श्रोतीयब्रह्मनिष्ठ आचार्यो के सानिध्य के बिना शास्त्रो के गूढ़ रहस्य को साधारण ब्यक्ति न तो समझ ही पाएंगे और न ही ठीक ठीक मनन ।
इस लिए शास्त्रो का इस बिषय को लेकर स्प्ष्ट आदेश रहा है
●-आचार्यवान पुरुषो हि वेद । (छान्दोग्य उपनिषद)
●-तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् । (मुंडकोपनिषद् )
●-इतिहास पुराणाभ्या वेद समुपबृध्येत् (महाभारत )
पुराणों के अध्ययन किये बिना वेदो को समझना कठिन ही नही किन्तु सर्वथा असम्भव है क्यो की मन्त्रार्थ ज्ञान के लिए विनियोग ज्ञान आवश्यक है और विनियोग वर्णित ऋषियों और देवताओं के चरित्र जानने के लिए पुराणों का स्वध्याय अत्यावश्यक है हमारे पास पुराणग्रन्थ ही एकमात्र साधन है जिससे कि हम ऋषयो और देवताओं के बिषय में सर्वतोमुख ज्ञान प्राप्त कर सकते है निखिल आनन्दस्वरूप आनन्दकन्द सर्वज्ञ ने वेद विद्या का प्रकाश कर पुराणों को भी साथ ही साथ प्रकाशित किया जिससे देवताओं और ऋषयो के जीवन वृत्तांत तथा उनके चरित्रों का भी दिग्दर्शन कराया जा सके ।
जिस प्रकार वेद अपौरुषेय है ठीक उसी प्रकार पुराण भी अपौरुषेय है इसकी पुष्टि स्वयं श्रुति ही करती है
●- अरेऽस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद्यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणं विद्या उपनिषदः श्लोकाः सूत्राण्यनुव्याख्यानानि (बृहदारण्यक उपनिषद)
ऋषयो मंत्र दृष्टारः' (निरुक्त) ऋषिगण मन्त्रद्रष्टा हुए कर्ता नही ठीक उसी प्रकार पुराणों के वक़्ता सत्यवतीसुत व्यास
हुए कर्ता नही ।
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● शंका :--- अष्टादश (१८) पुराणों के वक़्ता यदि सत्यवती सुत कृष्णद्वैयापन व्यास ही है तो फिर सृष्टि ,उत्पती,विनाश ,वंश परम्परा, मनुओं का कथन विशिष्ट व्यक्तियों के चरित्र उक्त यह पांचों बिषय पुराणों में भेद के साथ क्यो मिलते है ??
निवारण :--- इस संसय का निवारण भी पुराण से ही हो जाता है कलिकाल के प्रभवा से मनुष्यो को क्षिणायु निर्बल एवं दुर्बुद्धि जानकर ब्रह्मादि लोकपालों के प्रार्थना करने पर धर्मरक्षा के लिए महर्षि पराशर द्वरा सत्यवती में भगवन के अंशांश कलावतार रूप में अवतार धारण कर वेद तथा पुराणों को विभक्त कर उसे प्रकाशित किया ततपश्चात महामति व्यास ने अपने योग्य पैल , वैशंपायन ,जैमिनी ,सुमंत आदि शिष्यों पर वेद संहिताओं के रक्षण का भार निहित किया तथा इतिहास और पुराणों के रक्षा का भार सुत के पिता रोमहर्षण को नियुक्त किया रोमहर्षण जी के छः शिष्य सुमति ,मित्रयु ,शांशपायन अग्निवर्चा अकृतव्रण ,और सावर्णि थे ।
●-प्रख्यातो व्यासशिष्योऽभूत् सूतो वै रोमहर्षणः ।
पुराणसंहितां तस्मै ददौ व्यासो महामुनिः ।। (विष्णु पुराण ३/६/१६)
●-इतिहासपुराणानां पिता मे रोमहर्षणः ॥(श्रीमद्भागवतम् १/४/२२)
●-सुमतिशचाग्नि वर्चाश्च मित्रायुः शांशपायनः ।
अकृतव्रणः सावर्णिः षट् शिष्यास्तस्य चाभवन् (विष्णु पुराण ३/६/१७)
●-षट्शः कृत्वा मयाप्युक्तं पुराणमृषिसत्तमाः
आत्रेयः सुमतिर्धीमान्काश्यपो ह्यकृतव्रणः।
भारद्वाजोऽग्निवर्चाश्च वसिष्ठो मित्रयुश्च यः ।
सावर्णिः सोमदत्तिस्तु सुशर्मा शांशपायनः (वायु पुराण )
जिस प्रकार शाखा भेद के कारण शाकल तथा वाष्कल संहिताओं में मन्त्रो का न्यूनाधिक देखने को मिलता है ठीक उसी प्रकार शिष्य प्रशिष्य के भेद के कारण पुराणों में भी पाठ भेद हो सकता है ।
यदि पुराणों के सङ्कलनकर्ता भिन्न भिन्न व्यास माने तो
पुराणों के इन वचनों का क्या होगा ?
