Monday 14 March 2022

गौतम बुद्ध के गृहत्याग का सच









सिद्धार्थ गौतम  के गृहत्याग के बिषय में जो कथाएं प्रचलित है वह यह है 

एक दिन जब वह भ्रमण पर निकले तो उन्होंने एक वृद्ध को देखा जिसकी कमर झुकी हुई थी और वह लगातार खांसता हुआ लाठी के सहारे चला जा रहा था। थोड़ी आगे एक मरीज को कष्ट से कराहते देख उनका मन बेचैन हो उठा। उसके बाद उन्होंने एक मृतक की अर्थी देखी, जिसके पीछे उसके परिजन विलाप करते जा रहे थे।


ये सभी दृश्य देख उनका मन क्षोभ और वितृष्णा से भर उठा, और गृहत्याग कर   परिव्रज्या ग्रहण किया  जब सिद्धार्थ गौतम ने परिव्रज्या ग्रहण किया तब उनकी आयु 29 वर्ष की थी । 

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■-सिद्धार्थ गौतम ने 29 वर्ष की आयु होने पर ही  एक बृद्ध ,रोगी और मृत व्यक्ति को पहली बार देखा होगा  यह व्याख्या तर्क की कसौटी पर कसने पर खरी उतरती प्रतीत नहीं होती. त्रिपिटक के किसी भी ग्रन्थ में भी गृहत्याग के इस कथानक का कहीं उल्लेख तक नहीं है.

■-पुनश्च प्रश्न उठेगा की फिर उनके परिव्रज्या की कथाओं का श्रोत क्या है और किसने उसे लिखा ??

सिद्धार्थ गौतम के मृत्यु के 1000 वर्ष पश्चात भदन्त बुद्धघोष इन कथाओं का सृजन किया और उसे प्रचारित प्रसारित किया ।

■--सिद्धार्थ गौतम ने परिव्रज्या के बिषय में सुतनिपात के खुद्दक निकाय में स्वयं कहते है ।

मुझे शस्त्र धारण करना भयावह लगा यह जनता कैसे झगड़ती है देखो मुझमे संवेग कैसे उतपन्न हुआ यह मैं बताता हूँ अपर्याप्त पानी मे जैसे मछलियां छटपटाती है वैसे एक दूसरे के बिरोध करके छपटाने वाली प्रजा को देख कर मेरे अन्तःकरण में भय उतपन्न हुआ चारो ओर का जगत् असार दिखाई देने लगा सभी दिशाएं कांप रही है ऐसा लग एयर उसमे आश्रय का स्थान खोजने पर निर्भय स्थान नही मिला क्यो की अंत तक सारी जनता को परस्पर विरुद्ध देख कर मेरा जी ऊब गया ।


संवेनं कित्त्यिस्सामि यथा संविजितं मया ॥ 

फ़न्दमानं पजं दिस्वा मच्छे अप्पोदके यथा ।

अज्जमज्जेहि व्यारुद्धे दिस्वा मं भयमाविसि ॥

समन्तसरो लोको, दिसा सब्बा समेरिता ।

इच्छं भवन्मत्तनो नाद्द्सासिं अनोसितं ।(खुद्दक निकाय )

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■--सिद्धार्थ गौतम के गृहत्याग के पीछे का सच ---

शाक्यो की राजधानी का नाम कपिलवस्तु था जहाँ सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ था ।

शाक्यो का अपना संघ हुआ करता था और इस संघ से जुड़े हुए व्यक्ति को संघ के नीतियों आदर्शो एवं शाक्यो के रक्षण हेतु प्रतिबद्ध होना पड़ता था । इस संघ के सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु  20 वर्ष  का था  संघ में दीक्षित होने के पूर्व संघ के नीतियों आदर्शो से  परिचय कराया जाता था उन नीति आदर्शो के रक्षण के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होना पड़ता था उसके पश्चात जनमत संग्रह के द्वारा यह सुनिश्चित होता था कि अमुक व्यक्ति संघ से जुड़ सकता है अथवा नही ।

सिद्धार्थ गौतम को अपने वर्णाश्रम धर्म अनुसार वेद वेदाङ्ग एवं क्षात्र धर्म अनुरूप शिक्षण दिक्षण हुआ था सिद्धार्थ गौतम जब 20 वर्ष के हुए तब संघ से जुड़ने के लिए आमंत्रण भेजा गया सिद्धार्थ गौतम ने उस आमंत्रण को स्वीकार कर संघ में जुड़ने के इच्छुक हुए ।

संघ के सेनानायक ने संघ के नीतियों आदर्शो को सिद्धार्थ गौतम के समक्ष प्रेसित किया सिद्धार्थ गौतम संघ के नीति आदर्शो को पढ़ कर पूर्ण रूप से संतुष्ट हुए एवं भरी सभा मे प्रतिज्ञा ली कि मैं संघ के नीतियों आदर्शो का पालन अक्षरसः रूप से करूँगा यदि किसी भी प्रकार से मैं दोषी पाया जाता हूँ तो संघ अपने नीतियों के अनुरूप मुझे दण्ड का भागी भी बना सकता है ।

