Wednesday, 9 November 2016

दास शब्द शुद्र का ही वाचक नही है भक्त और सेवक को भी दासान्त नाम से सम्बोधन किया जाता है

नाम वैष्णवहेतुत्वम मुखमित्येतदुच्यते योजयेन्नाम दासान्तं भगवन्नामपूर्वकम् ।। ( पाराशरीय धर्मशास्त्र उत्तरखण्ड अध्याय 2 श्लोक 49 )
यह नाम संस्कार वैष्णव का मुख्य कारण कहा है इससे भगवन्नामपूर्वक दासान्त नाम सब का रखना चाहिए
और बृद्धहारित स्मृति में कहा है की
दद्यात्तन्नाम दासान्तं भगवन्नामपूर्वकम् (बृद्धहारित स्मृति)
आचार्य भगवन्नाम पूर्वक दासान्त नाम शिष्य के लिए दे ।
दासभुतमिदं तस्य ब्रह्माद्यम सकलंजगत् (पद्मपुराण उत्तरखण्ड ६ अध्याय २२६ श्लोक ९२)
परमात्मा के ब्रह्मादिक समस्त दास है । दास केवल शुद्रो को ही नही कहते सेवक को भी कहते है क्यों की अमरकोश में लिखा है कि
(दासः सेवकशूद्रयो ) अमरकोश
दास शब्द सेवक और शूद्र दोनों का वाचक है नाम संस्कार में दास नाम सेवक का ही ग्रहण होता है  ।

दासो ऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः । हनुमान् शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः ।।( बाल्मीकि रामायण  ५.४३.९।। )
शुद्ध कर्म करने वाले कौशलयेन्द्र श्रीराम चन्द्र जी का मै सेवक हूँ सत्रुओं की सेना को मारनेवाला पवनसुत हनुमान हूँ ।
श्रीपद्मनाभ पुरुषोत्तम देहि दास्यम ( पाण्डवगी० श्लोक२५)
हे पद्मनाभ हे पुरुषोत्तम मेरे लिए आप अपनी दासता को दीजिये
दास्येन च गृहाण माम् (नारद प०)
अपनी दासता के लिए मुझे ग्रहण कीजिये ।
दासभूताःस्वतःसर्वे ह्यात्मन:परमात्मनः
नान्यथा लक्षणं तेषां बन्धे च मोक्ष विद्यते (पाराशर)
सब जीव निश्चय कर के परमात्मा के स्वतः सिद्ध दासः है उन जीवात्माओं के बन्धन या मोक्ष में कोई और लक्षण नही ।
दास्यमेव परं धर्म दास्यमेव परम् हितम दास्येनैव भवेन्मुक्तिरन्यथा निरयं वज्रेत ( हारित्स्मृति)
भागवत की दासता सर्वश्रेष्ठ धर्म है तथा दासता ही श्रेष्ठ हित है और दासता से ही मुक्ति होती है तथा भगवन की दासता न होने से जीव नरक को प्राप्त होता है ।
ब्रह्मशुत्र में लिखा है कि
ब्रह्मदासा ब्रह्मदासा ब्रह्मैवेमेकितवा ( ब्रह्मशुत्र)
जीव ब्रह्म का दास है  सेवक है और ये कितव है ।
और देखिये यजुर्वेद संहिता में लिखा है ।
यस्यायं विश्व आर्यो दासा (यजुर्वेद० अ ०३३० मण्डल०८२)
जिस परमात्मा के यह संसार और श्रेष्ठ ब्राह्मणादि दास है ।

No comments:

Post a Comment