Friday, 10 July 2020

श्रोतीय_गुरू_और_स्कूली_शिक्षक_भाग__2



जीवो को जो मोक्ष मिलता है वह जीवो का एक प्रकार से जन्म ही है जिससे जीव के स्वरूप का पूर्ण बिकाश होता है , सांसारिक जन्म और मोक्षरूपी जन्म में यही अन्तर है ,
मोक्षरूपी जन्म सांसारिक जन्मो को नष्ट कर देता है  क्यो की मोक्ष पद पर पहुचने पर जीव को पुनः संसार मे जन्म लेना नही पड़ता ,
 इस प्रकार अन्यान्य जन्मो को नष्ट करने वाले मोक्षरूपी विशिष्ट जन्म का प्रदान करना श्रीभगवन का असाधारण कार्य है यह विशेषता श्रीभगवन में ही है वैसी ही विशेषता आचार्य  में है, क्यो की आचार्य सांसारिक जन्मो को नष्ट करने वाले विद्याजन्म का प्रदान करते है ,
श्री भगवन भक्तो को दिब्य दृष्टि देने में सामर्थ्य रखते है वैसे ही आचार्य भी दिब्य दृष्टि देने में समर्थ है अतएव शिष्य आचार्य के द्वरा अनुपदिष्ट अर्थो को समझने की क्षमता रखते है आचार्य प्रवर श्रीवेदव्यास
जी ने सञ्जय को दिब्य दृष्टि और दिब्य श्रोत प्रदान किया था जिससे सञ्जय विश्वरूप को देखने और गीतोपदेश को सुनने में समर्थ हुए थे इससे सिद्ध होता है कि दिब्य दृष्टि देने में ईश्वर और आचार्य दोनों ही सामर्थ्य रखते है ।

दिब्य दृष्टि तथा मोक्ष रूपी विद्या की प्राप्ति श्रोतीय गुरु से ही प्राप्त हो सकता है भौतिकवादी शिक्षकों से नही भौतिक वादी शिक्षक केवल मात्र उदर पूर्ति तक ही सीमित है
अतः यह कहना नीतान्त भ्रामक है कि श्रोतीय गुरु और भौतिक शिक्षविद दोनों समतुल्य है ।

भाग 3 कल प्रसारित किया जाएगा ।


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