इतिहासस्य स वै सपुराणस्य च गाथानां च नाराशासिनां स पिर्य धाम भवति य एवम् वेद [[ अथर्वेद १५/६/१/१२]]
अर्थ ---: इतिहास पुराण और गाथा नारांशंसी के पिर्य धाम होते है
मध्याहुतयो ह वा एतादेवानांयदनुशासनानी विद्या वाकोवाक्यमितिहासः पुराणं गाथा नराशंस्य: य एवम् विद्वाननुशासनानि विद्या वकोवाक्यमितिहास पुराणं गाथा नाराशंसिरित्यहरह: स्वाध्यायमधीते [[ शतपथ ११/३/८/८]]
अर्थ ----: शास्त्र देवताओ के मध्य आहुति है देव विद्या ब्रह्म विद्या आदिक विद्याएँ उत्तर प्रत्यूतर रूप ग्रन्थ इतिहास पुराण गाथा और नाराशंसी ये शास्त्र है जो इनका नित्यप्रति स्वध्याय करता है वह मानो देवताओ के लिए आहुति देता है
एवमिमे सर्वे वेदा निर्मितास्सकल्पा सरहस्या: सब्राह्मणा सोपनिषत्का: सेतिहासा: सांव्यख्याता:सपुराणा:सस्वरा:ससंस्काराः सनिरुक्ता: सानुशासना सानुमार्जना: सवाकोवाक्या [[गोपथब्राह्मण पूर्वभाग ,प्रपाठक 2]]
अर्थ ---: कल्प रहस्य ब्राह्मण उपनिषद इतिहास पुराण अनवाख्यात स्वर संस्कार निरुक्त अनुशासन और वाकोवाक्य समस्त वेद परमेश्वर से निर्मित है ||
ऋचः सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह |
उच्छिष्टाज् जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः |[[अथर्वेद ११/१/२४]]
अर्थ---:ऋग् शाम छन्द तथा यजु के साथ पुराण और द्युलोक में रहने वाले दिविश्रित समस्त देवगण उत्पन्न हुवे ||
अरेऽस्य महतो'भूत'स्य नि'श्वसितम्एत'द्य'दृग्वेदो' यजुर्वेद' सामवेदो'ऽथर्वाङ्गिर' सइतिहास'पुराण'विद्या' उपनिष'दः श्लो'काः सू'त्राण्यनुव्याख्या' नानिव्याख्या' ननिदत्त'म्हुत' माशित' पायित' मय'चलोक'प'रश्चलोक' स'र्वाणि च भूता'न्यस्यै' वै'ता'नि स'र्वाणि नि'श्वसितानि [[ बृह 0 ऊ 0 ४/५/११]]
अर्थ ---: उस परब्रह्म नारायण के निश्वास से ऋग् वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्वेद इतिहास पुराण विद्या उपनिषद श्लोक सूत्र व्यख्यान यज्ञ हवन किया हुआ खिलाया हुआ पिलाया हुआ यह लोक पर लोक समस्त भुत है ||
पुराणन्यायमीमांसा धर्मशास्त्राङ्गमिश्रिताः ।
वेदाः स्थानानि विद्यानां धर्मस्य च चतुर्दश । [[याज्ञ 0 स्मृति 0 १.३ ]]
अर्थ ---: पुराण न्याय मीमांशा धर्म शास्त्र और छः अङ्गों सहित चार वेद ये चौदह विद्या धर्म के स्थान है ।
इतिहासपुराणः पञ्चमो वेदानां वेद [[ छान्दोग्य ७/१/४ ]]
अर्थ ---: इतिहास पुराण ही पांचवा वेद है
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अर्थ ---: इतिहास पुराण और गाथा नारांशंसी के पिर्य धाम होते है
मध्याहुतयो ह वा एतादेवानांयदनुशासनानी विद्या वाकोवाक्यमितिहासः पुराणं गाथा नराशंस्य: य एवम् विद्वाननुशासनानि विद्या वकोवाक्यमितिहास पुराणं गाथा नाराशंसिरित्यहरह: स्वाध्यायमधीते [[ शतपथ ११/३/८/८]]
अर्थ ----: शास्त्र देवताओ के मध्य आहुति है देव विद्या ब्रह्म विद्या आदिक विद्याएँ उत्तर प्रत्यूतर रूप ग्रन्थ इतिहास पुराण गाथा और नाराशंसी ये शास्त्र है जो इनका नित्यप्रति स्वध्याय करता है वह मानो देवताओ के लिए आहुति देता है
एवमिमे सर्वे वेदा निर्मितास्सकल्पा सरहस्या: सब्राह्मणा सोपनिषत्का: सेतिहासा: सांव्यख्याता:सपुराणा:सस्वरा:ससंस्काराः सनिरुक्ता: सानुशासना सानुमार्जना: सवाकोवाक्या [[गोपथब्राह्मण पूर्वभाग ,प्रपाठक 2]]
अर्थ ---: कल्प रहस्य ब्राह्मण उपनिषद इतिहास पुराण अनवाख्यात स्वर संस्कार निरुक्त अनुशासन और वाकोवाक्य समस्त वेद परमेश्वर से निर्मित है ||
ऋचः सामानि छन्दांसि पुराणं यजुषा सह |
उच्छिष्टाज् जज्ञिरे सर्वे दिवि देवा दिविश्रितः |[[अथर्वेद ११/१/२४]]
अर्थ---:ऋग् शाम छन्द तथा यजु के साथ पुराण और द्युलोक में रहने वाले दिविश्रित समस्त देवगण उत्पन्न हुवे ||
अरेऽस्य महतो'भूत'स्य नि'श्वसितम्एत'द्य'दृग्वेदो' यजुर्वेद' सामवेदो'ऽथर्वाङ्गिर' सइतिहास'पुराण'विद्या' उपनिष'दः श्लो'काः सू'त्राण्यनुव्याख्या' नानिव्याख्या' ननिदत्त'म्हुत' माशित' पायित' मय'चलोक'प'रश्चलोक' स'र्वाणि च भूता'न्यस्यै' वै'ता'नि स'र्वाणि नि'श्वसितानि [[ बृह 0 ऊ 0 ४/५/११]]
अर्थ ---: उस परब्रह्म नारायण के निश्वास से ऋग् वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्वेद इतिहास पुराण विद्या उपनिषद श्लोक सूत्र व्यख्यान यज्ञ हवन किया हुआ खिलाया हुआ पिलाया हुआ यह लोक पर लोक समस्त भुत है ||
पुराणन्यायमीमांसा धर्मशास्त्राङ्गमिश्रिताः ।
वेदाः स्थानानि विद्यानां धर्मस्य च चतुर्दश । [[याज्ञ 0 स्मृति 0 १.३ ]]
अर्थ ---: पुराण न्याय मीमांशा धर्म शास्त्र और छः अङ्गों सहित चार वेद ये चौदह विद्या धर्म के स्थान है ।
इतिहासपुराणः पञ्चमो वेदानां वेद [[ छान्दोग्य ७/१/४ ]]
अर्थ ---: इतिहास पुराण ही पांचवा वेद है
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