Monday, 24 May 2021

शिवलिङ्ग



लिंगार्थगमकं चिह्नं लिंगमित्यभिधीयते।(शिव पुराण विशेश्वर संहिता)


अर्थात शिवशक्ति के चिन्ह का सम्मेलन ही लिंग हैं। लिंग में विश्वप्रसूति-कर्ता की अर्चा करनी चाहिये। यह परमार्थ शिवतत्त्व का गमक, बोधक होने से भी लिंग कहलाता है।


सर्वाधिष्ठान, सर्वप्रकाशक, परब्रह्म परमात्मा ही ‘‘शान्तं शिवं चतुर्थम्मन्यन्ते’’ इत्यादि श्रुतियों से शिवतत्व कहा गया है। वही सच्च्दिानन्द परमात्मा अपने आपको ही शिवशक्तिरूप में प्रकट करते हैं। वह परमार्थतः निर्गुण, निराकार होते हुए भी अपनी अचिन्त्य दिव्यलीलाशक्ति से सगुण, साकार, सच्चिदानन्दघनरूप में भी प्रकट होते हैं। 


लिंग शब्द के प्रति आधुनिक समाज में ब़ड़ी भ्रान्ति पाई जाती है।

संस्कृत में "लिंग" का अर्थ होता है प्रतीक।अथवा चिन्ह 

जननेंद्रि के लिए संस्कृत में एक दूसरा शब्द है - "शिश्न".आया है 

शिवलिंग का अर्थ लोकप्रसिद्ध मांसचर्ममय ही लिंग और योनि नहीं है, किन्तु वह व्यापक है। उत्पति का उपादानकारण पुरुषतत्व का चिह्न ही लिंग कहलाता है।  अतः वह लिंगपदवाच्य है। लिंग और योनि पुरुष-स्त्री के गुह्यांगपरक होने से ही इन्हें अश्लील समझना ठीक नहीं है। । 

उस अव्यक्त चैतन्यरूप लिंग सत्ता और प्रकृति से ही ब्रह्माण्ड बना है 

भगवान् के निर्गुण-निराकार रूप का प्रतीक ही शिवलिङ्ग है 

वह परमप्रकाशमय, अखण्ड, अनन्त शिवतत्त्व ही वास्तविक लिंग है 

 जब अनन्तब्रह्माण्डोत्पादिनी प्रकृति समष्टि योनि है, तब अनन्त ब्रह्माण्डनायक परमात्मा ही समष्टि लिंग है और अनन्त ब्रह्माण्ड प्रपंच ही उनसे उत्पन्न सृष्टि है।

■भं वृद्धिं गच्छतीत्यर्थाद्भगः प्रकृतिरुच्यते

मुख्यो भगस्तु प्रकृतिर्भगवाञ्छिव उच्यते  (शि०पु० वि० संहिता १६/१०१-१०२)

(भ) बृद्धि को (ग) या प्राप्त करने वाली प्रकृति को भग कहते है और प्रकृति की अधिष्ठाता शिव (भगवन) ही परमानन्द ब्रह्म है ।


शिव-शक्ति ही यहाँ लिंग-योनि शब्द से विवक्षित है। उत्पत्ति का आधारक्षेत्र भग है, बीज लिंग है। वृक्ष, अंकुरादि सभी प्रपंच की उत्पत्ति का क्षेत्र भग है


अनन्तब्रह्माण्डोत्पादिनी महाशक्ति प्रकृति ही योनि,है

अनन्तकोटिब्रह्माण्डोत्पादिनी अनिर्वचनीय शक्तिविशिष्ट ब्रह्म में भी शिव-पार्वती भाव है। उस परमात्मा में ही लिंगयोनिभाव की कल्पना है। निराकार, निर्विकार, व्यापक दृक् या पुरुषतत्व का प्रतीक ही लिंग है और अनन्तब्रह्माण्डोत्पादिनी महाशक्ति प्रकृति ही योनि,है

उसी की प्रतिकृति पाषाणमयी, घातुमयी जलहरी और लिंगरूप में बनायी जाती है।


शिवलिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, ऊपर प्रणवात्मक शिव हैं। लिंग महेश्वर, अर्घा महादेवी हैं-


■मूले ब्रह्मा तथा मध्येविष्णुस्त्रिभुवनेश्वरः।*

■रुद्रोपरि महादेवः प्रणवाख्यः सदाशिवः।।*

■लिंगवेदी महादेवी लिंग साक्षान्महेश्वरः।*

■तयोः सम्पूजनान्नित्यं देवी देवश्च पूजितौ।।’*


जिसकी उपासना करने प्रत्येक वेदाभिमानी का कर्तब्य है ।

शैलेन्द्र सिंह

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