से अपहृत लड़कियों ने आत्महत्या कर ली ।
यज़ीदी मुख्यतः उतरी ईराक में रहने वाले कुर्दिश भाषी लोग है ।सदियों से अपने मुस्लिम ईसाई पड़ोसियों द्वारा घृणित इन लोगो ने 70 से ज्यादा नरसंहार का सामना किया जिनमे 2 करोड़ से ऊपर यज़ीदियों की मृत्यु का अनुमान है । और इनमें से अधिकाँश अपनी संस्कृति का त्याग करने के लिए बाध्य कर दिए गए है । यूरोप में शरण लिए हुए 150000 यज़ीदियों की संख्या मिलाकर आज लगभग 800000 वे स्वयं सच्चे ईश्वर में आस्था रखने वाले बताते है और वे मयूर देवदूत "ताऊस मेलेके" की आराधना करते है जो अनन्त ईश्वर का रूप (अवतार) है छः दूसरे देवदूत ताऊस मेलेके के सहयोगी है और वे सृष्टि के सात दिनों से सम्बन्ध है जिसमे से रविवार ताऊस मेलेके का दिन है यज़ीदियों के मंदिर और पूजा गृह तथा दूसरे स्थानों की सज्जा मोर के चित्रांकन से की जाती है उन पर हो रहे आक्रमण ईसाइयो और मुसलमानों के इस बिस्वास का परिणाम है कि मयूर दूत इब्लीस यत् शैतान है ।
यज़ीदी पंथ एक रहस्य वादी परम्परा है जिसके प्रार्थना गीत कव्वालों की तरह गाया जाता है परम्परा के कुछ अंश अब दो पुस्तको में संग्रहित किये गए है जिन्हें किताब अल जिल्वा और मिशेफ रेश कहा जाता है यजीदी अपनी उतप्ति भारत में होने का दावा करते है और मोर के प्रति उनका श्रद्धाभाव इस मूल की स्मृति हो सकता है भारत में मोर शिवपुत्र कार्तिकेय (मुरुगन) देव् का वाहन है कृष्ण भी अपनी केशो में या मुकुट में मोरपंख पहनते थे आदिम इंद्रधनुष में उपजे सात रंगों में नीला रंग ताऊस मेलेके से सम्बंधित है जो कृष्ण का भी रंग है ।
यज़ीदि सूर्यउन्मुख हो कर प्राथना करते है भारतीय परंपरा जैसे पुनर्जन्म में बिश्वाश करते है और उनकी मान्यता यह है कि ताऊस मेलेके के अतिरिक्त अन्य सभी देवदूत धरती पर संतो और पवित्रआत्मा के रूप में अवतरित होते है । हिन्दुओ की तरह वे पुनर्जन्म के लिए वस्त्र बदलने के रूपक का प्रयोग करते है दूसरी भारोपीय संस्कृति की तरह यज़ीदी समुदाय तीनो वर्गो में बिभाजित है शेख (पुजारी) पिर (वयोबृद्ध) मुरीद ( जनसामान्य) और वे विवाह सम्बन्ध अपनी समूह में ही करते है यज़ीदियों में पंथ परिवर्तन करने का विधान नही है वंश आधारित प्रशाशनिक प्रमुख मीर (राजकुमार) होता है जबकि बाबा शेख धार्मिक पद के प्रमुख होते है यज़ीदी अपने आप को दासेनी कहते है जो देवयास्नी ( संस्कृत देवयज्ञी ) देवपूजक से उद्भूत है यजीदी शब्द यजाता से व्युत्पन्न है जो प्राचीन पारशी और कश्मीर में यजात कहलाता है प्राचीन पारशी में देव को देवा कहते है प्राचीन भारत ईरान और पश्चिम एशिया में देव् पूजको को देवयज्ञी या देवयस्नी कहा जाता था जिसके समानार्थी सनातन वैदिक धर्म है पारशी अपने पन्थ को माज्दायास्ना ( संस्कृत -: मेघा यज्ञ ) या अहुर माज्दा (संस्कृत- असुर मेघा -मेघा के देव्) का पंथ कहते है भारत में देव् यास्ना के प्रसार के सबसे प्रबल संभावना हड़प्पा संस्कृति के क्षय के पश्चात लगभग 1900 ईशा पूर्व की बनती है अफ़ग़ानिस्तान के समीप उत्तर पूर्व ईरान क्षेत्र थे देवपूजक समुदायों को भारत स्थित समुदायों से विखण्डित कर दिया यज़ीदियों का 4000 वर्ष पूर्व भारत से लौटने का मेल खाता है । प्रसङ्गवश यह रोचक की अरस्तू को यह विश्वास था की यहूदियों का मूल भूमि भारत ही था । इसके अतिरिक्त स्वयं को एकेश्वरवादी (अल -मुवहिहदून) अरबी भाषा कहने वाला ड्रुज समुदाय भी पूर्वजन्म में बिश्वाश रखता है और उसके पवित्र धर्मग्रन्थ में रसाईल -अल हिन्द (भारतीय पत्रावली) भी सम्मलित है ।
पारशि पंथ के उदय के पश्चात पश्चिमी एशिया देवयास्नी पन्थ लंबे समय तक बना रहा उसके बने रहने का प्रमाण ईरानी सम्राट (xerxes _486-465) ईशा पूर्व के देव् या दैव अभिलेख मिलते है जिसमे देवयास्नी बिद्रोह का सीधा उल्लेख मिलता है
【जैरजैस घोषणा करता है और इन क्षेत्रों में एक स्थान ऐसा है जहाँ देव् पूजे जाते थे तदोपरान्त अहुरमज्द की कृपा से मैंने देव् स्थान को नष्ट कर दिया और मैंने घोषणा की देव् नही पूजे जाएंगे 】
यह लगभग 2500 वर्ष पहले यज़ीदियों के देवयास्नी पूर्वजो के द्वारा झेले गये दमन का एक पुराना लिखित प्रमाण है यज़ीदी पञ्चाङ्ग 4750 ईशा पूर्व जाता है जोकी यवन (ग्रीक) इतिहासकार एरियन (Arrian) द्वारा सिकन्दर अभियान के वर्णन में उल्लेखित ,भारत के 6676 ईशा पूर्व में उदित हुए पुराने सप्तऋषि पञ्चाङ्ग से सम्बंधित प्रतीत होता है ।
यज़ीदियों की आध्यात्मिक परम्परा समृद्ध है और उसकी वर्तमान संस्कृति परम्परा 12 वी सदी के शेख आदि (देहांत 1162) ई: से प्राम्भ होती है जो चौथे उमय्यद ख़लीफ़ा मर्वान प्रथम के वंशज थे शेख आदि की मकबरा उत्तरी इराक के लालिश में है जो यज़ीदी तीर्थयात्रा के मुख्य केंद्र बिन्दु है नववर्ष उत्सव में कांस्य मयूर आरती दीपो जैसे ही मयूर गढ़े हुए कांस्य दिप संजक एक शोभा यात्रा में कव्वालों के द्वारा मीर के आवाश से लेकर यज़ीदी गांव में घुमाये जाते है मान्यता है कि संजक भारत से आये थे और सात पवित्र देवदूतों के प्रतीक के रूप में मूलतः उनकी संख्या सात थी जिनमे से पांच तुर्को द्वारा छीन लिए गये अब मात्र दो ही बचे है यज़ीदी लोग मानवता के अदम्य संकल्पशक्ति के एक प्रतीक है संसार में सर्वाधिक दमित और प्रताड़ित जन में से एक यज़ीदी समुदाय चरम बिपरीत परिस्थियों में भी अपने साहस और बीरता के लिए प्रशंसा सहयोग और समर्थ। के पात्र है ।
सम्भवतः किसी और नृवंश ने यज़ीदी लोगो जैसा संत्रास नही है ईरान में अलकायदा ने उन्हें काफ़िर घोषित कर संपूर्ण नरसंहार की अनुमति दे दी 2007 में सुनियोजित ढंग से कार बमो की सृंखला ने उनमे से लगभग 800 लोगो की हत्या कर दी ।
