त्वं हि देववरिष्ठस्य मारुतस्य महात्मनः । पुत्रस्तस्यैव वेगेन सदृशः कपिकुञ्जर ॥५-१-१२१॥
हे कपी श्रेष्ठ तुम देवताओं में श्रेष्ठ पवन देव के पुत्र हो । हे कपिकुञ्ज वेग में भी तुम पिता के सामान ही हो
अप्सर अप्सरसाम् श्रेष्ठा विख्याता पुंजिकस्थला ।
अंजना इति ॥४-६६-८॥
अप्सराओं में श्रेष्ठ पुञ्जिकस्थली नाम की अप्सरा जिनका दूसरा नाम अन्जना है ।
इससे ये सिद्ध होता है की अञ्जनि पुत्र हनुमान देवयोनि से थे ।
पिता पवन देव और माता अप्सराओं में श्रेष्ठ थी ।
कपि रूपम् परित्यज्य हनुमान् मारुतात्मजः ।
भिक्षु रूपम् ततो भेजे शठबुद्धितया कपिः ॥४-३-२॥
संस्कार क्रम संपन्नाम् अद्भुताम् अविलम्बिताम् ।
उच्चारयति कल्याणीम् वाचम् हृदय हर्षिणीम् ॥४-३-३२॥
हनुमान जी जाते समय अपने वानर रूप को त्याग सन्यासी रूप धारण किया ।
इससे ये ज्ञात होता है की हनुमान जी एक बेहद ज्ञानवान कपी थे वे ऐसे विद्या के ज्ञाता थे जिससे अपने रूप रंग को अपने इच्छा अनुरूप ढाल लेते थे ।
एवम् उक्त्वा तु हनुमाम् तौ वीरौ राम लक्ष्मणौ ।
वाक्यज्ञो वाक्य कुशलः पुनः न उवाच किंचन ॥४-३-२४॥
तम् अभ्यभाष सौमित्रे सुग्रीव सचिवम् कपिम् ।
वाक्यज्ञम् मधुरैः वाक्यैः स्नेह युक्तम् अरिन्दम ॥४-३-२७॥
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ\-\-यजुर्वेद धारिणः ।
न अ\-\-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ॥४-३-२८॥
नूनम् व्यकरणम् कृत्स्नम् अनेन बहुधा श्रुतम् ।
बहु व्याहरता अनेन न किंचित् अप शब्दितम् ॥४-३-२९॥
न मुखे नेत्रयोः च अपि ललाटे च भ्रुवोः तथा ।
अन्येषु अपि च सर्वेषु दोषः संविदितः क्वचित् ॥४-३-३०॥
अविस्तरम् असंदिग्धम् अविलम्बितम् अव्यथम् ।
उरःस्थम् कण्ठगम् वाक्यम् वर्तते मध्यमे स्वरम् ॥४-३-३१॥
अञ्जनि पुत्र हनुमान जी श्री राम चन्द्र से प्रथम भेट में ही मन मोह लिया जिसके प्रत्युतर में भगवन ने लक्ष्मण जी से ये कहा ।
वाक्यज्ञ बीर श्री रामचंद्र और लक्षमण से इस प्रकार वाक्यकुशल हनुमान जी चुप हो गए ।
हे लक्षमण सुग्रीव के वाक्यविशारद सचिव और शत्रुओ के नाश करने वाले इस कपीश्रेष्ठ से तुम मधुर वाणी नीति पूर्वक से तुम बात करो
क्यों की जिस प्रकार की बातचीत इन्होने ने हमसे की है वैसी बातचीत ऋग वेद यजुर्वेद और शामवेद के जाने बिना कोई नही कर सकता ।28
अवस्य ही इन्होने ने सम्पूर्ण ब्याकरण पढ़ा और सुना है क्यों की इन्होने ने जितनी भी बाते कही किन्तु एक भी बात इनके मुख से अशुद्ध नही निकली ।29
इतना ही नही प्रत्युत बोलते समय भी इनके नेत्र ललाट और भौहे तथा शरीर के अन्य अव्यय विकृत को प्राप्त नही हुआ ।30
इन्होने अपने कथन से न ही अन्धाधुन बढ़ाया है और न ही इतना संक्षिप्त ही किया की उनका भाव समझने में भ्रम उत्पन्न हो इन्होने ने अपने कथन को व्यक्त करते समय न ही शीघ्रता ही दिखलाई और न ही विलम्ब किया इनके कहे हुए वचन हृदयस्थ और कंठगत है जो अक्षर जहाँ उठान चाहिए वही उठाया है इनका स्वर भी मध्यम है ।31
इनकी वाणी व्याकरण से संस्कारित क्रम संपन्न और न ही धीमी है न ही तेज ये जो बाते कहते है वो अत्यंत मधुर और गुण युक्त है ।
प्रसन्न मुख वर्णः च व्यक्तम् हृष्टः च भाषते ।
न अनृतम् वक्ष्यते वीरो हनूमान् मारुतात्मजः ॥४-४-३२॥
लक्षमण द्वारा हनुमान की प्रसंसा ।