●-अष्टादश पुराणानि वयासेन कथितानी तू ( मत्सय पुराण / वराह पुराण )
●-पराशरसुतो व्यासः कृष्णद्वैपायनोऽभवत् ।
स एव सर्ववेदानां पुराणानां प्रदर्शकः ।(कूर्मपुराण ५२/९)
अष्टादश पुराणानि कृत्वा सत्यवतीसुतः ।(देवीभागवत पुराण स्कंध १/ अध्याय ३ श्लोक संख्या १७)
अतः पुराणों के सङ्कलनकर्ता भिन्न भिन्न व्यास नही अपितु कृष्णद्वैयापन व्यास ही सिद्ध होता है ।
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●शंका :-- अच्छा यह तो ठीक है परन्तु अष्टादश (१८) पुराणों की रचना सत्यवती सुत ही अगर करते तो पुराणों में ही ऐसा क्यो कहा गया है कि वशिष्ठ और पुलत्स्य के वरदान से महर्षि पराशर जी ने विष्णु पुराण की रचना की
●-अथ तस्य पुलस्त्यस्य वसिष्ठस्य च धीमतः।।
प्रसादाद्वैष्णवं चक्रे पुराणं वै पराशरः।। (लिङ्ग पुराण पूर्वभाग ६४/१२०-१२१)
निवारण :--वेदो की भांति पुराण भी नित्य माने गए है स्वयं वेदो का ही इस बिषय पर शङ्खानाद है अतः पुराणों के रचयिता कोई नही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी भी पुराणों को स्मरण ही करते है
पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम् l
अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदा अस्य विनिर्गता: l
यदि पुराणों के कर्ता महर्षि पराशर वा महर्षि व्यास माना जाय तो फिर श्रुतियाँ ही बाधित हो जाय ।
ऋक् ,यजु,साम,अथर्व,इतिहास,पुराणादि समस्त विद्या उस आनन्दकन्द सर्वज्ञ परमेश्वर से ही प्रकट हुए है अतः इस शंका का निवारण यही हो जाता है कि पुराणों के कर्ता महर्षि पराशर अथवा व्यास नही है वे तो केवल सङ्कलनकर्ता मात्र है ।
जो ऋषि मन्त्रब्राह्मणात्मक वेद के द्रष्टा है वे ही पुराणों के प्रवक्ता भी है ।
पुराणों के उपक्रम और उपसंहार पढ़ने पर अथवा नारद आदि पुराणों में दी हुई पुराणसूची का परायण करने पर यह स्प्ष्ट हो जाता है कि समस्त पुराणों के आदिम वक़्ता ब्रह्मा,विष्णु,महेश,पराशर,अग्नि,सावर्णि,मार्कण्डेय ,और सनकादि तथा आदिम श्रोता ब्रह्मा मारीच वायु गरुड़ नारद वशिष्ठ जैमिनी पुलत्स्य भूमि आदि है इन सब के पुरातन संवादों को ही वेदव्यास जी ने द्वापर के अंत मे क्रमबद्ध किया ।
●--ये एव मन्त्रब्राह्मणस्य द्रष्टार: प्रवक्तारश्च ते खल्वितिहासपुराणस्य धर्मशास्त्रस्य चेति। (न्यायदर्शन ४/१/६२)
बिस्तार भय के कारण अत्यधिक प्रमाणों को मैं यहाँ नही रख पा रहा हूँ फिर भी विद्जनो के लिए इतना उपदिष्ट कर दे रहा हूँ जो समय निकाल कर शंका का निवारण कर सके
मत्स्य पुराण अध्याय ५५ जहाँ इस विषय मे बिस्तार से बताया गया है कि किन किन पुराणों को किन किन ऋषयो अथवा देवताओं के प्रति कहा गया था ।
अतः विष्णु पुराण के प्रति महर्षि पराशर का भी यही सन्दर्भ लेना उचित जान पड़ता है क्यो की समस्त पुराण एक सुर में यही उद्घोषणा करते है कि ।
●-अष्टादश पुराणानि वयासेन कथितानी तू ( मत्सय पुराण / वराह पुराण )
●-पराशरसुतो व्यासः कृष्णद्वैपायनोऽभवत् ।
●-स एव सर्ववेदानां पुराणानां प्रदर्शकः ।(कूर्मपुराण ५२/९)
अष्टादश पुराणानि कृत्वा सत्यवतीसुतः ।(देवीभागवत पुराण स्कंध १/ अध्याय ३ श्लोक संख्या १७)
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विशेष----● पुराणों के बिषय में गौड़ापाद,शङ्कर, रामानुज,माध्व, वल्लभाचार्य,निम्बकाचार्य प्रभृति आचार्यो तथा इनसे भी पूर्वकालिक मूर्धन्य आचार्यो एवं विद्वानों को भी पुराणादि बिषयों पर सन्देह नही था अपितु हम जैसे अल्पज्ञ अल्पश्रुत स्वयमेव स्वघोषित विद्वान बन शास्त्रो के अर्थो का मनमाना अर्थ बड़ी धृष्टतापूर्वक कर विद्वान बनने का ढोल पीटने लगते है इससे बड़ा और हास्यस्पद क्या हो सकता है भले ही वह मैं ही क्यो न रहूं ।
शैलेन्द्र सिंह
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