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संघ से जुड़े सिद्धार्थ गौतम को अब 8 से 9 वर्ष बीत चुके थे यही वह समय था जब सिद्धार्थ गौतम के जीवन मे वह घटनाएं घटती है फलस्वरूप उन्हें मजबूरन गृहत्याग करना पड़ा ।

शाक्यो के राज्य से सटा हुआ कोलियों का राज्य था रोहिणी नदी दोनों राज्यो के विभाजक रेखा थी ।

शाक्यो और कोलियों दोनों ही अपने राज्य में सिंचाई के लिए रोहिणी नदी के ऊपर दोनों राज्य निर्भर था ।

पानी को लेकर ही शाक्यो और कोलियों के मध्य झगड़ा हुआ और बात यहाँ तक आ पहुची की दोनों के मध्य युद्ध का माहौल बना ।

इस बिषय को लेकर शाक्यो ने संघ का अधिवेशन बुलाया और उस सभा मे सभी ने अपने अपने पक्ष का प्रस्ताव रखा ।

संघ के सेनानायक युद्ध के पक्ष में था और सिद्धार्थ गौतम युद्ध के विरुद्ध अपना मत दिया की युद्ध समस्या का हल नही है ।

इस बिषय को लेकर पुनः जनमत संग्रह हुआ ।

जनमत संग्रह में संघ के सेनानायक को ही प्रधानता मिली और सिद्धार्थ गौतम का पक्ष बहुत बड़े बहुमत से अमान्य सिद्ध हुआ 

दूसरे दिन सेनानायक ने संघ की पुनः सभा बुलाई ।

जब सिद्धार्थ गौतम ने देखा कि जनमत संग्रह में उसे पराजय का मुह देखना पड़ा तब सभा को सम्बोधित करते हुए सिद्धार्थ गौतम ने कहा मैत्रो आप जो चाहो कर सकते हो आप के साथ जनमत संग्रह है लेकिन मुझे खेद के साथ यह कहना पड़ रहा है कि मैं आप सभी के मत का बिरोध करता हूँ मैं किसी भी प्रकार से युद्ध मे भाग नही लूंगा 

तब संघ के सेनानायक ने सिद्धार्थ गौतम को सम्बोधन करते हुए कहा सिद्धार्थ उस शपथ को तुम याद करो जब संघ के सदस्य बनते समय ग्रहण किया था ।

यदि तुम अपने वचनों का पालन न करोगे तो तुम दण्ड का भागी भी बन सकते हो ।

संघ अपनी आज्ञा की अवहेलना करने वाले को फांसी की सजा अथवा देशनिकाला घोषित भी किया जा सकता है ।

केवल इतना ही नही संघ तुम्हारे परिवार को सामाजिक बहिष्कार भी कर सकता है ।

इस लिए इन तीनो में से एक का चुनाव तुम कर सकते हो

(१) सेना में भर्ती हो युद्ध मे भाग लो 

(२) फांसी पर लटकना अथवा देशनिकाला स्वीकार करो 

(३) अपने परिवार का सामाजिक बहिष्कार एवं खेतो की जब्ती 


सेनानायक के इन वचनों को सुन कर सिद्धार्थ गौतम ने कहा कृपया मेरे परिवार को दण्डित न करे उसका सामाजिक बहिष्कार न करें वे निर्दोष है मैं अपराधी हूँ ।

इस लिए दण्ड का पात्र भी मैं ही हूँ ।

इस लिए मैंने एक आसान रास्ता चुना है  की मैं परिव्राजक बन देश से बाहर चला जाऊं ।

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सिद्धार्थ गौतम संघ के नीतियों के विरुद्ध गया फलस्वरूप वे दण्ड के पात्र भी बने और देश निकाला घोषित किया गया जिसे परिव्रज्या के नाम से प्रचारित प्रसारित किया गया ।

मैंने अपने प्रमाण में जिन लेखों का उद्धरण दिया है उस पुस्तक का स्क्रीन शॉट भी प्रेसित कर रहा हूँ ताकि लोग यह न समझे कि मैंने अपने मतों की पुष्टि के लिए केवल कपोलकल्पित शब्दो का सहारा लिया ।

पुस्तक के लेखक :--बौद्धाचार्य भदन्त आनन्द कौशल्यायन 

एवं श्रीमान भीमराव अंबेडकर जी है ।

इनके लेखों को अब तक बौद्ध मत के किसी भी सम्प्रदाय ने खण्डन नही किया क्यो की वे भी जानते है कि बुद्ध के परिव्रज्या ग्रहण के बिषय में त्रिपिटिक आदि ग्रन्थों में कोई उल्लेख नही है ।


#शैलेन्द्र_सिंह

2 comments:

  1. सादर प्रणाम,
    शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु नौंवे अवतार ज्ञानावतार गौतम बुद्ध जी का जन्म गौतम गोत्रीय ब्राह्मण कुल में बिहार के गया क्षेत्र में हुआ है ।
    फिर आपने जिनका वर्णन यहां किया है वे कौन से बुद्ध हैं ?

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    1. शास्त्रो में उपदिष्ट जी बुद्ध का उल्लेख है वे भिन्न है बुद्ध अब तक 28 हो चुके है और मैंने जिस बुद्ध के बिषय में उल्लेख किया है वह सिद्धार्थ गौतम है ।

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