ब्रह्मन्वेदरहस्य च यच्चान्यत्स्थापितं मया।
साङ्गोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया।।१/६२
इतिहासपुरापानामुन्मेषं निमिषं च यत्।
भूतं भव्यं भविष्यच्च त्रिविधं कालसंज्ञितम्।।१/६३
जरामृत्युभयव्याधिभावाभावविनिश्चयः।
विविधस्य च धर्मस्य ह्याश्रमाणां च लक्षणम्।।१/६४
चातुर्वर्ण्यविधानं च पुराणानां च कृत्स्नशः।
तपसो ब्रह्मचर्यस्य पृथिव्याश्चन्द्रसूर्ययोः।।१/६५
ग्रहनक्षत्रताराणां प्रमाणं च युगैः सह।
ऋचो यजूषि सामानि वेदाध्यात्मं तथैव च।।१/६६[[महाभारत ]]
भावार्थ --: भगवन वेद व्यास द्वारा
मैंने इस महा काब्य में सम्पूर्ण वेदों का गुप्तं रहस्य एवं अन्य सब शास्त्रों का सार संकलित कर के स्थापित कर दिया है केवल वेदो का ही नही उसके अङ्ग और उपनिषदों का भी बिस्तार इसमें निरूपण किया है ।इस ग्रन्थ में इतिहास एवं पुराण का मन्थन कर के उसका परस्त रूप प्रकट किया है भुत भविष्य एवं बर्तमान कालीन इन तीनो संज्ञाओं का वर्णन हुआ है इस ग्रन्थ में बुढापा भय रोग मृत्यु और पदार्थोका सत्यवत मिथ्यात्व का बिशेष रूप से निश्चय किया गया है तथा अधिकारी भेद से भिन्न भिन्न प्रकार के धर्मो का निरूपण किया गया है । ब्राहमण क्षत्रिय वैश्य शुद्र इन चारो वर्णों के कर्मो का बिधान पुराणों का सम्पूर्ण मूल तत्व भी प्रकट हुआ है तपस्या एवं ब्रह्मचर्य के स्वरुप अनुष्ठान एवं फलो का विवरण पृथ्वी चंद्रमा सूर्य गृह नक्षत्र तारा सत्ययुग त्रेता युग द्वापर युग कलयुग इन सब के परिणाम और प्रमाण ऋग वेद साम वेद यजुर्वेद और इनके अध्यात्मिक अभिपार्य अध्यात्मशास्त्र का इस ग्रन्थ में बिस्तार से वर्णन किया गया है ।
ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः'।।
धर्मार्थकाम्मोक्षार्थे समासव्याकीर्तनै:
त्वया भारतसूर्येण नृणां विनिहतं तमः।।
पुराणपूर्णचन्द्रेण श्रुतिज्योत्स्नाप्रकाशिना।
नृणां कुमुदसौम्यानां कृतं बुद्धिप्रसादनम्।।
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना।
लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत्संप्रकाशितम्।
संग्रहाध्यायबीजो वै पौलोमास्तीकमूलवान्।
संभवस्कन्धविस्तारः सभापर्वविटङ्कवान्।।
आरण्यपर्वरूपाढ्यो विराटोद्योगसारवान्।
भीष्मपर्वमहाशाखो द्रोणपर्वपलाशवान्।।
कर्णपर्वसितैः पुष्पैः शल्यपर्वसुगन्धिभिः।
स्त्रीपर्वैषीकविश्रामः शान्तिपर्वमहाफलः।।
अश्वमेधामृतसस्त्वाश्रमस्थानसंश्रयः।
मौसलश्रुतिसंक्षेपः शिष्टद्विजनिषेवितः।।
सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति।
