#माता_शबरी_शंका_समाधान
श्रीरामचन्द्र आदि रामायण के बिषय में प्रथम प्रमाण वाल्मीकि रामायण का ही माना जाता है देवऋषि नारद तथा ब्रह्मादि देवताओं के आशीर्वचन से महर्षि वाल्मीकि को तपोबल से श्रीरामचन्द्र ,माता सीता दसरथ,आदि राक्षसों का प्रकट और गुप्त चरित्र साक्षात्कार हुआ था ।जिसको उन्होंने श्लोकबद्ध कर इस महा काब्य को जनकल्याणर्थ प्रकाशित किया ।
रामस्य चरितम् कृत्स्नम् कुरु त्वम् ऋषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ॥१-२-३२॥
वृत्तम् कथय धीरस्य यथा ते नारदात् श्रुतम् ।
रहस्यम् च प्रकाशम् च यद् वृत्तम् तस्य धीमतः ॥१-२-३३॥
रामस्य सह सौमित्रे राक्षसानाम् च सर्वशः ।
वैदेह्याः च एव यद् वृत्तम् प्रकाशम् यदि वा रहः ॥१-२-३४॥
तत् च अपि अविदितम् सर्वम् विदितम् ते भविष्यति ।
न ते वाक् अनृता काव्ये काचित् अत्र भविष्यति ॥
कुरु रामकथाम् पुण्याम् श्लोक बद्धाम् मनोरमाम् ।१-२-३५॥
राम लक्ष्मण सीताभिः राज्ञा दशरथेन च ।
स भार्येण स राष्ट्रेण यत् प्राप्तम् तत्र तत्त्वतः ॥१-३-३॥
हसितम् भाषितम् च एव गतिर्यायत् च चेष्टितम् ।
तत् सर्वम् धर्म वीर्येण यथावत् संप्रपश्यति ॥१-३-४॥
स्त्री तृतीयेन च तथा यत् प्राप्तम् चरता वने ।
सत्यसन्धेन रामेण तत्सर्वम् च अन्ववेक्षत ॥१-३-५॥
ततः पश्यति धर्मात्मा तत् सर्वम् योगमास्थितः ।
पुरा यत् तत्र निर्वृत्तम् पाणाव आमलकम् यथा ॥१-३-६॥
इसी महाकाब्य में माता शबरी का भी वर्णन है समय समय पर माता शबरी को लेकर लोग भांति भांति से अपने बिचारो को प्रकट किया और करते भी रहेंगे ।की माता शबरी शुद्रा थी ,तो कोई कहता है माता शबरी भील जाती से थी ,मुण्डे मुण्डे मति:भिन्ना ।
उसी बिषय को लेकर हम यहाँ बिचार करेंगे ।
वाल्मीकि रामायण में माता शबरी मतङ्ग मुनि के आश्रम में गुरुओं और ऋषियों की सेवाशुश्रूषा करने वाली बताई गई है ।
●--गुरु शुश्रूषा सफला चारुभाषिणि (वा०रा०आ०७४/९)
आश्रम शब्द अपने आप में शुचिता ,मर्यादानुकूल आचरण, वेदादि विद्याओं का अध्यय अध्यापन का स्थान माना जाता है ऐसे में माता शबरी के आश्रम में निवास होने का अर्थ यही होता है कि उनका आचरण मर्यादानुकूल ,शुचिता, अध्ययनध्यापन के विद्याओं में बाधा न पड़े होना सिद्ध होता है ।
●--धर्मसूत्र तथा स्मृतियों में कहा गया है कि ।
#श्मशाने_चाध्य्यनं_वर्जयेत_शुद्रायां_तू_यदा_परस्परं_भवति
#तदैवाSनध्याय_न_समानागरे_नापिशम्याप्रसादिति ।
●--श्मशानवच्छुद्रपतितौ (आपस्तम्ब १/३/९/९)
●--समानागार इत्येक (आपस्तम्ब धर्मसूत्र १/३/९/१०)
●--शुद्रायां तू प्रेक्षणप्रतिपेक्षणयोरेवाSनध्याय (आपस्तम्ब धर्मसूत्र १/३/९/११)
ऐस में माता शबरी का शुद्रा अथवा चाण्डाल होना इस मत का यहाँ ध्वंस हो जाता है ऋषि महर्षि गण पूर्णप्रज्ञ होते थे ऐसे में उन्हें अपने आश्रम की शुचिता अशुचिता का बोध कैसे न हो की आश्रम में किस किस कुलगोत्रादि के लोग रहे ।
अब आगे आते है
वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड मे माता शबरी को सिद्धा तपस्वी कहा गया है ।
●--तापसी पृष्ठा सा सिद्धा सिद्धसम्मता (वा०रा०आ७४/१०)
सिद्धियां उन्हें ही प्राप्त हो सकती है जो अपने वर्णाश्रमधर्म का पालन अक्षरसः करता हो ।
●--स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।(गीता१८/४५)
●--कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः। (गीता ३/२०)
