Friday, 10 July 2020

श्रोतीय गुरु और स्कूली शिक्षक



भारतीय जनमानस में आज समस्त बुद्धिजीवी गण इस विचार से ग्रसित है कि शिक्षक ही गुरु है ।
यह एक प्रकार का भ्रांत है गुरु और शिक्षक में भेद है ।
गुरु वे होते है जो श्रोतीय है जो श्रुतिस्मृति प्रोक्त अध्यात्म ज्ञान से परिपूर्ण वेदविद्या में पारंगत है जिन्हें समस्त संस्कार का ज्ञान हो यज्ञयाज्ञ उपनयन संस्कार आदि कर्मकाण्ड  किस कालखण्ड में किस नक्षत्रादि के लग्न में किया जाय तो मनुष्य का लौकिक और पारलौकिक कल्याण निश्चित हो जाय जो जन्ममरण बन्धन से मुक्त करने में सहायक हो जिस प्रकार ईश्वर दिब्य दृष्टि देने में सामर्थ्य है उसी प्रकार एक श्रोतीय गुरु दिब्य विद्या देने में समर्थ है जिससे शिष्य भूतभविष्य के द्रष्टा बन सके ये गुरु के स्वाभाविक लक्षण है जो शिक्षकों में नगण्य है ।

 वही  आजकल के स्कूली शिक्षक भौतिक शिक्षा को ही लक्ष्य मान कर केवल लौकिक सुख तक सीमित मात्र है एक ऐसी शिक्षा जो केवल मात्र उदर पोषण तक ही सीमित है ,
 न ही पारलौकिक कल्याण न ही अध्यात्म चर्मोत्कर्ष की अनुभूति न ही भविष्परिणामी व्यवस्था पर कोई विशेष व्यवस्था

अतःस्कूली शिक्षकों को गुरु के समतुल्य कहना निश्चय ही भ्रांत है ।

आज भाग 1



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