स्प्ष्ट कर देना चाहता हूं कि जौहर अथवा सतीप्रथा सनातन धर्म की मूल संस्कृतियां नही थी परन्तु समय की गति में कुछ इस तरह का मोड़ आया कि इस प्रथा का जन्म हुआ ताकि सामाजिक पवित्रता तथा गर्भदुषिता से बचा जाए ||
========================================
जौहर अथवा सती प्रथा के बिषय में कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने निकृष्ट और भ्रामकता का प्रचार इस कदर किया गया कि जनमानस में इस प्रथा के बिषय में बिपरीत विचारधारा की जड़े जनमानस को जकड़ ली , जौहर और सती प्रथा का मूल उद्देश्य का ही लोप हो चुका ,
कहना न होगा कि विधवा माँ और बहनों को दुराचारी कामोद्दीपन से उद्विग्न पुरुष उन माताओ और बहनों को किस दृष्टिकोण से देखता होगा और समय का लाभ मिलते ही वे अपने कुकृत्य कार्य को भी पूरा करने के लिए हर वह षड्यंत्र अपनाता होगा जो एक दुराचारी पुरुष के लक्षण होते है , इस सत्यता को स्वीकार करने से कोई भी ब्यक्ति पीछे नही हट सकता जब आज समाज की परिस्थिति यह हो सकती है तो बिचार करिए कि उस कालखण्ड में क्या हुआ होगा जब यवन ,और अरब के लुटेरो ने यहाँ के पुरुषों का सर कलम कर उनकी माताओ बेटियों ,बहुओंऔर बहनों को अपने हरम में जबरन ले गया होगा और भेड़ियों के मानिंद उसे नोच नोच कर खाया होगा ।
जौहर और सती प्रथा स्वेच्छा से लिया गया निर्णय था उन माताओ और बहनों का जिन्होंने यह निर्णय कीया की हम मृत्यु का वरण करेंगे परन्तु अपने गर्भ को दूषित न करेंगे ,
हमे गर्व होना चाहिए कि भारत के उन बीरो ने अपने मातृभूमि और अपने धर्म के राक्षण हेतु मृत्यु का वरण किया जिन्होंने ने मृत्यु का वरण किया होगा उनकी बहू बेटियों को संरक्षण प्रदान करने वाला उस समय मे कौन होगा ?
सायद कोई नही ,यवन और अरब के बर्बर लुटेरो ने अपने साथ स्त्रियों को नही लाया था वह तो यहाँ युद्ध मे बन्दि बनाये हुए तथा जीते गए उन उन माताओ और बहनों को उठा कर अपने हरम में ले गया होगा उनसे बलात्कार किया होगा उनसे अवांछनीय संताने उतपन्न किया होगा ,ऐसी दशा में भारत के वीरांगनाओं ने जो शस्त्र विहीन युद्ध छेड़ा वह धर्म और बुद्धि बल का ही परिचायक बना उन उन माताओ और बहनों ने जो निर्णय लिया वह आत्ति सलाघ्नीय थी कि उनके गर्भ में मलेच्छो का बीज न पले और अवांछनीय सन्तानो को जन्म न दे ,उनका यह निर्णय अपने कुल और मर्यादा का रक्षण करने वाला हुआ भारत की नारियां उन पुरुषो से भी आगे निकली जो बर्बर लुटेरो से युद्ध और भय के कारण इस्लाम स्वीकार किया होगा ।
जौहर और सती प्रथा का यह निर्णय तीब्रगति से बढ़ती हुई इस्लामिक जनसंख्या पर अंकुश लगाया अन्यथा आज भारत मे हिन्दू अल्पसंख्यक होते मुस्लिम नही ।