अपने-अपने कर्ममें तत्परतापूर्वक लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि-को प्राप्त कर लेता है महाराज जनकादि भी अपने वर्णोचित कर्म से ही सिद्धियां प्राप्त की थी ।
अब यहाँ प्रसंग यह भी उठ सकता है कि माता शबरी हो न हो क्षत्रिय कुल अथवा वैश्य कुल से होगी इस लिए उन्हें भी सिद्धियां प्राप्त हुई ।
परन्तु वाल्मीकि रामायण में माता शबरी के बिषय में जन्मादि वृतान्त का अभाव है जिससे इसका निर्णय भी कठिन हो जाता है ऐसे में श्रुतिस्मृतिआदि ग्रन्थों में ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वैश्य,बिशेष को लेकर आये हुए बिषयों पर बिचार करना आवश्यक हो जाता है ।
जैसे
●---गुरुर्हि सर्वभूतानां ब्राह्मणः (महाभारत आदिपर्व)
●---अध्यापनं याजनं च विशुद्धाच्च प्रतिग्रहः ।।
विप्रस्य जीविका प्रोक्ता (स्कन्दपुराण वैष्णवखण्ड २०/२८)
●--उपनीय तु यः शिष्यं वेदं अध्यापयेद्द्विजः ।
सकल्पं सरहस्यं च तं आचार्यं प्रचक्षते । । (मनुस्मृति २/१४०)
इस न्याय से ब्राह्मण से भिन्न अन्य कोई भी वर्ण का अधिकार गुरु ,आचार्यत्व तथा अध्यापन आदि में अधिकार नही ठीक वैसे ही कृष्णमृगचर्म का धारण करना केवल मात्र ब्राह्मणो का ही अधिकार है ।
क्षत्रिय,वैश्य के लिए अलग अलग वस्त्रों का विधान है ।
●--हारिणमैणेयं वा कृष्णं ब्राह्मणस्य (आपस्तम्ब धर्मसूत्र१/३/३)
●--कार्ष्णरौरवबास्तानि चर्माणि ब्रह्मचारिणः ।
वसीरन्नानुपूर्व्येण शाणक्षौमाविकानि च । । (मनुस्मृति २.४१ )
माता शबरी को वाल्मीकि रामायण में कृष्णमृगचर्म धारण करने वाली बताई गई है ।
●--जटिला चीरकृष्णाजिनाम्बरा (वा०रा०७४/३२)
ऐसे में आप सभी पाठकगण बिचार करें कि माता शबरी किस वर्ण से थी
यदि मुझ अल्पज्ञ से कोई त्रुटि हो तो विद्जन छमा करें
श्रीरामचन्द्र आदि रामायण के बिषय में प्रथम प्रमाण वाल्मीकि रामायण का ही माना जाता है देवऋषि नारद तथा ब्रह्मादि देवताओं के आशीर्वचन से महर्षि वाल्मीकि को तपोबल से श्रीरामचन्द्र ,माता सीता दसरथ,आदि राक्षसों का प्रकट और गुप्त चरित्र साक्षात्कार हुआ था ।जिसको उन्होंने श्लोकबद्ध कर इस महा काब्य को जनकल्याणर्थ प्रकाशित किया ।
रामस्य चरितम् कृत्स्नम् कुरु त्वम् ऋषिसत्तम ।
धर्मात्मनो भगवतो लोके रामस्य धीमतः ॥१-२-३२॥
वृत्तम् कथय धीरस्य यथा ते नारदात् श्रुतम् ।
रहस्यम् च प्रकाशम् च यद् वृत्तम् तस्य धीमतः ॥१-२-३३॥
रामस्य सह सौमित्रे राक्षसानाम् च सर्वशः ।
वैदेह्याः च एव यद् वृत्तम् प्रकाशम् यदि वा रहः ॥१-२-३४॥
तत् च अपि अविदितम् सर्वम् विदितम् ते भविष्यति ।
न ते वाक् अनृता काव्ये काचित् अत्र भविष्यति ॥
कुरु रामकथाम् पुण्याम् श्लोक बद्धाम् मनोरमाम् ।१-२-३५॥
राम लक्ष्मण सीताभिः राज्ञा दशरथेन च ।
स भार्येण स राष्ट्रेण यत् प्राप्तम् तत्र तत्त्वतः ॥१-३-३॥
हसितम् भाषितम् च एव गतिर्यायत् च चेष्टितम् ।
तत् सर्वम् धर्म वीर्येण यथावत् संप्रपश्यति ॥१-३-४॥
स्त्री तृतीयेन च तथा यत् प्राप्तम् चरता वने ।
सत्यसन्धेन रामेण तत्सर्वम् च अन्ववेक्षत ॥१-३-५॥
ततः पश्यति धर्मात्मा तत् सर्वम् योगमास्थितः ।
पुरा यत् तत्र निर्वृत्तम् पाणाव आमलकम् यथा ॥१-३-६॥
इसी महाकाब्य में माता शबरी का भी वर्णन है समय समय पर माता शबरी को लेकर लोग भांति भांति से अपने बिचारो को प्रकट किया और करते भी रहेंगे ।की माता शबरी शुद्रा थी ,तो कोई कहता है माता शबरी भील जाती से थी ,मुण्डे मुण्डे मति:भिन्ना ।
उसी बिषय को लेकर हम यहाँ बिचार करेंगे ।
