वादी:--हनुमान जी को हम वेदों का विद्वान और उच्च
कोटि घोषित करने का प्रयास कर रहे हैं आप उन्हें
बन्दर बनाना चाहते हैं। आप विद्वान श्रेष्ठ हैं , यह
बताये की हनुमान जी का ज्यादा मान पशु बन्ने में हैं
अथवा विद्वान मनुष्य बनने में हैं।
ईश्वर ,देव और उपदेव में क्या अंतर हैं ? शास्त्र से प्रमाण करें
समाधान:--- हनुमानजी का ज्यादा मान पशु बन्ने में हैं अथवा विद्वान
मनुष्य बनने में हैं।" --इसका उत्तर हमें स्वयं
महर्षि वाल्मीकि दे रहे हैं , रावण वध के विषय में
देवों की प्रार्थना पर ब्रह्मा जी ने स्वयं देवताओं
को वानर रूप में अपने समान पराक्रमी और बुद्धिमान
पुत्रों को उत्पन्न करने की आज्ञा दी --सृजध्वं
हरिरूपेण पुत्रान्स्तुल्यपराक्रमान् --वा.रा.
बा.का.१७/६,उन वानर वीरों में हनुमान जी पवन देव के
औरस पुत्र हुए --" मारुतस्यौरसः श्रीमान् हनूमान् नाम
वानरः " -१७/१६, ये सबसे अधिक बुद्धिमान और
बलवान हैं --" सर्व वानर मुख्येषुबुद्धिमान्
बलवानपि-१७/१७,इस प्रकार वहां अनेक देव
योनियों की स्त्रियों से वानरों की उत्पत्ति का वर्णन
है ,वानर राज सुग्रीव बालि | ये आज कल जैसे वानर नही थे ||
जहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण की गति नही वहां परम आप्त
महर्षि वाल्मीकि के अतिरिक्त कौन है जो इस विषय
पर अन्यथा कल्पना करने का दुस्साहस कर सके |
अतः ये वानर ही थे , इन्हें हम न तो वानर बनाना चाहते हैं न मनुष्य ही | ये जो थे और हैं वह महर्षि के
वचनों से स्पष्ट है |आप्त पुरुषों के वचन से विरुद्ध
कोई कल्पना सत्य नही हो सकती , वह केवल
कल्पना ही रहेगी |
Like · 3 · Yesterday at 15:55
आचार्य सियारामदास नैयायिक
भैया विवेक जी आपने पूंछा कि--" ? शास्त्र प्रमाण के साथ स्पष्ट कीजिये।"--यहाँ पर मैं आपसे
इतना ही कहना चाहता हूँ कि जब वाल्मीकि रामायण
जैसे प्रामाणिक इतिहास
जो सभी ऋषियों को प्रमाणतया मान्य है --
उसी का अपलाप करके हनुमान जी के स्वरूप को विकृत
करने का कुत्सित प्रयास किया गया तो पहले हमें यह
पता चले कि शास्त्र प्रमाण से यहाँ क्या अभिप्रेत
है ? जो सर्व मान्य था उसका अपलाप कर दिया गया |
विकृत करने वाले किसे शास्त्र मानते हैं ?
| क्या वाल्मीकि रामायण शास्त्र नही ? क्या उससे
समाज में किसके प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए --
यह शिक्षा नही मिलती ? जिन हनुमान
जी को आततायी दुराचारी राक्षस और स्वयं रावण
तथा ग्रंथकार महर्षि वाल्मीकि आदि उद्घोष पूर्वक
वानर कहकर उनके चरित्र का वर्णन किये , |
उनके ऊपर आक्षेप कर्ता ने तो कोई प्रमाण
नही दिया ,और हमने जो प्रमाण प्रस्तुत किया -उस
पर पुनः प्रमाण ? रही बात उपदेव की तो जैसे कुम्भ
और उपकुम्भ ये दो शब्द हैं | इनमे कुम्भ सब समझते
हैं पर उपकुम्भ ,व्याकरण का मर्मज्ञ ही समझ
सकता है --कुम्भस्य समीपम् उपकुम्भाम--कुम्भ के
जो समीप हो उसे उपकुम्भ कहते हैं |
Like · 2 · Yesterday at 16:16
आचार्य सियारामदास नैयायिक
इन्हें पशु समझने की भूल नही करनी चाहिए ,क्योंकि "
ज्ञानेन हीनः पशुभिः समानः -कहा गया है , और ये
वानर के आकार में होते हुए भी ज्ञान संपन्न हैं |
इसीलिये तो रावण भी बोल पड़ा की मैं उसे
वानर नही मानता , " नह्यहं तं कपिं मन्ये
कर्मणा प्रति तर्कयन्--वा. रा. सु. का.-४६/६,ओर
भी --" नैवाहं तं कपिं मन्ये यथेयं
प्रस्तुता कथा --४६/७, मैं उसे वानर नही मानता जिस
प्रकार की घटना उसके और राक्षसों के विषय में
प्रस्तुत की गयी है | रावण की यह
स्थिति है तो आज कल के लोग हनुमान जी की उस
अद्भुत क्षमता को देखकर उन्हें वानर मानने को तैयार
न हों तो क्या आश्चर्य ?
देखिये --" तुम्हारा तेज वानर का नही है ,तुम केवल रूप
मात्र से वानर हो " --" नहि ते वानरं तेजो रूप मात्रं
हि वानरम् "|--सु,का,५०/१०, अब हनुमान
जी अपना परिचय देते हुये कहते हैं --" यह मेरी जाति है
अर्थात् मैं वानर जाति का हूँ ,मैं वानर हूँ ओर
यहाँ आया हूँ--" जातिरेव मम
त्वेषा वानरोsहमिहागतः "--सु .का . ५०/१४,अब इस
सुस्पष्ट वचन से जिसको हनुमान जी के कपि रूप में
संदेह रह जाय उसे ब्रह्मा जी भी नही समझा सकते!
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