#प्रश्न:---श्राद्ध क्या है ?
#उत्तर:----पितर पितृ (पा.) रक्षण करना इस धातुसे पितृ शब्द की उत्पत्ती हुई है। अत: पितर ही अपने कुलकी रक्षा करता है इसलिए श्राध्दादि कर्मसे उन्हे संतूष्ट करना चाहिए।
श्रुतिस्मृति सम्मत वचनों से मृत पितरों के निमित पितृदेवो के पूजनार्थ होम पिण्डदान आदि ब्राह्मणभोजन रूप जो सत्कर्म है वही शास्त्रोक्त श्राद्ध शब्द का मुख्य भावार्थ है प्रजा के कल्याणार्थ श्रुतिस्मृति ने जिस शुभकर्म का उपदेश किया उसी का नाम श्राद्ध पितृयज्ञ है ।जैसे देवयज्ञ में इन्द्रादि देवताओ का पूजन सत्कार होता है और आहवनीय अग्नि उनके तृपत्यर्थ होम का आधार है वैसे ही इस पितृयज्ञ में पितृदेव का पूजन सत्कार और उनके तृपत्यर्थ होम का आधार अग्नि की जगह ब्राह्मणो का मुख है ।
श्राद्धं वा पितृयज्ञ स्यात् (कात्यायन स्मृति १३/४)
श्राद्धं तत्कर्म शास्त्रत: (अमरकोश २/७/२१)
अथर्ववेद में मृत पितरों को तृप्ति (खिलाने) के लिए आह्वानार्थ अग्नि से प्रार्थना की गई है
ये निखाता ये परोप्ता ये दग्धा ये चोद्धिताः ।
सर्वांस्तान् अग्न आ वह पितॄन् हविषे अत्तवे ॥(अथर्ववेद १८/२/३४)
महाभारत आदिपर्व में भी अग्नि की उक्ति है
वेदोक्तेन विधानेन मयि यद्धूयते हविः।
देवताः पितरश्चैव तेन तृप्ता भवन्ति वै।।
देवताः पितरश्चैव भुञ्जते मयि यद्भुतम्।
देवतानां पितॄणां च मुखमेतदहं स्मृतम्।।
मन्मुखेनैव हूयन्ते भुञ्जते च हुतं हविः।।(महाभारत आदिपर्व ७/७-१०-११)
#प्रश्न :--- श्राद्ध में पितरों की तृप्ति हेतु हम ब्राह्मणो के ही मुख में कव्य क्यो दे अग्नि को क्यो नही ?
#उत्तर :-- ब्राह्मणो के हव्य कव्य में अग्नि के बाद उन्ही का अधिकार है क्यो की ब्राह्मण स्वयं अग्नि स्वरूप है
विद्यातपःसमृद्धेषु हुतं विप्रमुखाग्निषु (मनुस्मृति ३/९८)
अग्नि और ब्राह्मण की सहोदरता में स्वयं वेद ही प्रमाण है
ब्राह्मणोSस्य मुखमासीद् (ऋग्वेद)
मुखादग्निरजायत (यजुर्वेद)
इसलिए शास्त्रो में ब्राह्मणो को आग्नेय या अग्नि कहा गया है ।तभी मीमांसा दर्शन के (१/४/२४) सूत्र के साबर भाष्य में अग्नयो वै ब्राह्मणः पर प्रकाश डालने के लिए इस प्रकार प्रश्नोत्तर प्रक्रिया की गई है ।
(प्रश्न:-- आग्नेयेषु (ब्राह्मणेषु) अग्नेयादिशब्दा:केन्प्रकारेण ?