इस्लामिक स्टेट ने 2014 में यज़ीदी नगरों और गाँवो के बिनाश का एक अभियान आरम्भ किया और इसने उनमे से लगभग 3000 लोगो की हत्या कर दी 6500 का अपहरण किया और 4500 यज़ीदी महिलाओं और लड़कियों को यौन दासत्व हेतु बेच दिया बहुत से अपहृत लड़कियों ने आत्महत्या कर ली ।
यज़ीदी मुख्यतः उतरी ईराक में रहने वाले कुर्दिश भाषी लोग है ।सदियों से अपने मुस्लिम ईसाई पड़ोसियों द्वारा घृणित इन लोगो ने 70 से ज्यादा नरसंहार का सामना किया जिनमे 2 करोड़ से ऊपर यज़ीदियों की मृत्यु का अनुमान है । और इनमें से अधिकाँश अपनी संस्कृति का त्याग करने के लिए बाध्य कर दिए गए है । यूरोप में शरण लिए हुए 150000 यज़ीदियों की संख्या मिलाकर आज लगभग 800000 वे स्वयं सच्चे ईश्वर में आस्था रखने वाले बताते है और वे मयूर देवदूत "ताऊस मेलेके" की आराधना करते है जो अनन्त ईश्वर का रूप (अवतार) है छः दूसरे देवदूत ताऊस मेलेके के सहयोगी है और वे सृष्टि के सात दिनों से सम्बन्ध है जिसमे से रविवार ताऊस मेलेके का दिन है यज़ीदियों के मंदिर और पूजा गृह तथा दूसरे स्थानों की सज्जा मोर के चित्रांकन से की जाती है उन पर हो रहे आक्रमण ईसाइयो और मुसलमानों के इस बिस्वास का परिणाम है कि मयूर दूत इब्लीस यत् शैतान है ।
यज़ीदी पंथ एक रहस्य वादी परम्परा है जिसके प्रार्थना गीत कव्वालों की तरह गाया जाता है परम्परा के कुछ अंश अब दो पुस्तको में संग्रहित किये गए है जिन्हें किताब अल जिल्वा और मिशेफ रेश कहा जाता है यजीदी अपनी उतप्ति भारत में होने का दावा करते है और मोर के प्रति उनका श्रद्धाभाव इस मूल की स्मृति हो सकता है भारत में मोर शिवपुत्र कार्तिकेय (मुरुगन) देव् का वाहन है कृष्ण भी अपनी केशो में या मुकुट में मोरपंख पहनते थे आदिम इंद्रधनुष में उपजे सात रंगों में नीला रंग ताऊस मेलेके से सम्बंधित है जो कृष्ण का भी रंग है ।
यज़ीदि सूर्यउन्मुख हो कर प्राथना करते है भारतीय परंपरा जैसे पुनर्जन्म में बिश्वाश करते है और उनकी मान्यता यह है कि ताऊस मेलेके के अतिरिक्त अन्य सभी देवदूत धरती पर संतो और पवित्रआत्मा के रूप में अवतरित होते है । हिन्दुओ की तरह वे पुनर्जन्म के लिए वस्त्र बदलने के रूपक का प्रयोग करते है दूसरी भारोपीय संस्कृति की तरह यज़ीदी समुदाय तीनो वर्गो में बिभाजित है शेख (पुजारी) पिर (वयोबृद्ध) मुरीद ( जनसामान्य) और वे विवाह सम्बन्ध अपनी समूह में ही करते है यज़ीदियों में पंथ परिवर्तन करने का विधान नही है वंश आधारित प्रशाशनिक प्रमुख मीर (राजकुमार) होता है जबकि बाबा शेख धार्मिक पद के प्रमुख होते है यज़ीदी अपने आप को दासेनी कहते है जो देवयास्नी ( संस्कृत देवयज्ञी ) देवपूजक से उद्भूत है यजीदी शब्द यजाता से व्युत्पन्न है जो प्राचीन पारशी और कश्मीर में यजात कहलाता है प्राचीन पारशी में देव को देवा कहते