Saturday 13 November 2021

रावणवध एवं श्रीरामचन्द्रराज्यभिषेख शंकासमाधान

 




आक्षेपकर्ता ने जो श्लोक उपदृष्ट किया है वह मैं आप सभी के सामने रख रहा हूँ एवमं स्क्रीन शॉट में भी रेखांकित किया हूँ 

आक्षेपकर्ता ने इस श्लोक के माध्यम से रावण वध का प्रकरण और श्रीरामचन्द्र का राज्यभिषेख दिखलाया है 

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(1)   अभ्युत्थानं त्वमद्यैव कृष्णपक्षचतुर्दशीम् । 

        कृत्वा निर्याह्यमावास्यां विजयाय बलैर्वृतः ।। ६.९२.६५


(2)     पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यां लक्ष्मणाग्रजः । 

         भरद्वाजश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम् ।। १२४/६/१

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यह विचारणीय है कि यहाँ प्रकरण क्या है और यह वाक्य किनका कहा हुआ है 

यहाँ आक्षेपकर्ता ने पूरा का पूरा प्रकरण ही उलट दिया है अयोध्या कांड सर्ग ९२ में लक्ष्मण द्वारा इंद्रजित का वध होता है इस सर्ग का प्रथम श्लोक ही इंद्रजित के वध की पुष्टि करता है 


#ततः_पौलस्त्यसचिवाः_श्रुत्वा_चेन्द्रजीतो_वधम् (वा0रा0 ६/९२/१)


इंद्रजीत के वध हो जाने का समाचार सुनते ही रावण क्रोध के वशीभूत हो सीता को मारने के लिए दौड़ता है परन्तु रावण के मन्त्री रावण को ऐसा करने से रोकता है और कहता है कि आज कृष्णपक्ष की चतुर्दशी है अतः आज ही युद्ध की तैयारी कर के कल अमावस्या के दिन सेना को लेकर विजय के लिए प्रस्थान करो ।

इस प्रकरण को इस धूर्त ने पूरा का पूरा ही उलट दिया है ताकि लोग भ्रामित हो सके ।

यह तो रहा श्लोक 1 के आक्षेप का समाधान 

अब दूसरे श्लोक पर बिचार करें |

दूसरा श्लोक रावण का वध कर पुष्पक विमान से श्रीरामचन्द्र जब अयोध्या के लिए प्रस्थान करते है तो भारद्वाज मुनि के आश्रम में रुक कर वहाँ यह प्रसंग कहते है 14 वर्षो का वनवास मेरा पूर्ण हो चुका है अतः अतिशिघ्र मुझे अयोध्या जाना है 

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अब आते है राक्षसराज रावण का वध और श्रीरामचन्द्र जी का राज्यभिषेख बिषय शंका निवारण 

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महाभारत में जिस प्रकार पाण्डवो का 13 वर्ष वनवास अधिक मास को लेकर जोड़ा गया था यह बिराट पर्व के भीष्मवाक्य से सिद्ध है इसी तरह श्रीरामचन्द्र जी का 14 वर्ष का वनवास भी अधिकमास को लेकर ही पूरा हुआ था इस तरह अमान्त मान से कृष्णचतुर्दशी में पुर्णिमान्त मान से कार्तिक कृष्ण षष्ठी में १४ वर्षो की पूर्ति होती है अन्यथा चैत्रमास की शुक्ल दशमी के आरम्भ होकर १४ वर्ष की समाप्ति षष्ठी को नही रह सकती थी परन्तु अधिकमास की गड़ना से ११ दिन कम छः मास की वृद्धि हो जाती तभी १४ वर्ष की पूर्ति षष्ठी को हो सकती है अतः १२ वर्ष के पूरे होने पर १३ वे वर्ष के कुछ समय बीतने पर फाल्गुन अष्टमी को सीता हरण हुआ था १४ वे वर्ष के कुछ दिन बीतने पर श्रीराम जी लङ्का के समीप पहुंचे  थे|


#वर्तते_दशमो_मासो_द्वौ_तु_शेषौ_प्लवङ्गम (वा0 रा0 ५/३७/८)


#दर्शयामास_वैदेह्याः_स्वरूपमरिमर्दनः(वा0रा ५/३७/३३)


इस सितोक्ति के अनुसार सावन मान से सव्हरण दिन से १० मास बीत चुकने पर सीता हनुमान का सम्वाद हुआ था #पूर्णचन्द्रप्रदीप्ता 

इस रामोक्ति के अनुसार पौष शुक्ल के चतुर्दशी या पूर्णिमा को श्रीरामजी त्रिकुट के शिखर पर आयें थे |


हनुमान का लङ्का में प्रवेश काल :-


#हिमव्यपायेन_च_शितरश्मीरभ्युत्थितो_नैकसहस्त्ररश्मि:(वा0रा ५/१६/३१)

#द्वौ_मासो_रक्षितव्यौ_मे_योSवाधिस्ते_मया_कृत: (वा0 रा0 ५/२०/८)

इन वाक्यो से प्रतीत होता है कि हनुमान जब लङ्का में प्रवेश किया था तब शरद ऋतु का आगमन हो चुका था मार्गशीर्ष दशमी के बाद ही हनुमान का लङ्का मे प्रवेश का स्पष्ट प्रमाण है

