धर्मस्य_सूक्ष्मतवाद्_गतिं (महाभारत )
धर्म की गति अति सूक्ष्म है अतः हम जैसे अल्पज्ञ अल्पश्रुत पूर्णतः धर्म बिषयो के गूढ़ रहस्य को समझ पाने में अक्षम है बस हम अपनी बुद्धि बल से ही बिषयो का अन्वेषण करते फिरते है धर्म के गूढ़ रहस्यों के बिषय में पूर्णप्रज्ञ मनीषी जन ही समझ सकते है
ठीक ऐसा ही रहस्य यज्ञशेनी द्रोपदी का है ।
द्रोपदी अयोनिज है जिस कारण उनका जीवन भी दिब्य और रहस्यपूर्ण है क्यो की उनका आविर्भाव यज्ञवेदी से हुआ है जिस कारण उनका एक नाम यज्ञशेनी भी हुआ ।
#कुमारी_चापि_पाञ्चाली_वेदिमध्यात्समुत्थिता। (महाभारत आदिपर्व)
जिनका जन्म ही यज्ञवेदी से हुआ हो उनकी पवित्रता पर सन्देह नही किया जा सकता ।
राजा द्रुपद की कन्या होने से उनका एक नाम द्रौपदी भी पड़ा
साथ ही द्रुपद पाञ्चाल देश का राजा था जिस कारण द्रौपदी का एक नाम पाञ्चाली भी पड़ा ।
द्रौपदी इंद्र की ही पत्नी शचीपति थी
#शक्रस्यैकस्य_सा_पत्नी_कृष्णा_नान्यस्य_कस्यचित् ।(मार्कण्डेय पुराण ५/२५)
#पूर्वमेवोपदिष्टा_भार्या_यैषा_द्रौपदी (महाभारत अनुशाशन पर्व १९५/३५)
प्रजा के कल्याणार्थ महादेव की आज्ञा से ही इंद्र पत्नी सहित मनुष्य योनि में अवतरित हुए थे ।
#तेजोभागैस्ततो_देवा_अवतेरुर्दिवो_महीम् ।
#प्रजानामुपकारार्थं_भूभारहरणाय_च (मार्कण्डेय पुराण ५/.२०)
#गमिष्यामो_मानुषं_देवलोकाद् (महाभारत आदिपर्व १९५/२६)
देवता :-- दिब्य बिभूतियो को धारण करने के कारण ही वे देवता कहलाते है ।
वे अपनी सङ्कल्प शक्ति से कई प्रकार के रूप धारण करने में सक्षम होते है ।
योगीश्वराः शरीराणि कुर्वन्ति बहुलान्यपि (मार्कण्डेय पुराण ५.२५॥)
पांचों पाण्डव युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव ये सभी के सभी इंद्र के ही अंश से उतपन्न हुए थे स्वयं इंद्र ही अपने आप को पांच अंशो में विभक्त कर (युधिष्ठिर,भीम,अर्जुन,नकुल,सहदेव,) के रूप में मनुष्य योनि में अवतरित हुए थे ।
#शक्रस्यांस_पाण्डवा: (महाभारत आदिपर्व १९५/ ३४)
#एवमेते_पाण्डवा_सम्वभुवुर्ये_ते_राजन्_पूर्वेमिन्द्रा (महाभारत आदिपर्व १९५/३५)
#पञ्चधा_भगवानित्थमवतीर्णः_शतक्रतुः॥ (मार्कण्डेय पुराण ५/२३)
अतः पांचों पाण्डव पांच हो कर भी तात्विक दृष्टि से एक ही थे ऐसे में द्रोपदी पर आक्षेप गढ़ने वाले तो आक्षेप गढ़ सकते है परन्तु गूढ़ रहस्यों को समझ पाने में अक्षम होते है ।
शचीपति जो पूर्व में इंद्र की पत्नी थी वही द्रौपदी रूप में यज्ञवेदी से उतपन्न हुई थी।
शास्त्रो में द्रौपदी की दिब्यरूपा कहा है दिब्य रूप की दिब्यता भी अलौकिक होगी जिसे समझ पाना हम जैसे सर्वसाधारणो के लिए अगम्य है ।
#द्रौपदी_दिव्यरूपा (महाभारत आदिपर्व /१९५/३५)
द्रोपदी इंद्र के पांचों अंश पाण्डव को वरण इस लिए करती है की वह पांचों पाण्डव स्वयं इंद्र ही थे जो स्वयं दिब्य रूपा हो वे इस रहस्य से कैसे अज्ञात रह सकती है
अतः द्रौपदी पांच पांडवो की पत्नी होते हुए भी एक ही इंद्र की पत्नी थी ।
देवताओं की दिब्य लीलाओं को भला कौन समझे क्या रहस्य है और क्या नही ।
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तेजोभागैस्ततो देवा अवतेरुर्दिवो महीम् ।
प्रजानामुपकारार्थं भूभारहरणाय च॥५.२०॥
यदिन्द्रदेहजं तेजस्तन्मुमोच स्वयं वृषः ।
कुन्त्या जातो महातेजास्ततो राजा युधिष्ठिरः॥५.२१॥
बलं मुमोच पवनस्ततो भीमो व्यजायत ।
शक्रवीर्यार्धतश्चैव जज्ञे पार्थो धनञ्जयः॥५.२२॥
उत्पन्नौ यमजौ माद्रयां शक्ररूपौ महाद्युती ।
पञ्चधा भगवानित्थमवतीर्णः शतक्रतुः॥५.२३॥
तस्योत्पन्ना महाभागा पत्नी कृष्णा हुताशनात्॥५.२४॥
शक्रस्यैकस्य सा पत्नी कृष्णा नान्यस्य कस्यचित् ।
योगीश्वराः शरीराणि कुर्वन्ति बहुलान्यपि॥५.२५॥
पञ्चानामेकपत्नीत्वमित्येतत् कथितं तव ।
श्रूयतां बलदेवोऽपि यथा यातः सरस्वतीम्॥५.२६॥(मार्कण्डेय पुराण)
शैलेन्द्र सिंह
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