पर्जन्यइव भूतानामक्षयो भारद्रुमः।।[[महाभारत आदिपर्व--८४-९२]]
साङ्गोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया।।१/६२
इतिहासपुरापानामुन्मेषं निमिषं च यत्।
भूतं भव्यं भविष्यच्च त्रिविधं कालसंज्ञितम्।।१/६३
जरामृत्युभयव्याधिभावाभावविनिश्चयः।
विविधस्य च धर्मस्य ह्याश्रमाणां च लक्षणम्।।१/६४
चातुर्वर्ण्यविधानं च पुराणानां च कृत्स्नशः।
तपसो ब्रह्मचर्यस्य पृथिव्याश्चन्द्रसूर्ययोः।।१/६५
ग्रहनक्षत्रताराणां प्रमाणं च युगैः सह।
ऋचो यजूषि सामानि वेदाध्यात्मं तथैव च।।१/६६[[महाभारत ]]
भावार्थ --: भगवन वेद व्यास द्वारा
मैंने इस महा काब्य में सम्पूर्ण वेदों का गुप्तं रहस्य एवं अन्य सब शास्त्रों का सार संकलित कर के स्थापित कर दिया है केवल वेदो का ही नही उसके अङ्ग और उपनिषदों का भी बिस्तार इसमें निरूपण किया है ।इस ग्रन्थ में इतिहास एवं पुराण का मन्थन कर के उसका परस्त रूप प्रकट किया है भुत भविष्य एवं बर्तमान कालीन इन तीनो संज्ञाओं का वर्णन हुआ है इस ग्रन्थ में बुढापा भय रोग मृत्यु और पदार्थोका सत्यवत मिथ्यात्व का बिशेष रूप से निश्चय किया गया है तथा अधिकारी भेद से भिन्न भिन्न प्रकार के धर्मो का निरूपण किया गया है । ब्राहमण क्षत्रिय वैश्य शुद्र इन चारो वर्णों के कर्मो का बिधान पुराणों का सम्पूर्ण मूल तत्व भी प्रकट हुआ है तपस्या एवं ब्रह्मचर्य के स्वरुप अनुष्ठान एवं फलो का विवरण पृथ्वी चंद्रमा सूर्य गृह नक्षत्र तारा सत्ययुग त्रेता युग द्वापर युग कलयुग इन सब के परिणाम और प्रमाण ऋग वेद साम वेद यजुर्वेद और इनके अध्यात्मिक अभिपार्य अध्यात्मशास्त्र का इस ग्रन्थ में बिस्तार से वर्णन किया गया है ।
ज्ञानाञ्जनशलाकाभिर्बुद्धिनेत्रोत्सवः कृतः'।।
धर्मार्थकाम्मोक्षार्थे समासव्याकीर्तनै:
त्वया भारतसूर्येण नृणां विनिहतं तमः।।
पुराणपूर्णचन्द्रेण श्रुतिज्योत्स्नाप्रकाशिना।
नृणां कुमुदसौम्यानां कृतं बुद्धिप्रसादनम्।।
इतिहासप्रदीपेन मोहावरणघातिना।
लोकगर्भगृहं कृत्स्नं यथावत्संप्रकाशितम्।
संग्रहाध्यायबीजो वै पौलोमास्तीकमूलवान्।
संभवस्कन्धविस्तारः सभापर्वविटङ्कवान्।।
आरण्यपर्वरूपाढ्यो विराटोद्योगसारवान्।
भीष्मपर्वमहाशाखो द्रोणपर्वपलाशवान्।।
कर्णपर्वसितैः पुष्पैः शल्यपर्वसुगन्धिभिः।
स्त्रीपर्वैषीकविश्रामः शान्तिपर्वमहाफलः।।
अश्वमेधामृतसस्त्वाश्रमस्थानसंश्रयः।
मौसलश्रुतिसंक्षेपः शिष्टद्विजनिषेवितः।।
सर्वेषां कविमुख्यानामुपजीव्यो भविष्यति।
पर्जन्यइव भूतानामक्षयो भारद्रुमः।।[[महाभारत आदिपर्व--८४-९२]]
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