वाल्मीकि रामायण में माता शबरी मतङ्ग मुनि के आश्रम में गुरुओं और ऋषियों की सेवाशुश्रूषा करने वाली बताई गई है ।
●--गुरु शुश्रूषा सफला चारुभाषिणि (वा०रा०आ०७४/९)
आश्रम शब्द अपने आप में शुचिता ,मर्यादानुकूल आचरण, वेदादि विद्याओं का अध्यय अध्यापन का स्थान माना जाता है ऐसे में माता शबरी के आश्रम में निवास होने का अर्थ यही होता है कि उनका आचरण मर्यादानुकूल ,शुचिता, अध्ययनध्यापन के विद्याओं में बाधा न पड़े होना सिद्ध होता है ।
●--धर्मसूत्र तथा स्मृतियों में कहा गया है कि ।
#श्मशाने_चाध्य्यनं_वर्जयेत_शुद्रायां_तू_यदा_परस्परं_भवति
#तदैवाSनध्याय_न_समानागरे_नापिशम्याप्रसादिति ।
●--श्मशानवच्छुद्रपतितौ (आपस्तम्ब १/३/९/९)
●--समानागार इत्येक (आपस्तम्ब धर्मसूत्र १/३/९/१०)
●--शुद्रायां तू प्रेक्षणप्रतिपेक्षणयोरेवाSनध्याय (आपस्तम्ब धर्मसूत्र १/३/९/११)
ऐस में माता शबरी का शुद्रा अथवा चाण्डाल होना इस मत का यहाँ ध्वंस हो जाता है ऋषि महर्षि गण पूर्णप्रज्ञ होते थे ऐसे में उन्हें अपने आश्रम की शुचिता अशुचिता का बोध कैसे न हो की आश्रम में किस किस कुलगोत्रादि के लोग रहे ।
अब आगे आते है
वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड मे माता शबरी को सिद्धा तपस्वी कहा गया है ।
●--तापसी पृष्ठा सा सिद्धा सिद्धसम्मता (वा०रा०आ७४/१०)
सिद्धियां उन्हें ही प्राप्त हो सकती है जो अपने वर्णाश्रमधर्म का पालन अक्षरसः करता हो ।
●--स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।(गीता१८/४५)
●--कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः। (गीता ३/२०)
अपने-अपने कर्ममें तत्परतापूर्वक लगा हुआ मनुष्य सम्यक् सिद्धि-को प्राप्त कर लेता है महाराज जनकादि भी अपने वर्णोचित कर्म से ही सिद्धियां प्राप्त की थी ।
अब यहाँ प्रसंग यह भी उठ सकता है कि माता शबरी हो न हो क्षत्रिय कुल अथवा वैश्य कुल से होगी इस लिए उन्हें भी सिद्धियां प्राप्त हुई ।
परन्तु वाल्मीकि रामायण में माता शबरी के बिषय में जन्मादि वृतान्त का अभाव है जिससे इसका निर्णय भी कठिन हो जाता है ऐसे में श्रुतिस्मृतिआदि ग्रन्थों में ब्राह्मण ,क्षत्रिय,वैश्य,बिशेष को लेकर आये हुए बिषयों पर बिचार करना आवश्यक हो जाता है ।
जैसे
●---गुरुर्हि सर्वभूतानां ब्राह्मणः (महाभारत आदिपर्व)
●---अध्यापनं याजनं च विशुद्धाच्च प्रतिग्रहः ।।
विप्रस्य जीविका प्रोक्ता (स्कन्दपुराण वैष्णवखण्ड २०/२८)
●--उपनीय तु यः शिष्यं वेदं अध्यापयेद्द्विजः ।
सकल्पं सरहस्यं च तं आचार्यं प्रचक्षते । । (मनुस्मृति २/१४०)
इस न्याय से ब्राह्मण से भिन्न अन्य कोई भी वर्ण का अधिकार गुरु ,आचार्यत्व तथा अध्यापन आदि में अधिकार नही ठीक वैसे ही कृष्णमृगचर्म का धारण करना केवल मात्र ब्राह्मणो का ही अधिकार है ।
क्षत्रिय,वैश्य के लिए अलग अलग वस्त्रों का विधान है ।
●--हारिणमैणेयं वा कृष्णं ब्राह्मणस्य (आपस्तम्ब धर्मसूत्र१/३/३)
●--कार्ष्णरौरवबास्तानि चर्माणि ब्रह्मचारिणः ।
वसीरन्नानुपूर्व्येण शाणक्षौमाविकानि च । । (मनुस्मृति २.४१ )
माता शबरी को वाल्मीकि रामायण में कृष्णमृगचर्म धारण करने वाली बताई गई है ।
●--जटिला चीरकृष्णाजिनाम्बरा (वा०रा०७४/३२)
ऐसे में आप सभी पाठकगण बिचार करें कि माता शबरी किस वर्ण से थी
यदि मुझ अल्पज्ञ से कोई त्रुटि हो तो विद्जन छमा करें
नारायण नारायण श्रीहरि। बहुत सुंदर।
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