(उ ० :-- गुणवादेन ।(प्रश्न ) को गुणवाद: (उ०) अग्नि सम्बन्ध:
(प्रश्न) कथम् (उ०) एकजातीयत्वाद् (अग्निब्राह्मणयो:) (प्रश्न) किमेकजातीयत्वं (उ०) प्रजापतिरकामयत-- प्रजा:सृजयमिति स मुखतसि्त्रवृतं निरभिमित तमग्निर्देवता अन्वसृज्यत.....ब्राह्मणो मनुष्याणां तस्मात ते मुख्या: मुखतोSन्वसृज्यन्त यहाँ पर अग्नि और ब्राह्मण की एकजातीय स्प्ष्ट शब्दो मे कहि गयी है ।
स्मृतियों में कहा गया है कि अग्नि न हो तो ब्राह्मणो को ही कव्य दे दे ।
अग्न्यभावे तु विप्रस्य पाणावेवोपपादयेत् ।
यो ह्यग्निः स द्विजो विप्रैर्मन्त्रदर्शिभिरुच्यते । ।(मनुस्मृति ३/२१२)
यह कहकर यहाँ हेतु दिया गया है । इस लिए श्राद्ध हेतु यहाँ अग्नि वा ब्राह्मणो को ही खिलाना लिखा है ।
गां विप्रं अजं अग्निं वा प्राशयेदप्सु वा क्षिपेत् (मनुस्मृति३/२६०)
प्रश्न :--- हम मनुस्मृति को ही प्रमाण क्यो माने ??
उत्तर:-- क्यो की शास्त्रो में मनुस्मृति को ही प्रमाण माना गया है ऐसा स्वयं वेदवचन है ।
यद् वै किञ्च मनुरवदत् तद् भेषजम् (तैत्तिरीय सं०२/२/१०/२)
मनु र्वै यत्किञ्चावदत्तत्भेषज्यायै (ताण्ड्य-महाब्रा०२३/१६/१७)
अथापि निष्प्रचमेव मानव्यो हि प्रजाः।" (ऋग्वे० १/८०/१६) ।
और ऐसा केवल मनुस्मृति ही क्यो स्वयं वेद में ही उपदिष्ट है ।
ब्राह्मणो ह वा इमम् अग्निं वैश्वानरं बभार (गोपथ ब्राह्मण १/२/२०)
अग्नि ब्राह्मणामाविवेश (अथर्ववेद १९/५९/२)
वैश्वानरः प्रविशत्यतिथिर्ब्राह्मणो (काठोपनिषद् )
इसका ऐतिहासिक प्रमाण महाभारत में भी देखना चाहिए निषाद के अचारवाले ब्राह्मण को निगलने के समय गरुण के कण्ठ में अग्निदाह होने लगा था ।
प्रश्न :-- पितृपक्ष कृष्ण पक्ष में क्यो करते है शुक्लपक्ष में क्यो नही ??
उत्तर :-- क्यो की कृष्णपक्ष ही पितरों का दिन होता है और शुक्लपक्ष पितरों का रात ।
कर्मचेष्टास्वहः कृष्णः शुक्लः स्वप्नाय शर्वरी । ।(मनुस्मृति १/६६)
#प्रश्न :--- श्राद में केवल पुत्रो का ही अधिकार क्यो ?
#उत्तर :--- क्यो की पुत्र ही अपने पितरों को नरक से रक्षा करता है पुत्र श्राद्ध के जरिये अपने पितरों को क्लेशसागर से उद्धार करता है ।
पुत्र इति पुत-नामकात् नरकात् त्रायते। ऐतरेयब्राह्मणे पुत्रस्य भव्या प्रशंसा समाजे वीरसन्ततेः मूल्याङ्कनाय पर्यासममन्यत । पितरः पुत्रैः क्लेशसागराद् उद्धत्तुं समर्थाः भवन्ति । पुत्रः अात्मनः जन्म गृहीत्वा आत्मस्वरूपमेव भवति । सोऽन्नेन पूरिताः तरिः भवति यः संसृतिसागरात्समुद्धर्तुं नितान्तः समर्थो भवति — ‘स वै लोकोऽवदावदः ।' पुत्रः स्वर्गलोकस्य प्रतीको भवति, तस्य निन्दा कदापि न कर्त्तव्या । ‘ज्योतिर्हि पुत्रः परमे व्योमन्’, ‘नापुत्रस्य लोकोऽस्ति' इत्येतानि श्रुतिवाक्यानि पुत्रस्य सामाजिकमूल्यस्य परिकल्पनायाः कतिपयानि निदर्शनान्येव सन्ति ।
#प्रश्न:--श्राद्ध क्यो किया जाय ?
#उत्तर:--पिण्ड और जलदान की क्रिया के लोप हो जाने से पितर पतित हो जाते है ।
पतन्ति पितरो ह्येषांलुप्तपिण्डोदकक्रियाः(गीता १/४२)
शैलेन्द्र सिंह
पाठकगण से अनुरोध है कि यदि कोई त्रुटि हो तो अवश्य सूचित करें ।
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