धीर पवन तनय हर्षित हो प्रसन्न मुख से बातचीत कर रहे है इससे जान पड़ता है की ये कभी झूठ नही बोलते ।
सुग्रीव द्वारा हनुमान की ब्याख्या ।
तेजसा वा अपि ते भूतम् न समम् भुवि विद्यते ।
तत् यथा लभ्यते सीता तत् त्वम् एव अनुचिंतय ॥४-४४-६॥
त्वयि एव हनुमन् अस्ति बलम् बुद्धिः पराक्रमः ।
देश काल अनुवृत्तिः च नयः च नय पण्डित ॥४-४४-७॥
तुम्हारे जैसा तेजस्वी इस पृथ्वी पर दूसरा कोई नही है अतः तुम ऐसा उधोग करना जिससे सीता का पता लग जाए
हे हनुमन तुममे बल बुद्धि बिक्रम तथा देश और काल का ज्ञान और निति का बिचार पूर्ण रूप से है एवं तुम निति में पण्डित हो ।
वीर वानर लोकस्य सर्व शास्त्र विदाम् वर ।
॥४-६६-२॥
जामवंत द्वारा हनुमान जी की व्याख्या
हे समस्त वानर कुल में श्रेष्ठ हनुमान हे सर्व शास्त्रविशारद ।
अप्सर अप्सरसाम् श्रेष्ठा विख्याता पुंजिकस्थला ।
अंजना इति ॥४-६६-८॥
अप्सराओं में श्रेष्ठ पुञ्जिकस्थली नाम की अप्सरा जिनका दूसरा नाम अन्जना है ।
त्वं हि देववरिष्ठस्य मारुतस्य महात्मनः । पुत्रस्तस्यैव वेगेन सदृशः कपिकुञ्जर ॥५-१-१२१॥
फिर तुम देवताओं में श्रेष्ठ पवन देव के पुत्र हो हे कपिकुञ्ज वेग में भी तुम पिता के सामान ही हो ।
विष्णुना प्रेषितो वापि दूतो विजयकाङ्क्षिणा ।
न हि ते वानरं तेजो रूपमात्रं तु वानरम् ।। ५/५०/१०
रावण द्वारा हनुमान ब्याख्या ।
विजयाकांक्षी विष्णु के दूत बन कर आये हो तो ठीक ठीक कह दो क्यों कइ तुम रूप से तो वानार जान पड़ते हो परन्तु तुम्हारा विक्रम तो वानरों जैसा है नही ।
रावण जैसे त्रिकाल ज्ञाता भी ये समझ चुके थे की ये देव पुत्र ही हो सकता है साधारण वानर हो नही सकता ।
प्रस्तुति ---------- शैलेन्द्र सिंह
हे कपी श्रेष्ठ तुम देवताओं में श्रेष्ठ पवन देव के पुत्र हो । हे कपिकुञ्ज वेग में भी तुम पिता के सामान ही हो
अप्सर अप्सरसाम् श्रेष्ठा विख्याता पुंजिकस्थला ।
अंजना इति ॥४-६६-८॥
अप्सराओं में श्रेष्ठ पुञ्जिकस्थली नाम की अप्सरा जिनका दूसरा नाम अन्जना है ।
इससे ये सिद्ध होता है की अञ्जनि पुत्र हनुमान देवयोनि से थे ।
पिता पवन देव और माता अप्सराओं में श्रेष्ठ थी ।
कपि रूपम् परित्यज्य हनुमान् मारुतात्मजः ।
भिक्षु रूपम् ततो भेजे शठबुद्धितया कपिः ॥४-३-२॥
संस्कार क्रम संपन्नाम् अद्भुताम् अविलम्बिताम् ।
उच्चारयति कल्याणीम् वाचम् हृदय हर्षिणीम् ॥४-३-३२॥
हनुमान जी जाते समय अपने वानर रूप को त्याग सन्यासी रूप धारण किया ।
इससे ये ज्ञात होता है की हनुमान जी एक बेहद ज्ञानवान कपी थे वे ऐसे विद्या के ज्ञाता थे जिससे अपने रूप रंग को अपने इच्छा अनुरूप ढाल लेते थे ।
एवम् उक्त्वा तु हनुमाम् तौ वीरौ राम लक्ष्मणौ ।
वाक्यज्ञो वाक्य कुशलः पुनः न उवाच किंचन ॥४-३-२४॥
तम् अभ्यभाष सौमित्रे सुग्रीव सचिवम् कपिम् ।
वाक्यज्ञम् मधुरैः वाक्यैः स्नेह युक्तम् अरिन्दम ॥४-३-२७॥
न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ\-\-यजुर्वेद धारिणः ।
न अ\-\-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम् ॥४-३-२८॥
नूनम् व्यकरणम् कृत्स्नम् अनेन बहुधा श्रुतम् ।
बहु व्याहरता अनेन न किंचित् अप शब्दितम् ॥४-३-२९॥
न मुखे नेत्रयोः च अपि ललाटे च भ्रुवोः तथा ।
अन्येषु अपि च सर्वेषु दोषः संविदितः क्वचित् ॥४-३-३०॥
अविस्तरम् असंदिग्धम् अविलम्बितम् अव्यथम् ।
