भीम + हिडिम्बा विवाह शंका समाधान ।
विशाल मालवीय जी पढ़ते भी हो वा केवल धूर्त समाजी की भांति आक्षेप करना ही जानते हो ??
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मया ह्युत्सृज्य सुहृदः स्वधर्मं स्वजनं तथा।
वृतोऽयं पुरुषव्याघ्रस्तव पुत्रः पतिः शुभे।।
वीरेणाऽहं तथाऽनेन त्वया चापि यशस्विनी।
प्रत्याख्याता न जीवामि सत्यमेतद्ब्रवीमि ते।।
यदर्हसि कृपां कर्तुं मयि त्वं वरवर्णिनि।
मत्वा मूढेति तन्मां त्वं भक्ता वाऽनुगतेति वा।।
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हिडिम्बा मन ही मन विक्रोदर को पति मान चुकी थी और केवल एक सन्तान उतपन्न होने तक भीम के साथ गन्धर्व विवाह के लिए अनुमोदन किया था यदि भीम वरण न करते तो वे आत्महत्या भी कर सकती थी ।
#न_जीवामि_सत्यमेतद्ब्रवीमि_ते
यदि भीम गन्धर्व विवाह के लिए सहमत न होते तो स्त्री हत्या का पाप भी लगता साक्षात् धर्म के अंश स्वरूप युधिष्ठिर जी स्पष्ट कहते है कि क्रुद्ध में आकर भी कभी स्त्री का वध न करे
#क्रुद्धोऽपि_पुरुषव्याघ्र_भीम_मा_स्म_स्त्रियं_वधीः
हिडिम्बा के इस अनुमोदन के लिए माता कुन्ति भी विक्रोदर को आज्ञा देती है ।
यहाँ माता कुंती को
#सर्वशास्त्रविशारदम् कहा गया है समस्त शास्त्रो के ज्ञाता माता कुंती द्वारा दिया गया आदेश धर्म विरुद्ध नही हो सकता अन्यथा माता कुंती को सर्वशास्त्रविशारद कह कर अलंकृत न किया गया होता ।
माता कुंती विक्रोदर को यह आज्ञा देती है कि एक सन्तान उतपन्न होने तक हिडिम्बा भीमसेन की सेवा में रहे ।
तस्यास्तद्वचनं श्रुत्वा कुन्ती वचनमब्रवीत्।।
युधिष्ठिरं महाप्राज्ञं सर्वशास्त्रविशारदम्।
त्वं हि धर्मभृतां श्रेष्ठो मयोक्तं शृणु भारत।।
राक्षस्येषा हि वाक्येन धर्मं वदति साधु वै।
भावेन दुष्टा भीमं वै किं करिष्यति राक्षसी।।
भजतां पाण्डवं वीरमपत्यार्थं यदीच्छसि।' (महाभारत आदिपर्व)
शैलेन्द्र सिंह
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