■-- बालविवाह
सनातन वैदिक धर्म मे ऐसा कोई भी कुप्रथा नही जो सम्पूर्ण भूतसमुदाय के लिए अपकल्याणकारक हो सनातन धर्म में तो मनुष्य ,पशु,पक्षी,पिपीलिका बृक्षलता आदी तक मे उसी परमेश्वर की कल्पना करने का जो आदेश दिया है वह विश्व के किसी और धर्मशास्त्रों के दृष्टिगोचर नही होता ।
■-सर्वं खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्य उपनिषद)
■-सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो (गीता)
जिस संस्कृति में समस्त भुसमुदाय में ईश्वर की कल्पना की गई हो वह संस्कृति कैसे किसी मानवी हितों के लिए अपकल्याणकारक हो सकता है
सनातन धर्म से इतर अन्य मत मजहब पन्थ रिलीजन में आये हुए कुरीतियों को अध्यरोपित सनातन धर्म मे नही किया जा सकता
बालविवाह के नाम पर सनातन धर्म के प्रति वामपन्थियों ,सेक्युलरवादियों, मिशनिरिज द्वारा जो मिथ्या प्रचार प्रसार किया गया वह अप्रमाणिक होने के कारण अग्राह्य है ।।
सनातन संस्कृति व संस्कार ईश्वरमूला होने से सद्मूला है, चिद्मूला है, आनन्दमूला है,
संस्कार का अर्थ है सजाना-संवारना, पूर्णता प्रदान करना। इसके लिए उसके अन्दर दिव्य गुणों का आधान किया जाता है।
इसमें मुख्य 16 संस्कार हैं जिसके द्वारा मानव के मूल दिव्य, परिपूर्ण स्वरूप को प्रकट करने की चेष्टा की जाती है इन 16 संस्कारों में एक संस्कार है पाणिग्रहण का है पाणिग्रहण संस्कार को लेकर सनातन धर्म शास्त्र क्या है यह जानना भी आवश्यक है जिन्हें तद्वत बिषयों का ज्ञान नही वे ही सनातनधर्म संस्कारो पर घात किया करते है ।।
श्रुति कहता है कि मनु ने जो कहा वह भैषज (औषधि) है और भैषज होने से समस्त मानवजाति के लिए ग्राह्य है
■-यद् वै किञ्च मनुरवदत् तद् भेषजम् | ( तैत्तिरीय सं०२/२/१०/२)
■-मनु र्वै यत् किञ्चावदत् तत् भेषज्यायै | (- ताण्ड्य-महाब्रा०२३/१६/१७)
तो महर्षि मनु ने पाणिग्रहण संस्कार के बिषय में क्या कहा ?
■--त्रिणि वर्षाण्युदिक्षेत कुमार्यार्तुमति सती |
ऊर्ध्वं तु कालादेतस्माद् विन्देता सदृशं पतिम् ||(मनुस्मृति ९/९० )
ऋतुमती होने के तीन वर्ष तक प्रतीक्षा करें उसके पश्चात समान योग्य वर को वरण करें ठीक यही कथन महर्षि मनु श्लोक संख्या ९३ में भी कहता है कि जब कन्या ऋतुमती हो जाय तभी उसका वरण करना चाहिए ।।
#कन्यां_ऋतुमतीं_हरन् (९/९३)और यदि न किया तो पाप के भागी होंगे
महर्षि मनुप्रोक्त इस बिधान की पुष्टि बौधायन धर्मसूत्र वशिष्ठधर्म संहिता एवं महाभारत भी करता है
■-त्रीणि वर्षाण्य् ऋतुमतीं यः कन्यां न प्रयच्छति ।(बौधायन धर्मसूत्र ४/१/१२)
■-कुमार्य्यृतुमती त्रिवर्षाण्युपासीतोर्द्धं (वशिष्ठ संहिता )
■-त्रीणि वर्षाण्युदीक्षेत कन्या ऋतुमती सती (महाभारत अनुशासन पर्व ४४/१६)
जिन बिषयों पर समस्त धर्माचार्य का मतैक्य हो उस बिषय की प्रमाणिकता पर सन्देह कहाँ ?
सनातंधर्मसंस्कृति आर्यावर्त देशीय होने के कारण यह आचरण सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए मानवहितों को देखते हुए कल्याणकारी है क्यो की भारत मे एक कन्या का ऋतुगमन (पीरियड्स) 13 वर्ष के पश्चात ही देखा जाता है ऋतुगमन होने के तीन वर्ष पश्चात ही सनातनधर्म शास्त्रों ने विवाह का आदेश दिया है 13+3 अर्थात 16 वर्ष तक कि आयु सनातन धर्मशास्त्र निश्चित करता है
बाल विवाह को लेकर सनातन धर्म शास्त्र में एक भी प्रमाण दृष्टिगोचर नही होता ।
शैलेन्द्र सिंह