Monday, 6 April 2015

वेद में गाय की महिमा का वर्णन ।



वेदो नारायण साक्षात्
वेद ही नारायण है ऐसा श्रुति वचन है  नारायण सृष्टि के पुर्व भी विद्यमान था है और रहेगा अर्थात वेद भी नित्य ही हुए वेद की हर एक वाणी ईश्वरीय वाणी है और ईश्वर का प्रेम सृष्टि के समस्त जीव के प्रति समभाव से जैसा प्रेम मनुष्य के प्रति वैसा ही प्रेम जीव के प्रति ।जिसका प्रमाण स्वयं ऋग् वेद है ऋग्वेद के मण्डल ६ ये मन्त्र भी आया है ।

चित्पूर्वे जरितार आसुरनेद्या अनवद्या अरिष्टाः ॥४॥  [[ऋग् वेद   ६/१९/४]]

मंत्रार्थ ---- पुर्व काल में स्तोतागण अनिध्य पापरहित अहिंसित थे ।

 तात्पर्य हमारे पुर्वज पापो से रहित हुआ करते थे तथा अहिंसित भी तो भला जीव हत्या कर वो पाप के भागी क्यों बने जैसा की आज प्रायः सनातन धर्म के प्रति  तथाकथित छद्मवेशी चारो ओर ये भ्रम फैला रखे है की वेद में गौ हत्या का प्रमाण मौजूद है ।
जबकि वेद कहता है गाय शाक्षात इंद्र रुपी है और इंद्र की महिमा की महिमा वेद में चहु ओर किया गया है अब वेद स्वयं गौ को इंद्र कहा है तो भला मनुष्यो की भावना गौ के प्रति कैसी होगी ये मुझे कहने की कोई जरुरत नही ।केवल इतना ही नही अपने आने वाली पीढ़ी का भी ख्याल रख ईश्वर से ऐसे संतान की कामना करता है जो  सुन्दर सुसंस्कारित यज्ञ करने वाला और हव्यान्न देने वाला हो ।
य ओजिष्ठ इन्द्र तं सु नो दा मदो वृषन्स्वभिष्टिर्दास्वान् ।[[ऋग् वेद ६/३३/१]]-


इमा या गावः स जनास इंद्र  [[ऋग् वेद /६/२८/५ ]]

 मंत्रार्थ --- हे मनुष्यो यह जो गौए है वह इंद्र है ।
इसी के साथ अगले मन्त्र की ब्यख्या हृदयंगम करने वाली है  ।

आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे ।

मंत्रार्थ ---  हे गौएँ हमारे घर पर आये हमारा कल्याण करे वे गौशाला में बैठे हमें आनंदित करे । केवल इतना ही नही चोर उसे न चुराए शत्रु उन पर शस्त्रो का प्रहार न करे इस प्रकरण पर भी ऋग् वेद का अगला मन्त्र आप सभी के सामने रख रहा हु ।

न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति ।[[ऋग् वेद ६/२८/३]]

ये गौए नाश नहीं होती चोर भी उसकी हिंसा नहीं करता शत्रु का शस्त्र भी गौ पर आक्रमण न करे ।

मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः ॥[[ ऋग् वेद ६/२८/७]]

मंत्रार्थ --: चोर इनकी चोरी न कर सके ऐसे सुरक्षित स्थान में गौ रहे पापी के अधीन गौएँ न हो बिजली गिर कर गौएँ की मृत्यु न हो ऐसे सुरक्षित स्थान पर गौएँ रहे ।


सं ते वज्रो वर्ततामिन्द्र गव्युः [[ऋग् वेद ६/४१/२]]
मंत्रार्थ ----- हे इंद्र गौओ का रक्षण करने वाला तेरा बज्र शत्रुओ का नाश करे ।






नोट ----लेख अभी अधूरा है ।

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