भारत के उन वीरांगनाओं ने स्वधर्म का पालन करते हुए स्वेच्छा से मृत्यु का वरण किया बनिस्पत उन मलेच्छो के हरम में जाने से , उन उन माताओ और बहनों को अपने स्वधर्म का बोध था परन्तु आज के तथाकथित बुद्धिजीवियों ने जौहर और सती प्रथा का मूल उद्देश्यों के प्रचार न कर उसे निकृष्ट दिखाने का जो प्रयास किया है वह अतिनिन्दनीय है
यवन,अरब, ईशायत ,ने सनातन धर्म को निकृष्ट दिखाने हेतु हर तरह का षड्यंत्र अपनाया उन षडयंत्रो का शिकार भारत के प्रबुद्ध पढ़े लिखे भी शिकार हुए और उनके सुर ताल में हाँ मे हाँ मिलाकर सनातन धर्म के सनातन संस्कृतियों पर वज्राघात किया भारत के माताओ और बहनों द्वारा शस्त्र विहीन ययुद्ध ने ही यहाँ के हिन्दुओ को बाहुल्य बनाये रखा यदि वे माताएं और बहने उन मलेच्छो का बीज अपने गर्भ में पालती तो भारत का दृश्य आज कुछ और ही होता ।
धन्य है यह भारत भूमि जहाँ समय समय पर माता सीता ,अग्निकन्या द्रोपदी ,झांसी जैसे अनेको दिब्य विभूतियों को जन्म दिया जिन्होंने अपने अपने तरीके से युद्ध लड़ कर दुष्टात्माओं का सर्वनाश किया ।
सत् सत् नमन है उन माताओ और बहनों को जिसने शस्त्रविहीन युद्ध मे भाग लिया और स्वेच्छा से मृत्यु का वरण कर इस्लामिक जनशख़्या पर अंकुश लगाया ।
शैलेन्द्र सिंह
जौहर के विषय में यह मानना उचित है कि स्त्रियां स्वेच्छा से अग्नीकुंड में प्राण त्याग देती थी परन्तु यहा सती प्रथा में लगभग 40 से 50 प्रतिशत स्त्रियां स्वेच्छा पूर्वक तथा बाकियों को जबरन जलाया जाता था जो मुझे अनुचित लगता है इसपर राजा राममोहन राय ने भी अपनी प्रतिक्रिया वयक्त की थी।
ReplyDeleteसती प्रथा का उल्लेख हमारे किसी भी धर्मशास्त्र इतिहासपुराणादि ग्रन्थों में अनुपलब्ध है ।
Deleteब्रिटिश शाशन काल एवं यवन तुर्क अरब से आये हुए बर्बर लुटेरों के पूर्व सती प्रथा का उल्लेख कही भी प्राप्त नही होता ।
राजाराममोहन राय जो कि ब्रिटिशो के चाटुकार थे उन्होंने ने सती प्रथा के नाम पर सनातन धर्म को कलङ्कित किया । राजाराम मोहन ने प्रमाणों के अभाव में इस तरह के आक्षेप लगाएं है जो कि अतिनिन्दनीय है ।
क्या उन्होंने जो आक्षेप लगाए है उसके पीछे कोई स्पष्ट रूप से प्रमाण दिए है ??
सती प्रथा यदि सनातन धर्म का अंग होता तो राजा दशरथ के मृत्यु के पश्चात माता कौशल्या ,कैकेई ,सुमित्रा ने आत्मदाह क्यो नही किया ?
बाली के मृत्युउपरान्त तारा ने आत्मदाह नही किया ?
रावण वध के पश्चात रानी मंदोदरी ने आत्मदाह क्यो नही किया ??
महाभारत जैसे भीषण युद्ध मे लाखो करोड़ो योद्धा बिरगति को प्राप्त हुए थे उनके पीछे एक भी स्त्री ने आत्मदाह नही किया था अभिमन्यु का वध होने के पश्चात उत्तरा ने भी आत्मदाह नही किया इन यदि सती प्रथा सनातन धर्म का हिस्सा होता तो एक भी प्रमाण अवश्य प्राप्त होते इस बिषय पर प्रमाण के नाम पर धर्मशास्त्रों में शून्य है ।