एकदेहोद्भवा वर्णाश्चत्वारोऽपि वराङ्गने।
पृथग्धर्माः पृथक्शौचास्तेषां तु ब्राह्मणो वरः।।[[ महाभारत -- आदिपर्व ८१/२०]]
एक ही परमेश्वर के शरीर से चारो वर्णों की उत्पति हुई है परन्तु सबके धर्म और शौचाचार अलग अलग है ब्राह्मण उन सब वर्णों में श्रेष्ठ है ||
तस्मात् प्राणभृतः सर्वान् न हिंस्याद् ब्राह्मणः क्वंचित्
ब्राह्मणः सौम्य एवेह भवतीति परा श्रुतिः ।।[[ महाभारत आदिपर्व १/ ११/१४]]
अर्थ----: ब्राह्मण को समस्त प्राणियों में से किसी की कभी भी और कही भी हिन्सा नही करनी चाहिए ब्राह्मण इस लोक में सदा सौम्य स्वभाव का ही होता है ऐसा श्रुति वचन है ||
न च ते ब्राह्मणं हन्तुं कार्या बुद्धिः कथंचन।
अवध्यः सर्वभूतानां ब्राह्मणो ह्यनलोपमः।।
अग्निरर्को विषं शस्त्रं विप्रो भवति कोपितः।
गुरुर्हि सर्वभूतानां ब्राह्मणः परिकीर्तितः।।
एवमादिस्वरूपैस्तु सतां वै ब्राह्मणो मतः।
स ते तात न हन्तव्यः संक्रुद्धेनापि सर्वथा।।
ब्राह्मणानामभिद्रोहो न कर्तव्यः कथंचन।
न ह्येवमग्निर्नादित्यो भस्म कुर्यात्तथानघ।।
यथा कुर्यादभिक्रुद्धो ब्राह्मणः संशितव्रतः।
तदेतैर्विविधैर्लिङ्गैस्त्वं विद्यास्तं द्विजोत्तमम्।।
भूतानामग्रभूविप्रो वर्णश्रेष्ठ: पिता गुरु ।[[ महाभारत १/२८/३'४'५'६'७]]
अर्थ ----: किसी भी प्रकार ब्राह्मण को मारने का बिचार नही करना चाहिए क्योकि ब्राह्मण समस्त प्राणियो के लिए अबध्य है वह अग्नि के समान दाहक होता है ||
कुपित किया हुआ ब्राह्मण अग्नि सूर्य विष् एवं शस्त्र के सामान भयंकर होता है ब्राह्मण को समस्त प्राणियों का गुरु कहा गया है ||
इन्ही रूपो में सत् पुरुष के लिए ब्राह्मण आदरणीय माना गया है तुम्हे क्रोध भी आ जाए तो ब्राह्मण हत्या सम्बन्धी बिषयों से दूर रहना चाहिए ||
ब्राह्मण के साथ किसी प्रकार का द्रोह नही करना चाहिए अनध कठोर व्रत का पालन करने वाला ब्राह्मण क्रोध में आने पर अपराधी को जिस प्रकार जला कर भस्म कर देता है इस प्रकार अग्नि और सूर्य भी नही जला सकता ब्राह्मण समस्त प्राणियो का अग्रज सब वर्णों में श्रेष्ठ पिता और गुरुहै ||
विप्रसत्वया न हन्तव्य: संकुद्वेनापी सर्वदा । [[महाभारत १/२८/११]]
अर्थ ----: क्रोध होने पर भी ब्रह्म हत्या नही करनी चाहिए ||
ब्राह्मणा ही सदा रक्ष्याः सापराधापी नित्यदा [[ महाभारत १/१८९/३६]]
ब्राह्मण अपराधी भी हो तो सदैव उनकी रक्षा करनी चाहिए ||
ब्राह्मणानां परिक्लेशो दैवतान्यपि सादयेत् [[ महाभारत वनपर्व २/४]]
ब्राह्मणों को दिया हुआ क्लेस तो देवताओ को भी बिनाश कर सकता है ||