अन्यत्र मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को राम को प्रस्थान कहा गया है पौषपूर्णिमा को राम त्रिकुट आये थे उसके १५ दिन सेनानिवेस दूतप्रेषण आदि में बीत गयें तब युद्ध आरम्भ हुआ तब से लेकर श्रावण अभय अमान्त पर्यंत लङ्कापुर के बाहर दोनों दोनों सेनाओ का युद्ध हुआ ।

इंद्रजीत वध अनन्तर यह कहा गया है की तुम आज कृष्पक्ष चतुर्दशी अभ्युत्थान करके अमावस्या में ही शत्रुबिजय के लिए गमन करो ।

इंद्रजीत का वध तीन दिनों में हुआ था दशमी के चौथे प्रहर से लेकर त्रयोदशी के चौथे प्रहर के अवधि में इंद्रजीत का वध हुआ था |

रावण का निर्गमन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था 

उसके बाद ही रावण वध और इसके अनन्तर आदित्य को स्थिरप्रभ होना कहा गया है इससे प्रतीत होता है कि रावण का वध दिन में ही हुआ


इसी पक्ष का समर्थन कालिका पुराण से होता है ।


रामस्यानुग्रहार्थाय रावणस्य वधाय च।। 


रात्रावेव महादेवी ब्रह्मणा बोधिता पुरा।

ततस्तु त्यक्तनिद्रा सा नन्दायामाश्विने सिते।। 


जगाम नगरीं लङ्कां यत्रासीद्राघवः पुरा।

तत्र गत्वा महादेवी तदा तौ रामरावणौ।। 


युद्धं नियोजयामास स्वयमन्तर्हिताम्बिका।

रक्षसां वानराणां च जग्ध्वा सा मांसशोणिते ।। 


रामरावणयोर्युद्धं सप्ताहं सा न्ययोजयत्।

व्यतीते सप्तमे रात्रौ नव्यां रावणं ततः।। 


रामेण घातयामास महामाया जगन्मयी।

यावत्तयोः स्वयं देवी युद्धकेलिमुदैक्षत।। 


तावत् तु सप्तरात्राणि सैव देवैः सुपूजिता।


निहते रावणे वीरे नवम्यां सकलैः सुरैः।। 

विशेषपूजां दुर्गायाश्चक्रे लोकपितामहः।


राम के अनुग्रहार्थ और रावण के वधार्थ ब्रह्मा द्वारा प्रबोधित देवी लङ्का में आयी और सात दिन तक राम रावण का युद्ध हुआ नवमी के दिन राम ने रावण का वध किया सब देवताओ तथा ब्रह्मा द्वारा ८ दिन तक दुर्गा पाठ होती रही ।

ऐसे रावण का वध का स्पष्ट प्रमाण इतिहास पुराणादि में आश्विन मास के शुक्लपक्ष नवमी ही ठहरता है न कि फाल्गुन मास ??

सर्ग १२३ के अंत मे पुष्पक द्वारा अयोध्या के पास पहुंचने का उल्लेख किया गया है किन्तु सर्ग १२४ में वनवास की समाप्ति पर श्रीरामचन्द्र का भारद्वाज मुनि के आश्रम में पहुचने का उल्लेख है 

पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यां लक्ष्मणाग्रजः । 

भरद्वाजश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम् ।।


 लङ्का में राम  ने बीभीषण से दुर्गम मार्ग का उल्लेख किया था भारद्वाज आश्रम में राम ने मुनि से यह वरदान मांगा था कि मार्ग में सभी बृक्ष अकाल मे फलदार हो यहाँ श्रीरामचन्द्र जी को यह वरदान वानरों के लिए मांगा था 

आक्षेपकर्ता के अनुसार यदि पदयात्र होती तो लङ्का से अयोध्या पहुंचने में कम से कम एक मास का समय अपेक्षित होता इस प्रसंग में स्पष्ट ही पुष्पक यात्रा की संगति होती है ||

वनवास की अवधि पूर्ण होने पर भारद्वाज मुनि के आश्रम में ही कपिश्रेष्ठ हनुमान को आज्ञा देते है कि वानरराज हनुमान तुम अतिशिघ्र अयोध्या का समाचार लो कि वहाँ सब कुशल मंगल तो है न और वहाँ राजा भरत को मेरे आगमन की सूचना दो ।

श्रीरामचन्द्र जी का अयोध्या आगमन कार्तिक मास ही ठहरता है चैत्र मास नही ।

अध्याय ३  चैत्रमास के  शुक्लपक्ष के षष्ठी तिथि को श्रीराम चन्द्र का राज्यभिषेख होने वाला था जिसका उल्लेख अयोध्या पर्व में देखने को मिलता है परन्तु कैकयी के जिद के कारण  श्रीरामचन्द्र को वनवास जाना पड़ा आक्षेपकर्ता ने इस हिसाब से 14 वर्ष चैत्र मास ही माना जबकि सनातन वैदिक धर्म मे मलमास की भी गड़ना होती है इसका भान आक्षेपकर्ता को था अथवा नही था यह तो आक्षेपकर्ता ही जाने जिस कारण आक्षेपकर्ता ने श्रीरामचन्द्र जी के राज्यभिषेख को चैत्र मास बता डाला 

|| जय श्रीराम ||

शैलेन्द्र सिंह