कुछ मुर्खाधिपतियो का कहना है की नदी एवं बृक्ष पूजन महाभारत युद्ध [[ द्वापर युग ]] के बाद ऐसी प्रथा का चलन हुआ था ।
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परन्तु सत्य तो ये है की त्रेता युग से भी पूर्व में भी नदी पूजन बृक्ष पूजन का बिधान था जिसका प्रमाण बाल्मीकि रामायण द्वारा प्रमाणित है ।जबकि इस युग में महर्षि बिस्वामित्र महर्षि वशिष्ठ जी जैसे ऋषि महर्षि भी इस धरा धाम पर उपस्थित थे
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यानि त्वत्तीरवासीनि दैवतानि च सन्ति हि । तानि सर्वाणि यक्ष्यामि तीर्थान्यायतनानि च ॥२-५२-९०॥
माता सीता द्वारा ---
जो देवता आप के तट पर रहते है तथा प्रयाग आदि जो जो तीर्थ काशी आदि प्रसिद्द देव स्थान है उनकी मै पूजा करुँगी ।
पुत्रः दशरथस्य अयम् महा राजस्य धीमतः ।
निदेशम् पालयतु एनम् गन्गे त्वद् अभिरक्षितः ॥२-५२-८३॥
चतुर् दश हि वर्षाणि समग्राणि उष्य कानने ।
भ्रात्रा सह मया चैव पुनः प्रत्यागमिष्यति ॥२-५२-८४॥
ततः त्वाम् देवि सुभगे क्षेमेण पुनर् आगता ।
यक्ष्ये प्रमुदिता गन्गे सर्व काम समृद्धये ॥२-५२-८५॥
माता सीता द्वारा -----
हे गंगे बुद्धिमान राजाधिराज दशरथ जी के यह पुत्र श्री राम चन्द्र जी आप से रक्षित हो अपने पिता की आज्ञा का पालन करे ।
यदि ये पुरे चौदह वर्ष वनवास पुरे कर अपने भाई लक्ष्मण सहित मेरे साथ लौट आवेंगे तो हे देवी हे सुभगे मै सकुशल लौट कर आप की पूजा करुँगी हे गंगे आप सब मनोरथ को पूर्ण करने वाली है ।
नमस्तेऽन्तु महावृक्ष पारयेन्मे पतिर्वतम् ।
कौसल्याम् चैव पश्येयम् सुमित्राम् च यशस्विनीम् ॥२-५५-२५॥
इति सीताञ्जलिम् कृत्वा पर्यगच्छद्वनस्पतिम् ।
अवलोक्य ततः सीतामायाचन्तीमनिन्दिताम् ॥२-५५-२६॥
दयिताम् च विधेयम् च रामो लक्ष्मणमब्रवीत् ।
माता सीता द्वारा -----
हे महाबृक्षे मै आप को प्रणाम करती हु आप मेरे पति का व्रत पूरा कीजिये जिससे मै अपनी यस्स्वनि कौशल्या और सुमित्रा के दर्शन कर सकू ।
यह प्रार्थना कर हाथ जोड़े हुए सीता जी ने वट बृक्ष की परिकर्मा की
-----||●जय श्री राम ●||-----
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परन्तु सत्य तो ये है की त्रेता युग से भी पूर्व में भी नदी पूजन बृक्ष पूजन का बिधान था जिसका प्रमाण बाल्मीकि रामायण द्वारा प्रमाणित है ।जबकि इस युग में महर्षि बिस्वामित्र महर्षि वशिष्ठ जी जैसे ऋषि महर्षि भी इस धरा धाम पर उपस्थित थे
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यानि त्वत्तीरवासीनि दैवतानि च सन्ति हि । तानि सर्वाणि यक्ष्यामि तीर्थान्यायतनानि च ॥२-५२-९०॥
माता सीता द्वारा ---
जो देवता आप के तट पर रहते है तथा प्रयाग आदि जो जो तीर्थ काशी आदि प्रसिद्द देव स्थान है उनकी मै पूजा करुँगी ।
पुत्रः दशरथस्य अयम् महा राजस्य धीमतः ।
निदेशम् पालयतु एनम् गन्गे त्वद् अभिरक्षितः ॥२-५२-८३॥
चतुर् दश हि वर्षाणि समग्राणि उष्य कानने ।
भ्रात्रा सह मया चैव पुनः प्रत्यागमिष्यति ॥२-५२-८४॥
ततः त्वाम् देवि सुभगे क्षेमेण पुनर् आगता ।
यक्ष्ये प्रमुदिता गन्गे सर्व काम समृद्धये ॥२-५२-८५॥
माता सीता द्वारा -----
हे गंगे बुद्धिमान राजाधिराज दशरथ जी के यह पुत्र श्री राम चन्द्र जी आप से रक्षित हो अपने पिता की आज्ञा का पालन करे ।
यदि ये पुरे चौदह वर्ष वनवास पुरे कर अपने भाई लक्ष्मण सहित मेरे साथ लौट आवेंगे तो हे देवी हे सुभगे मै सकुशल लौट कर आप की पूजा करुँगी हे गंगे आप सब मनोरथ को पूर्ण करने वाली है ।
नमस्तेऽन्तु महावृक्ष पारयेन्मे पतिर्वतम् ।
कौसल्याम् चैव पश्येयम् सुमित्राम् च यशस्विनीम् ॥२-५५-२५॥
इति सीताञ्जलिम् कृत्वा पर्यगच्छद्वनस्पतिम् ।
अवलोक्य ततः सीतामायाचन्तीमनिन्दिताम् ॥२-५५-२६॥
दयिताम् च विधेयम् च रामो लक्ष्मणमब्रवीत् ।
माता सीता द्वारा -----
हे महाबृक्षे मै आप को प्रणाम करती हु आप मेरे पति का व्रत पूरा कीजिये जिससे मै अपनी यस्स्वनि कौशल्या और सुमित्रा के दर्शन कर सकू ।
यह प्रार्थना कर हाथ जोड़े हुए सीता जी ने वट बृक्ष की परिकर्मा की
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