Thursday, 18 July 2019

विश्वामित्र जन्मना ब्राह्मण थे

कथा का सारांश यह है कि विश्वामित्र के पिता का नाम गाधि था उनके कोई पुत्र नही था केवल एक कन्या थी उस कन्या का विवाह ऋचीक के साथ कर दी गई ,ऋचीक ऋषि ब्राह्मण थे गाधि की कन्या ने दीर्घकाल तक जब अपने पति की सेवा की तब ऋचीक ऋषि सन्तुष्ट हुए किसी महर्षि को संतुष्ट कर लेना सर्वलोकाधिपतीत्य प्राप्त होने से भी अधिक माना जाता था क्यो की सिद्ध तपस्वी के वरदान से सभी कुछ प्राप्त हो सकता है उस समाचार को सुन गाधि के पत्नी ने अपनी ने बेटी  से कहा की बेटी तु तो जानती है की तेरा कोई भाई नही है इस कारण तपस्वी महात्मा की कृपा से कोई प्रतापी पुत्र प्राप्त हो ऐसा कोई उपाय कर इसके पश्चात उसने अपने माता के कथनानुसार महर्षि रिची से जाकर कहा की एक ब्रह्मऋषि पुत्र मैं चाहती हूं और एक राजऋषि पुत्र मेरी माता चाहती है कृपा कर दोनों का मनोरथ पूरा कीजिये तब ऋचीक महर्षि ने यज्ञ किया उसमे दो प्रकार चरु बनाया जिसमे वेद मंत्र द्वारा दो प्रकार की शक्तियां  स्थापित कर के दोनों प्रकार के चरु को स्वपत्नी को देकर कहा की यह चरु तुम्हारे लिए है इसको खाने से वेदवेत्ता तेजस्वी ब्रह्मऋषि ब्राह्मण उतपन्न होगा और यह दूसरा चरु तुम्हारे माता के लिए है इसको खाने से प्रतापी क्षत्रिय उतपन्न होगा तब वह गाधि पुत्री उभय विध चरु अपने माता के पास लेकर गई और ऋषि द्वारा बताए हुए बिधान सहित सब वृतान्त अपनी माता से कहा इस पर् माता ने कहा बेटी तु जानती है कि तेरे लिए जो चरु दिया गया है वह अत्यंत ही महत्वपूर्ण होगा और तेरे भ्रात का  महत्व  अधिक हो यह तू भी अच्छे से मानती होगी तब तू अपना चरु मुझे दे दे और मेरा चरु चरु तू खा ले और बिधान भी परिवर्तन कर ले ,यह बिचार लड़की ने मान लिया और परिवर्तित बिधान के सहित बदला हुआ चरु दोनों ने खा लिया ,
और कुछ दिन पश्चात दोनों गर्भवती भी हुई ,ऋचीक ऋषि ने अपनी पत्नी के चेष्टा देख कर वह गुप्त वृतान्त जान लिया क्योकि गर्भवती की आकृति पर ब्रह्मतेज नही दिख पड़ा तब महर्षि ऋचीक ने कहा तुमलोगो ने बड़ा अनर्थ किया जो चरु बदल लिया अब इसका परिणाम यह होगा की तुम्हारी माता के गर्भ से ब्रह्मऋषि ब्राह्मण उतपन्न होगा और तुम्हारा पुत्र क्षत्रिय तेजवाला होगा फिर ऋचीक की पत्नी की अधिक प्रार्थना करने पर महर्षि ऋचीक ने कहा की तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण तो होगा परन्तु चरु में क्षत्रतेज स्थापित किया गया है वह पुत्र में प्रादुर्भूत न होकर पौत्र में क्षत्रधर्म उग्रप्रताप प्रकट होगा इस कथन के अनुसार ऋचीक के पुत्र जन्मदग्नि महर्षि हुए और जन्मदग्नि से परशुराम हुए जो ऋचीक के पौत्र थे उनमें क्षत्रतेज प्रज्वलित हुआ सो प्रसिद्ध ही है इस उपाख्यान से सिद्ध हुआ कि महर्षि विश्वामित्र की उत्पत्ति महर्षि ऋचीक के उस चरु से हुआ जो वेदवक्ता ब्रह्मऋषि उतपन्न करने के लिए दिया गया था किन्तु क्षत्रिय के रजबीर्य  से यह उत्पती  नही हुई इसी कारण विश्वामित्र जन्म से ही ब्राह्मण थे यदि ऐसा होना असम्भव कहो तो इतिहास पुराणादि का मानना ही नही बनता उसको न माना जाय तो क्ष्ट्री से ब्राह्मण होना भी बन नही सकता ।
जिस इतिहास के आधार पर विश्वामित्र को क्षत्रिय होने की डुगडुगी पिटी जाती है वह इतिहास जैसे उस अंश में माना जाता है वैसे ही विश्वामित्र के उत्पति का इतिहास मानना पड़ेगा जो कि महाभारत में स्प्ष्ट कहा गया है कि उस गर्भ से ब्राह्मण बालक का जन्म होगा अब जिसकी उत्पति के पूर्व ही यह स्प्ष्ट हो जाता है कि जन्म लेने वाला बालक जन्मना ब्राह्मण होगा फिर उस पर् शंका करना ही निराधार है ।

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