है प्राचीन भारत ईरान और पश्चिम एशिया में देव् पूजको को देवयज्ञी या देवयस्नी कहा जाता था जिसके समानार्थी सनातन वैदिक धर्म है पारशी अपने पन्थ को माज्दायास्ना ( संस्कृत -: मेघा यज्ञ ) या अहुर माज्दा (संस्कृत- असुर मेघा -मेघा के देव्) का पंथ कहते है भारत में देव् यास्ना के प्रसार के सबसे प्रबल संभावना हड़प्पा संस्कृति के क्षय के पश्चात लगभग 1900 ईशा पूर्व की बनती है अफ़ग़ानिस्तान के समीप उत्तर पूर्व ईरान क्षेत्र थे देवपूजक समुदायों को भारत स्थित समुदायों से विखण्डित कर दिया यज़ीदियों का 4000 वर्ष पूर्व भारत से लौटने का मेल खाता है । प्रसङ्गवश यह रोचक की अरस्तू को यह विश्वास था की यहूदियों का मूल भूमि भारत ही था । इसके अतिरिक्त स्वयं को एकेश्वरवादी (अल -मुवहिहदून) अरबी भाषा कहने वाला ड्रुज समुदाय भी पूर्वजन्म में बिश्वाश रखता है और उसके पवित्र धर्मग्रन्थ में रसाईल -अल हिन्द (भारतीय पत्रावली) भी सम्मलित है ।
पारशि पंथ के उदय के पश्चात पश्चिमी एशिया देवयास्नी पन्थ लंबे समय तक बना रहा उसके बने रहने का प्रमाण ईरानी सम्राट (xerxes _486-465) ईशा पूर्व के देव् या दैव अभिलेख मिलते है जिसमे देवयास्नी बिद्रोह का सीधा उल्लेख मिलता है
【जैरजैस घोषणा करता है और इन क्षेत्रों में एक स्थान ऐसा है जहाँ देव् पूजे जाते थे तदोपरान्त अहुरमज्द की कृपा से मैंने देव् स्थान को नष्ट कर दिया और मैंने घोषणा की देव् नही पूजे जाएंगे 】
यह लगभग 2500 वर्ष पहले यज़ीदियों के देवयास्नी पूर्वजो के द्वारा झेले गये दमन का एक पुराना लिखित प्रमाण है यज़ीदी पञ्चाङ्ग 4750 ईशा पूर्व जाता है जोकी यवन (ग्रीक) इतिहासकार एरियन (Arrian) द्वारा सिकन्दर अभियान के वर्णन में उल्लेखित ,भारत के 6676 ईशा पूर्व में उदित हुए पुराने सप्तऋषि पञ्चाङ्ग से सम्बंधित प्रतीत होता है ।
यज़ीदियों की आध्यात्मिक परम्परा समृद्ध है और उसकी वर्तमान संस्कृति परम्परा 12 वी सदी के शेख आदि (देहांत 1162) ई: से प्राम्भ होती है जो चौथे उमय्यद ख़लीफ़ा मर्वान प्रथम के वंशज थे शेख आदि की मकबरा उत्तरी इराक के लालिश में है जो यज़ीदी तीर्थयात्रा के मुख्य केंद्र बिन्दु है नववर्ष उत्सव में कांस्य मयूर आरती दीपो जैसे ही मयूर गढ़े हुए कांस्य दिप संजक एक शोभा यात्रा में कव्वालों के द्वारा मीर के आवाश से लेकर यज़ीदी गांव में घुमाये जाते है मान्यता है कि संजक भारत से आये थे और सात पवित्र देवदूतों के प्रतीक के रूप में मूलतः उनकी संख्या सात थी जिनमे से पांच तुर्को द्वारा छीन लिए गये अब मात्र दो ही बचे है यज़ीदी लोग मानवता के अदम्य संकल्पशक्ति के एक प्रतीक है संसार में सर्वाधिक दमित और प्रताड़ित जन में से एक यज़ीदी समुदाय चरम बिपरीत परिस्थियों में भी अपने साहस और बीरता के लिए प्रशंसा सहयोग और समर्थ। के पात्र है ।