उरःस्थम् कण्ठगम् वाक्यम् वर्तते मध्यमे स्वरम् ॥४-३-३१॥
अञ्जनि पुत्र हनुमान जी श्री राम चन्द्र से प्रथम भेट में ही मन मोह लिया जिसके प्रत्युतर में भगवन ने लक्ष्मण जी से ये कहा ।
वाक्यज्ञ बीर श्री रामचंद्र और लक्षमण से इस प्रकार वाक्यकुशल हनुमान जी चुप हो गए ।
हे लक्षमण सुग्रीव के वाक्यविशारद सचिव और शत्रुओ के नाश करने वाले इस कपीश्रेष्ठ से तुम मधुर वाणी नीति पूर्वक से तुम बात करो
क्यों की जिस प्रकार की बातचीत इन्होने ने हमसे की है वैसी बातचीत ऋग वेद यजुर्वेद और शामवेद के जाने बिना कोई नही कर सकता ।28
अवस्य ही इन्होने ने सम्पूर्ण ब्याकरण पढ़ा और सुना है क्यों की इन्होने ने जितनी भी बाते कही किन्तु एक भी बात इनके मुख से अशुद्ध नही निकली ।29
इतना ही नही प्रत्युत बोलते समय भी इनके नेत्र ललाट और भौहे तथा शरीर के अन्य अव्यय विकृत को प्राप्त नही हुआ ।30
इन्होने अपने कथन से न ही अन्धाधुन बढ़ाया है और न ही इतना संक्षिप्त ही किया की उनका भाव समझने में भ्रम उत्पन्न हो इन्होने ने अपने कथन को व्यक्त करते समय न ही शीघ्रता ही दिखलाई और न ही विलम्ब किया इनके कहे हुए वचन हृदयस्थ और कंठगत है जो अक्षर जहाँ उठान चाहिए वही उठाया है इनका स्वर भी मध्यम है ।31
इनकी वाणी व्याकरण से संस्कारित क्रम संपन्न और न ही धीमी है न ही तेज ये जो बाते कहते है वो अत्यंत मधुर और गुण युक्त है ।
प्रसन्न मुख वर्णः च व्यक्तम् हृष्टः च भाषते ।
न अनृतम् वक्ष्यते वीरो हनूमान् मारुतात्मजः ॥४-४-३२॥
लक्षमण द्वारा हनुमान की प्रसंसा ।
धीर पवन तनय हर्षित हो प्रसन्न मुख से बातचीत कर रहे है इससे जान पड़ता है की ये कभी झूठ नही बोलते ।
सुग्रीव द्वारा हनुमान की ब्याख्या ।
तेजसा वा अपि ते भूतम् न समम् भुवि विद्यते ।
तत् यथा लभ्यते सीता तत् त्वम् एव अनुचिंतय ॥४-४४-६॥
त्वयि एव हनुमन् अस्ति बलम् बुद्धिः पराक्रमः ।
देश काल अनुवृत्तिः च नयः च नय पण्डित ॥४-४४-७॥
तुम्हारे जैसा तेजस्वी इस पृथ्वी पर दूसरा कोई नही है अतः तुम ऐसा उधोग करना जिससे सीता का पता लग जाए
हे हनुमन तुममे बल बुद्धि बिक्रम तथा देश और काल का ज्ञान और निति का बिचार पूर्ण रूप से है एवं तुम निति में पण्डित हो ।
वीर वानर लोकस्य सर्व शास्त्र विदाम् वर ।
॥४-६६-२॥
जामवंत द्वारा हनुमान जी की व्याख्या
हे समस्त वानर कुल में श्रेष्ठ हनुमान हे सर्व शास्त्रविशारद ।
अप्सर अप्सरसाम् श्रेष्ठा विख्याता पुंजिकस्थला ।
अंजना इति ॥४-६६-८॥
अप्सराओं में श्रेष्ठ पुञ्जिकस्थली नाम की अप्सरा जिनका दूसरा नाम अन्जना है ।
त्वं हि देववरिष्ठस्य मारुतस्य महात्मनः । पुत्रस्तस्यैव वेगेन सदृशः कपिकुञ्जर ॥५-१-१२१॥
फिर तुम देवताओं में श्रेष्ठ पवन देव के पुत्र हो हे कपिकुञ्ज वेग में भी तुम पिता के सामान ही हो ।
विष्णुना प्रेषितो वापि दूतो विजयकाङ्क्षिणा ।
न हि ते वानरं तेजो रूपमात्रं तु वानरम् ।। ५/५०/१०
रावण द्वारा हनुमान ब्याख्या ।
विजयाकांक्षी विष्णु के दूत बन कर आये हो तो ठीक ठीक कह दो क्यों कइ तुम रूप से तो वानार जान पड़ते हो परन्तु तुम्हारा विक्रम तो वानरों जैसा है नही ।
रावण जैसे त्रिकाल ज्ञाता भी ये समझ चुके थे की ये देव पुत्र ही हो सकता है साधारण वानर हो नही सकता ।
प्रस्तुति ---------- शैलेन्द्र सिंह
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