सत्यकाम जबाला को लेकर जो भ्रांतियां फैलाई गई है वह निराधार तथा समाज को दिग्भ्रमित करनेवाला है ।
वे तथाकथित बुद्धिजीवी बिषयो का अध्ययन न तो तन्मयता से ही करते है न हीं पूर्णरूपेण और इन्ही आधे अधूरे अध्ययन के बल पर कुतर्क करते फिरते है ।
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●पूर्वपक्ष :-- सत्यकाम का पुत्र जबाला एक दासी पुत्र था सत्य काम ब्राह्मणो की परिचर्या करती थी और परिचर्या का अधिकार शूद्रों का है अतः जबाला शुद्र हुए
●उत्तर पक्ष :-- परिचर्या शब्द से यह अर्थ लेना न्याय संगत नही की जो परिचर्या करे वह शुद्र ही हो ब्राह्मणो के परिचर्या का अधिकार समस्त वर्णो को प्राप्त है ।
●नम्बर •१:-- कठ उपनिषद में बटुक बालक नचिकेता का परिचर्या स्वयं यमराज ने की तो क्या यमराज शुद्र हो गए ?
●नम्बर •२:-- भगवन श्री कृष्ण (जिनका आविर्भाव क्षत्रिय कुल में हुआ था) उन्होंने स्वयं ब्राह्मणश्रेष्ठ सुदामा जि की परिचर्या की तो क्या श्रीकृष्ण जी शुद्र हुए ?
●नम्बर •३ :-- सूर्यवंशी कुल शिरोमणि भगवन श्रीरामचन्द्र और लक्ष्मण जी ने विश्वामित्र ऋषि के सेवार्थ लिए उपस्थित हुए थे क्या वे शुद्र थे ?
●नम्बर• ४:--- माता कुन्ती एक क्षत्राणी होते हुए भी दुर्वाशा ऋषि की परिचर्या की थी क्या वे शुद्रा थी ?
यहाँ तक तो यह स्प्ष्ट हो गया कि ब्राह्मणो की परिचर्या का अधिकार समस्त वर्णो का है ।
अब आते है उनके वर्ण बिषय पर
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ऋषिगण पूर्णप्रज्ञ भूतभविष्य के द्रष्टा समस्त ज्ञान उनके हस्तामलक होते थे ऋषि स्वयं दिब्य होते है जो दिब्य हो उनपर लेश मात्र भी शङ्का करना श्रुतियों पर सन्देह करना होगा ऐसे में श्रुतियों की नित्यता भी बाधित हो जाएगी ऐतरेय ब्राह्मण में स्प्ष्ट कहा गया है
■--: ऋषयो देव्या (ऐतरेय ब्राह्मण २/२७)
जो स्वयं दिब्य हो उनकी वाणी भी दिब्यता से ओत प्रोत होती है वे कभी भी न तो मिथ्या आचरण ही करते है और न ही उनके कथनों में मिथ्याभास ही होता है ऋग्वेद की यह ऋचा स्प्ष्ट कहती है कि पूर्व में जितने भी ऋषि हुए वे मिथ्या आचरण अथवा मिथ्या भाषण नही करते
■--: ये चि॒द्धि पूर्व॑ ऋत॒साप॒ आस॑न्त्सा॒कं दे॒वेभि॒रव॑दन्नृ॒तानि॑ ।(ऋ १/१७९/२)
फिर छनदोग्य उपनिषद में महर्षि गौतम के वचनों पर सन्देह उतपन्न करना श्रुतियों के आज्ञाओ का भंग करना होगा
छनदोग्य उपनिषद में महर्षि गौतम ने जबाला के बिषय में स्प्ष्ट कहा है
■--:नैतदब्राह्मणो तमुपनीय (छा०उ०४/४/५)
(हे ब्राह्मण आओ मैं तुम्हारा उपनयन संस्कार करवाता हूँ ।)
महर्षि गौतम ने जबाला को स्प्ष्ट रुप से ब्राह्मण कहा है और कुछ अल्पज्ञ अल्पश्रुत बस तर्को के माध्यम से अपना मनोरथ सिद्ध करने की कुचेष्टा करते है ।
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आजकल निज मत मतान्तरों से सनातन धर्म शास्त्रों का अर्थ किया जा रहा यह दुर्भाग्य पूर्ण है जब कि वेदों का शंखध्वनि है ।
वि॒द्वांसा॒विद्दुरः॑ पृच्छे॒दवि॑द्वानि॒त्थाप॑रो अचे॒ताः ।
नू चि॒न्नु मर्ते॒ अक्रौ॑ ॥[ऋ १/१२०/२]
सदैव वेदादि शाश्त्रो के विद्वान आचार्यो से पूछ का ही सत्य असत्य का निर्णय आचरण करना चाहिए ।