पृथग्धर्माः पृथक्शौचास्तेषां तु ब्राह्मणो वरः।।[[ महाभारत -- आदिपर्व ८१/२०]]
एक ही परमेश्वर के शरीर से चारो वर्णों की उत्पति हुई है परन्तु सबके धर्म और शौचाचार अलग अलग है ब्राह्मण उन सब वर्णों में श्रेष्ठ है ||
तस्मात् प्राणभृतः सर्वान् न हिंस्याद् ब्राह्मणः क्वंचित्
ब्राह्मणः सौम्य एवेह भवतीति परा श्रुतिः ।।[[ महाभारत आदिपर्व १/ ११/१४]]
अर्थ----: ब्राह्मण को समस्त प्राणियों में से किसी की कभी भी और कही भी हिन्सा नही करनी चाहिए ब्राह्मण इस लोक में सदा सौम्य स्वभाव का ही होता है ऐसा श्रुति वचन है ||
न च ते ब्राह्मणं हन्तुं कार्या बुद्धिः कथंचन।
अवध्यः सर्वभूतानां ब्राह्मणो ह्यनलोपमः।।
अग्निरर्को विषं शस्त्रं विप्रो भवति कोपितः।
गुरुर्हि सर्वभूतानां ब्राह्मणः परिकीर्तितः।।
एवमादिस्वरूपैस्तु सतां वै ब्राह्मणो मतः।
स ते तात न हन्तव्यः संक्रुद्धेनापि सर्वथा।।
ब्राह्मणानामभिद्रोहो न कर्तव्यः कथंचन।
न ह्येवमग्निर्नादित्यो भस्म कुर्यात्तथानघ।।
यथा कुर्यादभिक्रुद्धो ब्राह्मणः संशितव्रतः।
तदेतैर्विविधैर्लिङ्गैस्त्वं विद्यास्तं द्विजोत्तमम्।।
भूतानामग्रभूविप्रो वर्णश्रेष्ठ: पिता गुरु ।[[ महाभारत १/२८/३'४'५'६'७]]
अर्थ ----: किसी भी प्रकार ब्राह्मण को मारने का बिचार नही करना चाहिए क्योकि ब्राह्मण समस्त प्राणियो के लिए अबध्य है वह अग्नि के समान दाहक होता है ||
कुपित किया हुआ ब्राह्मण अग्नि सूर्य विष् एवं शस्त्र के सामान भयंकर होता है ब्राह्मण को समस्त प्राणियों का गुरु कहा गया है ||
इन्ही रूपो में सत् पुरुष के लिए ब्राह्मण आदरणीय माना गया है तुम्हे क्रोध भी आ जाए तो ब्राह्मण हत्या सम्बन्धी बिषयों से दूर रहना चाहिए ||
ब्राह्मण के साथ किसी प्रकार का द्रोह नही करना चाहिए अनध कठोर व्रत का पालन करने वाला ब्राह्मण क्रोध में आने पर अपराधी को जिस प्रकार जला कर भस्म कर देता है इस प्रकार अग्नि और सूर्य भी नही जला सकता ब्राह्मण समस्त प्राणियो का अग्रज सब वर्णों में श्रेष्ठ पिता और गुरुहै ||
विप्रसत्वया न हन्तव्य: संकुद्वेनापी सर्वदा । [[महाभारत १/२८/११]]
अर्थ ----: क्रोध होने पर भी ब्रह्म हत्या नही करनी चाहिए ||
ब्राह्मणा ही सदा रक्ष्याः सापराधापी नित्यदा [[ महाभारत १/१८९/३६]]
ब्राह्मण अपराधी भी हो तो सदैव उनकी रक्षा करनी चाहिए ||
ब्राह्मणानां परिक्लेशो दैवतान्यपि सादयेत् [[ महाभारत वनपर्व २/४]]
ब्राह्मणों को दिया हुआ क्लेस तो देवताओ को भी बिनाश कर सकता है ||
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